भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सर्वोच्च एवं सम्मानित नेता श्री प्रणव मुखर्जी भारत के तेरहवें राष्ट्रपति के रूप में चयनित हुए। उन्होंने इस मुकाम को 4 दशकों से अधिक समय की संघर्षपूर्ण जिंदगी राजनीति में बिताने के बाद हासिल किया । वे प्रथम बंगाली हैं जिन्होंने इस गरिमामयी पद को श्री पी.ए. संगमा, जो कि एन.डी.ए., बीजू जनता दल तथा ए.आई.ए.डी.एम.के. के सांझा उम्मीदवार थे, को हराकर हासिल किया। इस गरिमामयी पद के लिए चयनित होने के बाद उन्होंने भारत के वित्त मंत्री के पद से त्याग पत्र दे दिया तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश ने 25 जुलाई, 2012 को उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलायी।
76 वर्षीय मुखर्जी तीव्र प्रतिभा और अनुभव की प्रतिमूर्ति हैं। उन्होंने भारत सरकार में विदेश, रक्षा और वित्त जैसे महत्वपूर्ण विभागों का कार्यभार संभाला और अपनी कसौटी पर खरे उतरे। उन्हें एक चलता फिरता शब्दकोश भी माना जाता है जिन्हें राजनीति और सरकार के कार्य-कलाप में संबंधित सभी तरह के पहलुओं की जानकारी हासिल है।
श्री मुखर्जी बंगाल प्रांत के मिराटी गाँव में एक बंगाली परिवार में 11 दिसम्बर, 1955 को पैदा हुए थे। उनके पिता का नाम कामदा किंकर मुखर्जी और माता का नाम राजलक्ष्मी मुखर्जी था। वे सुश्री सुव्रा मुखर्जी के साथ 13 जुलाई, 1957 को परिणय सूत्र में बंधे। उनके दो पुत्र तथा एक लड़की है। पढ़ाई, बागवानी और संगीत उनके मुख्य शौक हैं। उनके पिताजी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे तथा उन्होंने 10 वर्षों से ज्यादा का समय जेल में बिताया।
श्री मुखर्जी ने सुरी विद्यासागर कालेज से स्नातकोत्तर की परीक्षा इतिहास और राजनीति शास्त्र जैसे विषयों को लेकर पास की। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से एल.एल.बी की पढ़ाई पूरी की और अपनी जिंदगी की शुरूआत डिप्टी एकाउंटेंट जनरल (तार विभाग) में वरीय लिपिक के रूप में शुरू की। उसके बाद उन्होंने पत्रकारिता की परीक्षा भी पास की। उन्होंने बंगाली पब्लिकेशन के लिए भी कार्य किया। वे भारतीय सांख्यिकी विभाग कलकत्ता में चेयरमैन के पद पर भी आसीन हुए। वे रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय और निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के चेयरमैन और अध्यक्ष भी रहे। वे बंगिया साहित्य परिषद और विघान मेमोरियल ट्रस्ट के पूर्व ट्रस्टी भी हैं।
इस महामानव ने 1969 ई. में भारतीय राजनीति में कदम रखा। उस समय उनका घरेलू प्रांत बंगाल वामपंथी विद्रोह के कहर से गुजर रहा था। वे राज्य सभा के लिए लगातार मनोनीत हुए और 2004 में लोक सभा के लिए चयनित हुए। सर्वप्रथम इंदिरा गाँधी के मंत्रिमंडल में उन्हें 1973 ई. मे राजस्व और बैकिंग विभाग का पदभार सौंपा गया। उस समय से अब तक उन्होंने कई सरकारों में अत्यंत महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया और अपना योगदान दिया। वे इंदिरा गाँधी के वफादारों में से एक थे। उन्होंने अपनी जिंदगी की शुरूआत में तीव्र सफलता प्राप्त की, इसलिए उन्हें ‘सभी समस्याओं के उचित समाधान का द्योतक’ भी कहा जाता है। उन्होंने आपातकाल के समय इंदिरा कैबिनेट में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उस समय शाह कमीशन ने सरकार के कार्य कलाप को प्रभावित करने के लिए उन्हें दोषी ठहराया था। लेकिन वे इस पर खरे उतरे। वे 1982 से 1984 तक भारत के वित्त मंत्री भी रहे। उनके कार्यकाल को भारतीय अर्थव्यवस्था को समृद्धशाली बनाने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इसी के पश्चात इंदिरा गाँधी को तीव्र सफलता मिली थी जिसमें उन्होंने विश्व मौद्रिक संगठन के कर्ज की अंतिम किश्त अदा की थी। उनके कार्यकाल में डा. मनमोहन सिंह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर नियुक्त हुए थे। 1978 में वे राज्यसभा के कांग्रेस के उप नेता भी चुने गये थे। उन्हें 1980 में राज्य सभा को नेता भी बनाया गया था।
1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद उनकी राजनीति जिंदगी डगमगा गयी थी। उन्हें राजीव गाँधी के कार्यकाल में कांग्रेस से अलग-थलग कर दिया गया था। लेकिन पी.वी. नरसिंहराव की सरकार में राजीव गाँधी की मृत्यु के बाद पुनः प्रकाश में आए। उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया गया। उन्होंने ने राव सरकार में प्रथम बार 1995 से 1996 के बीच में विदेश मंत्रालय का कार्यभार संभाला। 1998-99 में सोनिया गाँधी के कांग्रेस को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का जनरल सेक्रेट्री बनाया गया। उन्हें 2000 में पश्चिम बंगाल कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया गया और उन्होंने 2010 तक इस पद को संभाला।
मुखर्जी 2004 में लोक सभा के नेता बने। उन्होंने पश्चिम बंगाल के जांगीपुर चुनाव क्षेत्र से 2009 में चुनाव जीता। उन्होंने डा. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी अनेक पदों को सुशोभित किया। उन्हें पद्म विभूषण, बेस्ट एडमिनिस्ट्रेटर एवार्ड इन इंडिया, 2001 तथा एशिया के वित्त मंत्री 2010 के सम्मान से भी सम्मानित किया गया। उनकी कुशाग्र बुद्धि, तीक्ष्ण याददाश्त तथा अनूठे ज्ञान के लिए उन्हें काफी सम्मान भरी नजरों से देखा जाता है। उनके कार्यकाल में भारत एक नया सवेरा देखेगा। भारतीय लोकतंत्र उनकी ओर आशा भरी नजरों से यह देख रहा है कि क्या वे सिर्फ इसकी शाही मर्यादा को ही बरकरार रखेंगे या इसे एक कदम आगे ले जायेंगे जहां डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने इसे छोड़ा था।