Shiv Ling ki puja mein Shankh se jal kyon nahin chadhate hain?
कहते हैं शिव भोले हैं और अपने भक्तों पर बहुत जल्दी प्रसन्न होकर उनके जीवन से पर॓शानियों को दूर करते हैं। शिवजी के पूजन के भी कुछ विधान हैं, जिनका पालन शास्त्रों के अनुसार जरूरी माना गया है और ऐसी मान्यता है कि यदि शिवजी के शिवलिंग या शिव पूजन के समय कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो भोलेनाथ जल्दी प्रसन्न होते हैं।
हिंदू धर्म में शंख को बहुत ही पवित्र माना जाता है और पूजा के लगभग सभी कार्यों में शंख का प्रयोग होता है लेकिन शिवलिंग पर शंख से जल नहीं चढ़ाना चाहिए। ऐसा करना वर्जित है जिसके पीछें एक पौराणिक कथा है। इस बारें में विस्तार से शिवपुराण में बताया गया है।
शिव पुराण के अनुसार शंखचूड़ नाम का महापराक्रमी दैत्य हुआ। शंखचूड़ दैत्यराज दंभ का पुत्र था। शंखचूड़ दैत्यराज दंभ को जब बहुत समय तक कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई तब उसने विष्णु के लिए घोर तप किया और तप से प्रसन्न होकर विष्णु प्रकट हुए। विष्णु ने वर मांगने के लिए कहा, तब दंभ ने एक महापराक्रमी तीनों लोकों के लिए अजेय पुत्र का वर मांगा और विष्णु तथास्तु बोलकर अंत्रध्यान हो गए।
तब दंभ के यहां शंखचूड़ का जन्म हुआ और उसने पुष्कर में ब्रहमा की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। ब्रहमा के वर मांगने के लिए कहा और शंखचूड़ ने वर मांगा कि वो देवताओं के लिए अजेय हो जाए। ब्रहमा ने तथास्तु बोला और उसे श्रीकृष्ण कवच दिया फिर वे अंत्रध्यान हो गए। जाते जाते ब्रहमा की आज्ञा पाकर तुलसी और शंखचूड़ का विवाह हो गया। ब्रहमा और विष्णु के वर के मद में चूर दैत्यराज शंखचूड़ ने तीनों लोकों पर स्वामित्व स्थापित कर लिया।
देवताओं ने त्रस्त होकर विष्णु से मदद मांगी परंतु उन्होंने खुद दंभ को ऐसे पुत्र का वरदान दिया था अतः उन्होनें शिव से प्रार्थना की। तब शिव ने देवताओं के दुख दूर करने का निश्चय किया और वे चल दिए। परंतु श्री कृष्ण कवच और तुलसी के पतिव्रत धर्म की वजह से शिवजी भी उसका वध करने से सफल नहीं हो पा रहे थे तब विष्णु ने ब्राहमण रूप बनाकर दैत्यराज से उसका श्री कृष्ण कवच दान में ले लिया और शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के शील का अपहरण कर लिया।
अब शिव ने शंखचूड़ को अपने त्रिशूल से भस्म कर दिया और उसकी हड्डियों से शंख का जन्म हुआ। चूंकि शंखचूड़ विष्णु भक्त था अतः लक्ष्मी विष्णु को शंख का जल अति प्रिय है और सभी देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है। परंतु शिव ने चूंकि उसका वध किया था अतः शंख का जल शिव को निषेध बताया गया है। इसी वजह से शिवजी को शंख से जल (Shiv Ling ki puja) नहीं चढ़ाया जाता है।