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सुनो जोगी, मैं तुम्हें माँ की तरह याद करती हूँ – संध्या नवोदिता

सुनो जोगी
मैं तुम्हें माँ की तरह याद करती हूँ

माँ जो गई सितारों में
और तुम हुए जैसे धरती का सितारा
क्या कहूँ कि एक ऐसी तुम्हारी बस्ती है इस जमीन की
जहाँ कोई घोड़ा, तांगा, जहाज नहीं जाता
कोई रेल नहीं जाती तुम तक
कोई पगडण्डी, कोई शाहराह

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सिर्फ एक विराट व्याकुलता है
जो सीधे तुम्हारे नगर को जाती है
तुम्हारा घर निगाहों की ज़द में नहीं
पर मेरा हृदय वहीं छूट गया है

खुशियों का शहर एक स्वप्न हुआ
और तुम हुए स्वप्न के सारथी
जाने कहाँ गुम हुए
कि मेरा शानदार जीवन रथ ठहर गया

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सुनो जोगी
वो सात समुद्र तट मिलकर पुकारते हैं
ऊंचे स्वर में तुम्हारा नाम
सुवर्णरेखा के मैंगरूवों में तुम्हारी छाया आज भी दीखती है
तुम अब भी तैर रहे हो उड़ीसा के बैकवाटर में

धरती की वो अंतिम सात पनीली दीवारें
रेत पर उगते, गायब होते सुर्ख फूल
तुम्हारे हाथों से बिखरी ज़िन्दा सीपियाँ
तुम्हारी खुशी का उन्मत्त जवाब देते ज्वार

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मेरा आसमान तुम्हारी लाखों चहलकदमियों का गवाह है

सुनो जोगी
माना कि अंतिम यात्रा पूर्ण हुई
पर ऐसे कोई किसी को नहीं भूलता
हम तो मृतकों तक को हर बरसी पर
धरती पे ले आते हैं जिमाने

सुनो जोगी
याद एक ज़िन्दा शगल है
और मैं तुम्हें माँ की तरह अथाह बेचैनी से सुमिरती हूँ।

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–संध्या नवोदिता

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