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पूजा के बाद मुरझाए फूलों और पूजा सामग्री का क्या करें? Puja samagri ka kya karen?

Puja ke bad murjhaye foolon aur puja samagri ka kya karna chahiye?

हमारे यहां कोई उत्सव हो या अन्य कोई शुभ कार्य आयोजित किया जाता है। अक्सर पूजा के बाद सामग्री बच जाती है। (puja samagri ka kya karen) जैसे ताजे फूलों को पूजा में हमेशा रखा जाता है। इसका कारण यह है कि फूल की सुगंध और सुन्दरता पूजन करने वाले के मन को सुन्दरता और शांति का एहसास दिलावाती है। Puja ke bad murjhaye foolon aur puja samagri ka kya karna chahiyeऐसा माना जाता है कि जब पूजा में इनका उपयोग किया जाता है, तो फूल अद्धुत ऊर्जा का सृजन पूरे घर में करते हैं और इससे घर में खुशियों का आगमन होता है। जबकि इसके विपरीत मुरझाये फूल मृत्यु के सूचक माने जाते हैं।

फल व पूजा सुपारी, चावल, धान व अन्य पूजन सामग्री को भी ज्यादा समय तक पूजा के बाद घर में रखना शुभ नहीं माना जाता। पूजा की बची हुई सामग्री, जो उपयोगी हो उसे ब्राहमण को दान कर देना चाहिए और जो उपयोगी न हो उसे तुरंत नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए।

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इसके अलावा पितृ या भगवान को उपले पर लगाए गए भोग की राख को भी घर में रखना शुभ नहीं माना जाता है। तीनों बातों के पीछे का कारण वास्तु से ही जुड़ा है। वास्तु के अनुसार इन तीनों ही चीजों को घर में रखने पर घर की सकारात्मक ऊर्जा का स्तर कम होने लगता है व नकारात्मक ऊर्जा बढ़ने लगती है।

हवन–पूजन के बाद बची हुई सामग्री और भस्म यानी राख आदि का न तो कहीं जल में विसर्जन करना चाहिए और न ही कूड़े में फेंकना चाहिए। यदि इन दोनों में से कोई भी तरीका अपनाया जाता है तो वह पाप का भागी बनने जैसा है। तो समाधान क्या? समाधान यह है कि बची हुई हवन सामग्री या भस्म को कहीं कच्ची जगह पर छोटा सा गड्ढा खोदकर दबा देना चाहिए। इससे मिट्टी का हिस्सा मिट्टी में ही मिल जाएगी और आप अनजाने पाप से बच जाएंगे।

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अधिकांश लोग रोज हवन या पूजन करते हैं। वे इनके जरिये प्रभु या अपने ईष्ट देव की कृपा की कामना करते हैं, लेकिन इसके अगले कदम में वे अनजाने में ऐसा काम कर डालते हैं, जिससे उनके पूरे हवन–पूजन का फल खत्म हो जाता है और उल्टे उनके सिर पाप चढ़ जाता है। यह कदम होता है बची हुई भस्म और पूजन सामग्री का नदी या तालाब में विसर्जन या इन्हें कूड़े में फेंक देना। उन्होंने बताया कि अधिकांश लोगों को पता ही नहीं होता कि पूजन सामग्री का विर्सजन नदी में किया तो होगा उल्टा असर । वे कहते हैं, इसी अनजाने में वे जल–देवता को दूषित करने का अपराध कर बैठते हैं, जबकि जलदेव को अमृत देने वाला माना जाता है।

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