संजीव कुमार को एक ऐसे बहु आयामी कलाकार के तौर पर जाने जाते है.जिन्होंने नायक सहनायक खलनायक और चरित्र कलाकार भूमिकाओं से दर्शकों को अपना दीवाना बनाया.संजीव कुमार लजीज भोजन के भी बहुत शौकीन थे.
संजीव कुमार का जन्म मुंबई के एक मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार में हुआ था. वो बचपन से ही फ़िल्मों में बतौर अभिनेता काम करने का सपना देखा करते थे. इसी सपने को पूरा करने के लिए वे अपने जीवन के शुरुआती दौर मे रंगमंच से जुड़े.
संजीव कुमार के अभिनय में एक विशेषता यह रही कि वे किसी भी तरह की भूमिका के लिए सदा उपयुक्त रहते थे.दिलीप कुमार के बाद संजीव कुमार इकलौते कलाकार थे जिनकी एक्टिंग एकदम परफेक्ट थी. कैमरे के सामने वे हमेशा सहज रहते थे.उन्होंने कभी कोई रीटेक नहीं दिया.
संजीव कुमार बिना रीटेक के सीन पूरा कर देते थे.जब भी कोई किरदार मिला तो उसकी गहराई को अपने में समा लेते थे.यही वजह है कि उनके हर किरदार को लोग आज भी याद रखते हैं .
अपने दमदार अभिनय से हिंदी सिनेमा जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाले संजीव कुमार को अपने कैरियर के शुरूआती दिनों में वह दिन भी देखना पड़ा की उन्हे नायक के रूप में काम करने का अवसर नहीं मिला काफी दिनों तक.
वर्ष 1960 में उन्हें हम हिन्दुस्तानी फिल्म में छोटी-सी भूमिका मिली. 1960 से वर्ष 1968 तक संजीव कुमार फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे.
बतौर मुख्य किरदार तमाम हिट फिल्में देने के बावजूद जब इनके पास ‘शोले’ फिल्म में ठाकुर का किरदार निभाने का ऑफर आया तो सहज ही स्वीकार कर लिया. इस किरदार को निभाने के लिए और इसके बाद से पूरा भारत इन्हें ठाकुर के नाम से पहचानने लगा.
डायरेक्टर ‘सत्यजीत रे’ की एक मात्र हिंदी फ़िल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में प्रभावशाली भूमिका भी निभायी जो उस वक़्त अपने आप में एक गौरव की बात थी.
बीस वर्ष की आयु में गरीब मध्यम वर्ग के इस युवा ने कभी भी छोटी भूमिकाओं से कोई परहेज नहीं किया। संघर्ष फिल्म में दिलीप कुमार की बांहों में दम तोड़ने का दृश्य इतना शानदार किया कि खुद दिलीप कुमार भी सकते में आ गये.
उन्होंने जया बच्चन के ससुर, प्रेमी, पिता और पति की भूमिकाएं भी निभायी. महज़ बीस वर्ष की आयु में एक वृद्ध आदमी का ऐसा जीवन्त किरदार निभाया था जिसे देखकर पृथ्वीराज कपूर भी दंग रह गये.
संजीव कुमार को दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार से नवाज़ा गया हैं. वर्ष 1975 में प्रदर्शित फ़िल्म आंधी के लिए सबसे पहले उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार दिया गया वर्ष 1976 में भी फ़िल्म अर्जुन पंडित में बेमिसाल अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार से नवाज़े गए.
ज़िन्दगी भर कुंवारे ही रहे संजीव कुमार ने विवाह नहीं किया परन्तु प्रेम कई बार किया था। उन्हें यह अन्धविश्वास था की इनके परिवार में बड़े पुत्र के 10 वर्ष का होने पर पिता की मृत्यु हो जाती है।
इनके दादा, पिता और भाई सभी के साथ यह हो चुका था। संजीव कुमार ने अपने दिवंगत भाई के बेटे को गोद लिया और उसके दस वर्ष का होने पर उनकी मृत्यु हो गयी।
अपने दमदार अभिनय से दर्शकों में खास पहचान बनाने वाला यह अजीम कलाकार ने 6 नवम्बर 1985 (उम्र 47)मुम्बई, महाराष्ट्र मे दुनिया को अलविदा कह गया।