CHANAKYA QUOTES IN HINDI
Chanakya quotes in Hindi 1-25
अकेले तप, दो से पढ़ना, तीन से गाना, चार से राह चलना, पाँच से खेती और अधिक व्यक्तियों के होने से युद्ध जीतना संभव हो पाता है।
अति सुन्दरता के कारण सीता हरी गई, अति गर्व से रावण मारा गया, अति दान देने से बलि को बँधना पडा। इसलिए अति सब जगह छोड़ देनी चाहिए।
अधिकारी निःस्पृह नहीं होते, अर्थात् अधिकार पाकर निस्पृह होना कठिन है । श्रृंगार का प्रेमी कभी अकाम नहीं होता, अर्थात् वह अवश्य कामुक होता है । जो चतुर नहीं है, वह प्रियवादी नहीं हो सकता और स्पष्ट कहने वाला कभी धोखेबाज नहीं होता।
अभ्यास से विद्या, सुशीलता से कुल, गुण से सज्जन व्यक्ति और नेत्र से कोप ज्ञात होता है।
असत्य बोलना, विना विचारे किसी काम में झटपट लग जाना या साहस, छल, मूर्खता, लोभ, अपवित्रता और निर्दयता, ये स्त्रियों के स्वाभाविक दोष है।
आँख के ओट होने पर काम बिगाड़े, सम्मुख होने पर मीठी-मीठी बातें बनाकर कहे, ऐसे मित्र को ऊपर दूध से और भीतर विष से भरे हुए घड़े के समान छोड़ देना चाहिए।
आचार कुल को बताता है, बोली देश को बतलाती है, आदर स्नेह प्रीति को प्रकट करता और शरीर भोजन को बताता है।
आपत्ति दूर करने के लिए धन को बचाना चाहिए; धन से स्त्री की रक्षा करनी चाहिए; सब काल में स्त्री और धन से भी अपनी रक्षा करना उचित है।
आलस्य से विद्या नष्ट हो जाती है, दूसरे के हाथ में जाने से धन निरर्थक हो जाता है, बीज की कमी से खेत नष्ट हो जाता है, और सेनापति के विना सेना मारी जाती है।
उद्योग करने पर दरिद्रता नहीं रहती, जपनेवाले का पाप नहीं रहता, मौन होने से कलह नहीं होता और जागनेवाले के निकट भय नहीं आता।
उपद्रव उठने पर, शत्रु के आक्रमण करने पर, भयानक अकाल पड़ने पर और खल जनों का संग होने पर जो भागता है, वही जीता है ।।
उस गाय से क्या लाभ, जो न दूध दे, न गाभिन हो ? ऐसे ही उस पुत्र से क्या लाभ, जो न विद्वान् हो, न माता पिता का भक्त ?
एक भी अच्छे वृक्ष से, जिसमें सुन्दर फूल और सुगंध है, सब वन सुवासित हो जाता है, जैसे सुपुत्र से कुल।
एक श्लोक, आधा श्लोक अथवा चौथाई श्लोक प्रतिदिन पढ़ना उचित है; क्योंकि दान, अध्ययन आदि कर्मों से दिन सार्थक करना चाहिए, व्यर्थ न जाने देना चाहिए।
एक ही गर्भ से एवं एक ही नक्षत्र में उत्पन्न नर शील में समान नहीं होते, जैसे बेर के फल और उसके काँटे सब बराबर नहीं होते।
कन्या श्रेष्ठ कुल वाले को देनी चाहिए, पुत्र को विद्या में लगाना चाहिए, शत्रु को दुःख पहुंचाना चाहिए और मित्र को धर्म का उपदेश करना चाहिए।
काम के समान दूसरी व्याधि नहीं, अज्ञान के समान दुसरा वरी नहीं, क्रोध के समान दूसरी आग नहीं एवं ज्ञान से बढ़कर सुख नहीं।
काम में लगाने पर सेवकों की, दुख आने पर बान्धवों की, विपत्ति काल में मित्र की और विभव का नाश होने पर स्त्री की परीक्षा होती है।
किसके कुल में दोष नहीं है ? व्याधि ने किसे पीड़ित नहीं किया ? किसको कष्ट नहीं मिला ? किसको सदा सुख ही रखा है ?
कुग्राम में वास, नीच कुल की सेवा, कु्रजन, कलह- कारिणी स्त्री, मूर्ख पुत्र, विधवा कन्या, ये छः बिना आग के ही शरीर को जलाते हैं।
कुमित्र पर विश्वास तो किसी प्रकार से नहीं करना चाहिए और सुमित्र पर भी विश्वास न रक्खे, क्योंकि यदि कदाचित् मित्र रुष्ट हो जायगा, तो सब गुप्त बातों प्रकट कर देगा।
कुल के भले के लिए एक को छोड़ देना चाहिए, ग्राम के लिए कुल का त्याग करना उचित है। देश के लिए ग्राम का और अपने लिए समस्त पृथ्वी का त्याग उचित है।
कैसा ये कौन काल है, मेरे मित्र कौन हैं, कौन या कैसा देश है, मेरी आमदनी और खर्च क्या है, मैं कौन हूँ और मेरी शक्ति कितनी है, यह मनुष्य को बार-बार अर्थात् सदा विचारना चाहिए।
कोयलों की शोभा स्वर है, स्त्रियों की शोभा पतिव्रत है, कुरूपों की शोभा विद्या है, तपस्वियों की शोभा क्षमा है।
Chanakya quotes in Hindi 26-50
घिसकर, काटकर, तपाकर और पीटकर, इन चार प्रकारों से जैसे सोने की परीक्षा की जाती है, वैसे ही दान, शील, गुण और आचार, इन चारों प्रकारों से पुरुष की परीक्षा होती है।
जन्म देने वाली यज्ञोपवीत आदि संस्कार करने वाला, विद्या देनेवाला, अन्न देनेवाला और भय से बचानेवाला; ये पाँच पिता गिने जाते हैं।
जब तक देह नीरोग है और मृत्यु दूर है, तब तक अपना हित और पुण्य आदि करना उचित है। प्राणान्त हो जाने पर फिर कोई क्या करेगा?
जहाँ मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहाँ अन्न संचित रहता है और जहाँ पति-पत्नी में लड़ाई नहीं होती, वहाँ लक्ष्मी आप ही आकर रहती है।
जिस देश में न आदर है, न जीविका, न बन्धु और न विद्या का लाभ, वहाँ वास नहीं करना चाहिए।
जिसका पुत्र वश में रहता है, स्त्री इच्छा के अनुसार चलती है, जो अल्प विभव में संतुष्ट रहता है, उसके लिए स्वर्ग यहीं है।
जीविका, भय, लज्जा, अनुकूलता और देने की प्रकृति, ये पाँच बातें जहाँ न हों, वहाँ न रहना चाहिए।
तब तक भय से डरना चाहिए, जब तक भय न आया हो । जब भय को आया हुआ देख ले, तब उस पर प्रहार करना उचित है।
दया-रहित धर्म को छोड़ देना चाहिए। विद्याहीन गुरु को त्यागना उचित है। सदा कुपित रहनेवाली भार्या को अलग कर देना चाहिए और विना प्रकृति के बान्धवों को त्याग देना उचित है।
दान दरिद्रता का नाश करता है, सुशीलता दुर्गति को दूर कर देती है, बुद्धि अज्ञान का नाश कर देती है और भक्ति भय को मिटाती है।
दुराचारी, कुदृष्टि रखनेवाला और बुरे स्थान में बसने वाला, ऐसे दुर्जन पुरुष की मैत्री जिसके साथ होती है, वह नर शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।
दुर्जन और साँप में साँप अच्छा है, दुर्जन नहीं। कारण, साँप काल आने पर काटता है, पर खल तो पद-पद पर दुःखदाई होते हैं।
दुलार करने से बहुत दोष होते हैं और दण्ड देने से बहुत गुण। इसलिए पुत्र और शिष्य को दण्ड देना ही उचित है।
दुष्ट स्त्री, शठमित्र, उत्तर देनेवाला दास और सांप वाले घर में वास, ये मृत्युस्वरूप ही हैं, इसमें कुछ भी संशय नहीं
धन से धर्म की रक्षा होती है। यम, नियम आदि योग से ज्ञान रक्षित होता है । मृदुता से राजा की रक्षा होती है, और भली स्त्री से घर की रक्षा होती है।
धनहीन धन चाहते हैं । पशु वचन की, मनुष्य स्वर्ग की और देवता मुक्ति की इच्छा रखते हैं।
धनिक, वेद का ज्ञाता, राजा, नदी और वैद्य, ये पांच जहाँ विद्यमान न हों, वहां एक दिन भी वास न करना चाहिए।
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इनमें से जिसने कोई न प्राप्त किया, उसको मृत्युलोक में वारंवार जन्म लेकर केवल मरण ही लाभ होता है।
नदियों का, शस्त्रधारियों का, नखवाले और सींगवाले पशुओं का, स्त्रियों का और राजकुल का विश्वास न करना चाहिए।
नदी-तट के वृक्ष, दूसरे के घर में जाने या रहनेवाली स्त्री और मन्त्री से रहित राजा, निश्चय ही ये शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।
निपूते का घर सूना है, जहाँ बन्धु-बान्धव न हों वे दिशाएँ शून्य हैं, मूर्ख का हृदय शून्य है और दरिद्र को सभी सूना है।
Chanakya quotes in Hindi 51-75
निर्धन होने से कोई धनहीन नहीं गिना जाता, किन्तु तो धनवान होते हुए भी विद्यारत्न से हीन हैं, वो सब वस्तुओं से हीन हैं ।
पुत्र का पांच वर्ष तक दुलार, और फिर दस वर्ष तक ताड़न करे । सोलहवें वर्ष के लगते ही पुत्र के साथ मित्र का सा व्यवहार करे।
पुत्र, मित्र और बन्धु ये साधुजनों से निवृत्त हो जाते हैं अर्थात् इनकी ममता छूट जाती है और जो उन साधुओं का अनुसरण करते हैं, उनके पुण्य से संपूर्ण कुल कृतकृत्य हो जाता है
पुरुष से स्त्रियों का आहार दूना, लज्जा चौगुनी, साहस छगुना और काम अठगुना होता है।
बिना अभ्यास के शास्त्र विषय है, बिना पचे भोजन विष है, दरिद्रों के लिए बैठक और युद्ध के लिए युवती स्त्री विष है।
बीमार होने पर, कष्ट पड़ने पर, अकाल पड़ने पर, वैरियों से संकट आने पर, राजा के समीप और श्मशान में जो साथ देता है वही बन्धु है।
बुद्धिमान् को चाहिए कि उत्तम कुल की कुरूपा कन्या के साथ विवाह कर ले; नीच कुल की कन्या यदि सुन्दरी हो, तो भी उसके साथ विवाह न करे; क्योंकि विवाह तुल्य कुल में ही विहित है।
बुद्धिमान् लोग लड़कों को नाना भांति की सुशीलता में लगावें; क्योंकि नीति जाननेवाले यदि शीलवान् हों, तो कुल में पूजित होते हैं।
ब्रह्मज्ञानी को स्वर्ग तृण समान है, शूर को जीवन तृण तुल्य है । जिसने इन्द्रियों को वश में कर लिया है, उसको स्त्री तृण के तुल्य जान पड़ती है और निःस्पृह को जगत् तृण-सा तुच्छ है।
ब्राह्मण दक्षिणा लेकर यजमान को त्याग देते हैं, शिष्य विद्या प्राप्त हो जाने पर गुरु को और जले हुए वन को मृग छोड़ देते हैं।
ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य का गुरु अग्नि है। चारों वर्णों का गुरु ब्राह्मण है। स्त्रियों का गुरु पति है; और सबका गुरु अभ्यागत है।
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य इनका देवता अग्नि है। मुनियों के हृदय में देवता रहते हैं । अल्पबुद्धियों के लिए मूर्ति में और समदशियों के लिए सब स्थानों में देवता रहते हैं।
भोजन के पदार्थ और भोजन की शक्ति, सुन्दर स्त्री और रति की शक्ति, ऐश्वर्य और दान शक्ति, इनका होना थोड़े तप का फल नहीं है।
मछली, कछुआ और चिड़िया, के जैसे दर्शन, ध्यान और स्पर्श से बच्चों को सर्वदा पालती हैं, वैसे ही सज्जनों की संगति भी सत्संग करनेवालों को पालती अर्थात् उनका भला करती है।
मन से सोचे हुए काम को वचन से प्रकट न करे; किन्तु मंत्रणा से उसकी रक्षा करे और गुप्त ही उस कार्य को काम में भी लावे।
मनुष्यों के लिए राह चलना बुढ़ापा है, घोड़े के लिए बाँध रखना बुढ़ापा है, स्त्रियों के लिए रति का न करना बुढ़ापा है तथा वस्त्रों के लिए घाम बुढ़ापा है अर्थात् उन्हें जीर्ण करने वाला है।
मूर्ख पंडितों से, दरिद्री धनियों से, व्यभिचारिणी कुलीन स्त्रियों से और विधवा सुहागवाली स्त्रियों से द्वेष रखती हैं।
मूर्ख पुत्र दीर्घजीवी भी हो, तो उससे उत्पन्न होते ही मर जानेवाला श्रेष्ठ है; क्योंकि मरा हुआ थोड़े ही दुख का कारण होता है; पर मूर्ख जब तक जीता है, तब तक जलाता है।
मूर्ख से दूर रहना उचित है। कारण, देखने में वह मनुष्य है, परन्तु यथार्थ में दो पैरों का पशु है और वाक्यरूप काँटे से वैसे ही बेधता है जैसे अन्धे को काँटा।
मूर्खता दुःख देती है और युवावस्था भी कष्ट में फंसा देती है; परन्तु दूसरे के गृह का वास तो बहुत ही दुःख दायक होता है
मेघ के जल के समान दूसरा जल नहीं होता। अपने बल के समान दूसरे का बल नहीं; क्योंकि समय पर वही काम आता है। अथवा आत्मा का बल शरीर के बल से बढ़कर है । नेत्र के समान दूसरा तेज (ज्योति) नहीं है और अन्न के सदृश दूसरा प्रिय पदार्थ नहीं है।
यह निश्चय है कि आयु, कर्म, धन, विद्या और मरण, ये पांच बातें, जब जीव गर्भ में रहता है, तभी लिख दी जाती हैं।
यह निश्चित है कि मनुष्य अकेला ही जन्म लेता और मरता है । अपने शुभ और अशुभ कर्मों का फल भी अकेला ही भोगता है। अकेला ही नरक में गिरता है और अकेला ही परम गति मोक्ष को पाता है।
Chanakya quotes in Hindi 75-100
राजा की भार्या, गुरु की स्त्री, मित्र की पत्नी, सास और अपनी जननी, इन पाँचों को माता कहते हैं।
राजा लोग एक ही वार आज्ञा देते हैं, पंडित लोग एक ही वार बोलते हैं, कन्या एक ही बार दी जाती है। ये तीनों बात एक ही बार होती हैं ।।
राजा लोग कुलीनों का संग्रह इसलिए करते हैं, अर्थात् उन्हें इसलिए अपने पास रखते हैं कि वे आदि अर्थात् उन्नति, मध्य और अन्त अर्थात् विपत्ति में राजा को नहीं छोड़ते।
रूप, जवानी और बड़े कुल में जन्म, इनके रहते भी विद्याहीन पुरुष बिना गंध वाले टेसू के फूल के समान नहीं सोहते।
लक्ष्मी, प्राण, जीवन और घर ये सभी स्थिर नहीं हैं। यह निश्चय है कि इस चर-अचर संसार में केवल धर्म ही निश्चल है।
वह माता शत्रु और पिता वैरी है, जिसने अपने बालकों को नहीं पढ़ाया; क्योंकि सभा में वे पुत्र वैसे ही नहीं सोहते, जैसे हंसों के बीच बगुला।
वही पुत्र है जो पिता का भक्त है, वही पिता है जो पालन करता है, वही मित्र है जिस पर विश्वास है, वही स्त्री है जिससे सुख प्राप्त हो।
वही भार्या है जो पवित्र और चतुर है, वही भार्या है जो पतिव्रता है, वही भार्या है जिस पर पति की प्रीति है, वही भार्या है जो सत्य बोलती है । अर्थात् वही दान, मान, पोषण और पालन के योग्य है।
विदेश में विद्या मित्र होती है, गृह में भार्या मित्र है, रोगी का मित्र औषधि है, और मरे हुए का मित्र धर्म है।
विद्या में कामधेनु के समान गुण है; क्योंकि वह असमय में भी फल देती है। वह विदेश में माता के समान रक्षा करती है, इसलिए विद्या को गुप्त धन समझना चाहिए।
विद्यायुक्त एक भले पुत्र से सब कुछ ऐसा उज्जवल हो जाता है, जैसे चन्द्रमा से रात्रि।
विपत्ति निवारण करने के लिए धन की रक्षा करना उचित है। क्या श्रीमानों को भी कभी आपत्ति आती है? हाँ, कदाचित् दैवयोग से लक्ष्मी चली जाती है तो उस समय संचित भी नष्ट हो जाता है।
वेद के पाण्डित्य को अन्यथा कहनेवाला, शास्त्र और उसके आचार के विषय में व्यर्थ विवाद करनेवाला और शांत(साधु) पुरुष को अन्यथा (ढोंगी) कहनेवाला व्यर्थ ही क्लेश उठाता है, अर्थात् वह उक्त वस्तुओं और आदमियों का कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
वेश्या निर्धन पुरुष को, प्रजा शक्तिहीन राजा को, पक्षी फलरहित वृक्ष को और अभ्यागत भोजन करके घर को छोड़ देते हैं।
शोक-सन्ताप उत्पन्न करनेवाले बहुत पुत्रों से क्या लाभ? कुल को सहारा देने वाला एक ही पुत्र श्रेष्ठ है, जो कुल का कुल आधार होता है।
सत्य से पृथ्वी स्थिर है, सत्य ही से सूर्य तपते हैं, सत्य ही से वायु बहता है और सब सृष्टि सत्य ही में स्थिर है।
समर्थ को कौन काम कठिन है ? रोजगारी के लिए कौन जगह दूर है ? सुन्दर विद्यावालों को कौन विदेश है ? प्रियवादियों के लिए कौन पराया है ?
समान जन में प्रीति सोहती है, सेवा राजा की सोहती है, व्यवहारों में बनियई और घर में दिव्य स्त्री सोहती है।
समुद्र प्रलय के समय में अपनी मर्यादा को छोड़ देता है, और सागर भेद की इच्छा भी रखते हैं, अर्थात् किनारों को छोड़ देते हैं; परन्तु साधु लोग प्रलय होने पर भी अपनी मर्यादा नहीं छोड़ते।
समुद्रों में वर्षा वृथा है, भोजन से तृप्त हुए को भोजन निरर्थक है, धनी को दान देना और दिन में दीपक जलाना व्यर्थ है।
सैकड़ों गुणहीन पुत्रों से एक भी गुणी पुत्र श्रेष्ठ है। एक ही चन्द्र अंधकार का नाश करता है, सहस्रों तारे नहीं।
स्त्री का विरह, अपने जनों से अनादर, युद्ध करके बचा हुआ शत्रु, कुत्सित राजा की सेवा, दरिद्रता और अविवेकियों की सभा, ये बिना आग ही शरीर को जलाते हैं।