एक बार कड़ाके की ठंड में एक निर्धन व्यक्ति नंगे पैर शरीर पर कपड़े लगभग न के बराबर पहने हुए, किसी राजमार्ग पर खुशी से गाता हुआ चला जा रहा था। रास्ते में उसकी भेंट एक अन्य धनी व्यक्ति से हुई। वह घोड़े पर बैठा हुआ था। उसके शरीर पर कोट, लबादा और टोपी थी। पैरों में उसने मजबूत चमड़े के जूते पहन रखे थे।
निर्धन इस कड़कती सर्दी में भी काफी प्रसन्न और सामान्य था, जबकि धनी व्यक्ति उतना सब होने के बाद भी ठंड से बेहाल था। उसने निर्धन को इस स्थिति में भी इतना खुश देखा तो आश्चर्य में डूबकर बोला- ”क्या बात है भाई? तुम इस कड़कड़ाती ठंड में बिना गरम कपड़ों के इधर-उधर घूम रहे हो। तुम्हें ठंड नहीं लगती क्या? और आखिर कैसे सह लेते हो इतनी सर्दी?“
”क्यों श्रीमान!“ दूसरा हंसा- ”भला आप खुले चेहरे पर ठंड कैसे सहते हैं?“
”मेरे चेहरे को इसकी आदत पड़ गई है।“ धनी व्यक्ति ने उत्तर दिया।
”बस तो फिर, मेरा शरीर भी ऐसा ही है। तुम्हारे चेहरे के समान मेरा पूरा शरीर इसका आदी हो चुका है।“
निष्कर्ष- जब हम कठिनाइयों के आदी हो जाते हैं, तो उन्हें आसानी से सहन कर लेते हैं।