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साहिर लुधियानवी Shayari in Hindi एक मुलाक़ात, कि आज तेरे ख़यालों में खो गया हूँ मैं

Sahir Ludhianvi shayari – Ek Mulakat, ki aaj tere khayalon mein kho gaya hoon main

तिरी तड़प से न तड़पा था मेरा दिल,लेकिन
तिरे सुकून से बेचैन हो गया हूँ मैं
ये जान कर तुझे जाने कितना ग़म पहुचें
कि आज तेरे ख़यालों में खो गया हूँ मैं

किसी की हो के तू इस तरह मेरे घर आई
कि जैसे फिर कभी आए तो घर मिले न मिले
नज़र उठाई, मगर ऐसी बे-यकीनी से
कि जिस तरह कोई पेशे-नज़र मिले न मिले
तू मुस्कुराई, मगर मुस्कुरा के रुक सी गई
कि मुस्कुराने से ग़म की खबर मिले न मिले
रुकी तो ऐसे, कि जैसे तिरी रियाज़त को
अब इस समर से ज़ियादा समर मिले न मिले
गई तो सोग में डूबे क़दम ये कह के गए
सफ़र है शर्त, शरीके-सफ़र मिले न मिले

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तिरी तड़प से न तड़पा था मेरा दिल,लेकिन
तिरे सुकून से बेचैन हो गया हूँ मैं
ये जान कर तुझे क्या जाने कितना ग़म पहुंचे
कि आज तेरे ख़यालों में खो गया हूँ मैं

साहिर लुधियानवी की शायरी – चंद बेहतरीन शेर

Sahir Ludhianvi Poetry – Ek Mulakat, ki aaj tere khayalon mein kho gaya hoon main

tirii tadp se n tadpaa thaa meraa dil,lekin
tire sukoon se bechain ho gayaa hoon main
ye jaan kar tujhe jaane kitanaa gm pahuchen
ki aaj tere khyaalon men kho gayaa hoon main

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kisii kii ho ke too is tarah mere ghar aaii
ki jaise fir kabhii aae to ghar mile n mile
najr uthaaii, magar aisii be-yakiinii se
ki jis tarah koii peshe-najr mile n mile
too muskuraaii, magar muskuraa ke ruk sii gaii
ki muskuraane se gm kii khabar mile n mile
rukii to aise, ki jaise tirii riyaajt ko
ab is samar se jiyaadaa samar mile n mile
gaii to sog men doobe kdam ye kah ke gae
safr hai shart, shariike-safr mile n mile

tirii tadp se n tadpaa thaa meraa dil,lekin
tire sukoon se bechain ho gayaa hoon main
ye jaan kar tujhe kyaa jaane kitanaa gm pahunche
ki aaj tere khayalon mein kho gaya hoon main

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Sahir Ludhianvi– Ek Mulakat (in Urdu)

تِرِی تَڑَپَ سے نَ تَڑَپا تھا میرا دِلَ،لیکِنَ
تِرے سُکُونَ سے بیچَینَ ہو گَیا ہُوں مَیں
یے جانَ کَرَ تُجھے جانے کِتَنا غَمَ پَہُچیں
کِ آجَ تیرے خَیالوں میں کھو گَیا ہُوں مَیں

کِسِی کِی ہو کے تُو اِسَ تَرَہَ میرے گھَرَ آئی
کِ جَیسے پھِرَ کَبھِی آئے تو گھَرَ مِلے نَ مِلے
نَزَرَ اُٹھائی، مَگَرَ اَیسِی بے-یَکِینِی سے
کِ جِسَ تَرَہَ کوئی پیشے-نَزَرَ مِلے نَ مِلے
تُو مُسْکُرائی، مَگَرَ مُسْکُرا کے رُکَ سِی گاِی
کِ مُسْکُرانے سے غَمَ کِی کھَبَرَ مِلے نَ مِلے
رُکِی تو اَیسے، کِ جَیسے تِرِی رِیازَتَ کو
اَبَ اِسَ سَمَرَ سے زِیادا سَمَرَ مِلے نَ مِلے
گاِی تو سوگَ میں ڈُوبے قَدَمَ یے کَہَ کے گاے
سَفَرَ ہَے شَرْتَ، شَرِیکے-سَفَرَ مِلے نَ مِلے

تِرِی تَڑَپَ سے نَ تَڑَپا تھا میرا دِلَ،لیکِنَ
تِرے سُکُونَ سے بیچَینَ ہو گَیا ہُوں مَیں
یے جانَ کَرَ تُجھے کْیا جانے کِتَنا غَمَ پَہُںچے
کِ آجَ تیرے خَیالوں میں کھو گَیا ہُوں مَیں

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Sahir Ludhianvi– Ek Mulakat (in Punjabi)

ਤਿਰੀ ਤਡਪ ਸੇ ਨ ਤਡਪਾ ਥਾ ਮੇਰਾ ਦਿਲ,ਲੇਕਿਨ
ਤਿਰੇ ਸੁਕੂਨ ਸੇ ਬੇਚੈਨ ਹੋ ਗਯਾ ਹੂ ਮੈੰ
ਯੇ ਜਾਨ ਕਰ ਤੁਝੇ ਜਾਨੇ ਕਿਤਨਾ ਗਮ ਪਹੁਚੇੰ
ਕਿ ਆਜ ਤੇਰੇ ਖਯਾਲੋੰ ਮੇੰ ਖੋ ਗਯਾ ਹੂ ਮੈੰ

ਕਿਸੀ ਕੀ ਹੋ ਕੇ ਤੂ ਇਸ ਤਰਹ ਮੇਰੇ ਘਰ ਆਈ
ਕਿ ਜੈਸੇ ਫਿਰ ਕਭੀ ਆਏ ਤੋ ਘਰ ਮਿਲੇ ਨ ਮਿਲੇ
ਨਜਰ ਉਠਾਈ, ਮਗਰ ਐਸੀ ਬੇ-ਯਕੀਨੀ ਸੇ
ਕਿ ਜਿਸ ਤਰਹ ਕੋਈ ਪੇਸ਼ੇ-ਨਜਰ ਮਿਲੇ ਨ ਮਿਲੇ
ਤੂ ਮੁਸ੍ਕੁਰਾਈ, ਮਗਰ ਮੁਸ੍ਕੁਰਾ ਕੇ ਰੁਕ ਸੀ ਗਈ
ਕਿ ਮੁਸ੍ਕੁਰਾਨੇ ਸੇ ਗਮ ਕੀ ਖਬਰ ਮਿਲੇ ਨ ਮਿਲੇ
ਰੁਕੀ ਤੋ ਐਸੇ, ਕਿ ਜੈਸੇ ਤਿਰੀ ਰਿਯਾਜਤ ਕੋ
ਅਬ ਇਸ ਸਮਰ ਸੇ ਜਿਯਾਦਾ ਸਮਰ ਮਿਲੇ ਨ ਮਿਲੇ
ਗਈ ਤੋ ਸੋਗ ਮੇੰ ਡੂਬੇ ਕਦਮ ਯੇ ਕਹ ਕੇ ਗਏ
ਸਫਰ ਹੈ ਸ਼ਰ੍ਤ, ਸ਼ਰੀਕੇ-ਸਫਰ ਮਿਲੇ ਨ ਮਿਲੇ

ਤਿਰੀ ਤਡਪ ਸੇ ਨ ਤਡਪਾ ਥਾ ਮੇਰਾ ਦਿਲ,ਲੇਕਿਨ
ਤਿਰੇ ਸੁਕੂਨ ਸੇ ਬੇਚੈਨ ਹੋ ਗਯਾ ਹੂ ਮੈੰ
ਯੇ ਜਾਨ ਕਰ ਤੁਝੇ ਕ੍ਯਾ ਜਾਨੇ ਕਿਤਨਾ ਗਮ ਪਹੁੰਚੇ
ਕਿ ਆਜ ਤੇਰੇ ਖਯਾਲੋੰ ਮੇੰ ਖੋ ਗਯਾ ਹੂ ਮੈੰ

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