Water Conservation Essay in Hindi for Class 5/6 in 100 words
जल जीवन का आधार है। जल न हो तो हमारे जीवन का आधार ही समाप्त हो जाये। दैनिक जीवन के कई कार्य बिना जल के सम्भव नहीं हैं। लेकिन धीरे-धीरे धरती पर जल की कमी होती जा रही है। साथ ही जो भी जल उपलब्ध है वह भी काफी हद तक प्रदूषित है। जिसका इस्तेमाल खाने-पीने एवं फसलों में कर लोग गंभीर बीमारियों से परेशान हैं। धरती पर जीवन बचाये रखने के लिए हमें इसके बचाव की ओर ध्यान देना पड़ेगा। हमें जल को व्यर्थ उपयोग नहीं करना चाहिये और उसे प्रदूषित होने से भी बचाना चाहिये।
Water Conservation Essay in Hindi for Class 7/8 in 200 words
जल ही जीवन है। यह पंक्ति कोई अतिशयोक्ति नहीं है। जल के बिना जीवन संभव ही नहीं है। हमारे जीवन की सभी कार्यों के लिए जल बहुत ही महत्वपूर्ण है। कई कार्य जल के बिना हो ही नहीं सकते। यह जानते हुए भी व्यक्ति इसे बर्बाद करने में कसर नहीं रख रहा है। पूरे विश्व में जल का स्तर धीरे-धीरे घटता जा रहा है और नदियाँ सूखती जा रही हैं। इसके कई दुष्परिणाम मनुष्य भुगत रहा है। यही सब देखते हुए प्रकृति की इस धरोहर का बचाने के लिए, धरती पर जीवन कायम रखने के लिए कई देश जल संरक्षण पर काम भी कर रहे हैं।
जीवन जीने के लिए जल और वह भी स्वच्छ जल बहुत ही आवश्यक है। इसके लिए हमें जल का दुरुपयोग नहीं करना चाहिये। कहावत है कि ”बूँद-बूँद से घड़ा भरता है“। अकेली बूँद भले ही हमें कुछ काम की न लगे पर जब बहुत सी बूँदे इकट्ठी होती हैं तो उसका प्रयोग आसानी से होता है। अतः हमें एक-एक पानी की बूँद को बचाना चाहिये। जितनी आवश्यकता हो उतना ही पानी लेना चाहिये और पेड़-पौधों को लगाना चाहिये। यदि बच्चों में बचपन से ही ऐसी आदत डाली जाये तो वे भी आगे जाकर इसे आने वाली पीढ़ी को समझायेंगे और जल संरक्षण कर धरती को खुशहाल ग्रह बनाने में अपना महत्वपूर्ण सहयोग देंगे।
Water Conservation Essay in Hindi for Class 9/10 in 500 words (Jal Sanrakshan par nibandh)
पृथ्वी का तीन-चौथाई भाग जल से घिरा हुआ है। लेकिन इतना जल होते हुए भी उसमें से बहुत कम प्रतिशत प्रयोग करने लायक होता है। इस तीन-चौथाई जल का 97 प्रतिशत जल नककीन है जो मनुष्य द्वारा प्रयोग करने लायक नहीं है। सिर्फ 3 प्रतिशत जल उपयोग में लाने लायक है। इस 3 प्रतिशत में से 2 प्रतिशत तो धरती पर बर्फ और ग्लेशियर के रूप में है और बाकी का बचा हुए एक प्रतिशत ही पीने लायक है। धीरे-धीरे यह 3 प्रतिशत भी कम होता जा रहा है। इस कम होते जल स्तर का प्रभाव पर्यावरण पर भी पढ़ रहा है। प्रकृति यह सब अपने आप नहीं कर रही है। इसका पूर्ण रूप से जिम्मेदार मनुष्य ही है। अपने आंशिक लाभ के लिए मनुष्य इस अनमोल सम्पदा को नष्ट एवं दूषित कर रहा है। यदि ऐसा ही रहा तो मनुष्य अपने जरूरी कामों के लिए भी पानी को तरस जायेगा।
हमें यह मालूम है कि विश्व में कई देश ऐसे हैं जो सूखा ग्रस्त हैं अर्थात जहाँ वर्षा होती ही नहीं अथवा जहाँ नदियों का अभाव है और ऐसे स्थान पानी के लिए तरसते हैं। लोगों को कई मील दूर जाकर अपने लिए पानी का इंतजाम करना पड़ता है। कई स्थानों पर प्रकृति के इस अमूल्य उपहार को खरीद कर प्रयोग किया जाता है। कई लोग तो इसकी कमी के कारण अथवा दूषित जल से होने वाली गंभीर बीमारियों के कारण ही मर जाते हैं। नदियों में पानी की कमी, भूमिगत जल के स्तर में कमी, पेड़-पौधों की घटती संख्या, कृषि उत्पादन में कमी, आदि ये कुछ ऐसे दुष्परिणाम हैं कि यदि आप भविष्य के विषय में सोचें तो कांप जायें। यह सब जानते हुए भी हम पानी को लापरवाही से प्रयोग में लाते हैं यह सोचे बगैर कि अगर हमने सावधानी नहीं बरती तो यही स्थिति हमारी भी होगी।
यद्यपि कुछ संस्थायें जल संरक्षण पर कार्य कर रही हैं परन्तु मात्र इतना प्रयास ही बहुत नहीं है। यह विश्वव्यापी समस्या है इसलिए पूरे विश्व के लोगों को मिलजुल कर इसमें सहयोग करना होगा तभी इस अमूल्य सम्पदा को बचाया जा सकता है। इसके लिए हमें शुरूआत अपने घर से ही करनी होगी। हमें अपने घर में बूँद-बूँद करके बहते पानी को बचाना होगा। फव्वारे या सीधे नल के नीचे बैठ कर नहाने की बजाय बालटी और मग का प्रयोग करें। घर के बगीचे में पानी देते समय पाईप की बजाय फव्वारे का प्रयोग करें। ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगायें जिससे वर्षा की कमी न हो। हो सके तो पौधे बरसाती मौसम में ही रोपें जिससे उन्हें पौधे को प्राकृतिक रूप से पानी मिल जाये। घर में ऐसे पौधों को लगाने की कोशिश करनी चाहिये जो कम पानी में भी रह सकते हैं। सरकार को कुछ ऐसी नीति बनानी होगी कि औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला पानी नदी-नालों में न मिले। इसके निस्तारण की कुछ अच्छी व्यवस्था हो जिससे खतरनाक रसायन पीने योग्य पानी में मिलकर उसे दूषित न कर पायें। धरती पर बढ़ती जनसंख्या के दबाव पर भी ठोस कदम उठाये जाने चाहियें। बरसाती जल इकट्ठा करने एवं प्रयोग करने लायक बनाने की छोटी इकाइयों को बढ़ावा देना चाहिये जिससे बरसाती जल व्यर्थ न जाये।
यदि हम इन सब बातों का ध्यान रखेंगे और बच्चों को भी इसकी आदत डालेंगे तो निश्चित रूप से धरती और धरती पर विकसित होने वाली प्रकृति एवं जीवन खुशहाल होगा।