रम्भा तृतीया व्रत (Rambha Trutiye Vrat Katha in Hindi)
रम्भा तृतीया व्रत ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन रखा जाता है। इस दिन अप्सरा रम्भा की पूजा की जाती है। इसे रम्भा तीज भी कहा जाता है।
हिन्दू मान्यतानुसार सागर मंथन से उत्पन्न हुए 14 रत्नों में से एक रम्भा थीं। कहा जाता है कि रम्भा बेहद सुंदर थी। कई साधक् रम्भा के नाम से साधना कर सम्मोहनी शिक्षा प्राप्त करते हैं।
रम्भा तृतीया व्रत का विधान (Rambha Tritiya Vrat Vidhi in Hindi)
रम्भा तृतीया के दिन विवाहित स्त्रियां गेहूं, अनाज और फूल से लक्ष्मी जी की पूजा करती हैं। इस दिन देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है। इस दिन स्त्रियां चूड़ियों के जोड़े की भी पूजा करती हैं। जिसे अपसरा रम्भा और देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। कई जगह इस दिन माता सती की भी पूजा की जाती है।
रम्भा तृतीया व्रत का फल
हिन्दू पुराणों के अनुसार इस व्रत को रखने से स्त्रियां को सुहाग बना रहता है। अविवाहित स्त्रियां भी अच्छे वर की कामना से इस व्रत को रखती हैं। रम्भा तृतीया का व्रत शीघ्र फलदायी माना जाता है।
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रंभा तृतीया व्रत या कहें रंभा तीज व्रत किया जाता है। इस वर्ष यह व्रत 21 मई यानी [आज] गुरुवार के दिन है। इस दिन विवाहित महिलाएं इसलिए व्रत रखती हैं ताकि उन्हें गणेश जी जैसी बुद्धिमान संतान(पुत्री/पुत्र) मिले। और उन पर गौरी यानी माता पार्वती और शिवजी की कृपा बनी रहे।
इस दिन प्रात: दैनिक नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें और भगवान सूर्य को लिए दीपक प्रज्वलित करें। पूजन में ऊं महाकाल्यै नम:, महालक्ष्म्यै नम:, महासरस्वत्यै नम:, आदि मंत्रों का जाप करते हुए पूजा करें।
इस दिन मंदिर और घर पर ही शिव, पार्वती और गणेश जी की आराधना करके सास-ससुर से आशीर्वाद लिया जाता हैं। सास को पकवान व्यंजन और वस्त्र भेंट किए जाते हैं।
धर्म ग्रंथों के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रंभा तृतीया व्रत किया जाता है। पुराणों के अनुसार इस दिन माता पार्वती का जन्म हुआ था। इस बार यह व्रत 20 मई, बुधवार को है। इस दिन महिलाएं सौभाग्य के लिए व्रत रखती हैं तथा पार्वतीजी की पूजा करती हैं। इस व्रत की विधि इस प्रकार है-
व्रत विधि
सुबह स्नान आदि से निपट कर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें और पांच अग्नियों क्रमश: गार्हपत्य, दक्षिणाग्नि, सभ्य, आहवनीय और भास्कर को प्रज्वलित करें। उनके मध्य में माता पार्वती की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद विधि-विधान पूर्वक पूजन करें। पूजन में ऊं महाकाल्यै नम:, महालक्ष्म्यै नम:, महासरस्वत्यै नम:, इत्यादि नाम मंत्रों से पूजन करना चाहिए।