सुन्दर वन नामक जंगल में एक शेर रहता था। एक दिन उसे बहुत भूख लगी तो वह आसपास किसी जानवर की तलाश करने लगा। उसे कुछ दूरी पर एक पेड़ के नीचे एक खरगोश का बच्चा दिखाई दिया। वह पेड़ की छाया में मजे से खेल रहा था। शेर उसे पकड़ने के लिए आगे बढ़ा। खरगोश शावक ने उसे अपनी ओर आते देखा, तो वह जान बचाने के लिए कुलांचे भरने लगा
मगर शेर की लम्बी छलांगों का वह कैसे मुकाबला करता था। शेर ने दो छलांगों में ही उसे दबोच लिया। फिर जैसे ही उसने अपनी गरदन चबानी चाही, उसकी नजर एक हिरन पर पड़ी।
उसने सोचा कि इस नन्हें खरगोश से मेरा पेट भर नहीं पाएगा, क्यों न हिरन का शिकार किया जाए। यह सोचकर उसने खरगोश को छोड़ दिया और हिरन के पीछे लपका। खरगोश का बच्चा उसके पंजे से छूटते ही नौ दो ग्यारह हो गया। हिरन ने शेर को देखा, तो लम्बी-लम्बी छलागें लगाता हुआ भाग खड़ा हुआ। शेर हिरन को नहीं पकड़ सका।
हाय री-किस्मत! खरगोश भी हाथ से गया और हिरन भी नहीं मिला। शेर खरगोश के बच्चे को छोड़ देने के लिए पछताने लगा। वह सोचने लगा कि किसी ने सच ही कहा है जो आधी छोड़कर पूरी की तरफ भागते हैं, उन्हें आधी भी नहीं मिलती।
पंचतंत्र की कहानी से शिक्षा – ज्यादा लालच करने वालों के हाथ कुछ नहीं आता। An English proverb also says – A bird in hand is worth two in bush.