पीत करना तो हम से निभाना सजन – इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें
पीत करना तो हम से निभाना सजन हम ने पहले ही दिन था कहा ना सजन
तुम ही मजबूर हो हम ही मुख़्तार हैं ख़ैर माना सजन ये भी माना सजन
अब जो होने के क़िस्से सभी हो चुके तुम हमें खो चुके हम तुम्हें खो चुके
आगे दिल की न बातों में आना सजन कि ये दिल है सदा का दिवाना सजन
ये भी सच है न कुछ बात जी की बनी सूनी रातों में देखा किए चाँदनी
पर ये सौदा है हम को पुराना सजन और जीने का अपने बहाना सजन
शहर के लोग अच्छे हैं हमदर्द हैं पर हमारी सुनो हम जहाँ-गर्द हैं
दाग़-ए-दिल मत किसी को दिखाना सजन ये ज़माना नहीं वो ज़माना सजन
उस को मुद्दत हुई सब्र करते हुए आज कू-ए-वफ़ा से गुज़रते हुए
पूछ कर उस गदा का ठिकाना सजन अपने ‘इंशा’ को भी देख आना सजन
हमें तुम पे गुमान-ए-वहशत था – इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें की ग़ज़लें
हमें तुम पे गुमान-ए-वहशत था हम लोगों को रुस्वा किया तुम ने
अभी फ़स्ल गुलों की नहीं गुज़री क्यूँ दामन-ए-चाक सिया तुम ने
इस शहर के लोग बड़े ही सख़ी बड़ा मान करें दरवेशों का
पर तुम से तो इतने बरहम हैं क्या आन के माँग लिया तुम ने
किन राहों से हो कर आई हो किस गुल का संदेसा लाई हो
हम बाग़ में ख़ुश ख़ुश बैठे थे क्या कर दिया आ के सबा तुम ने
वो जो क़ैस ग़रीब थे उन का जुनूँ सभी कहते हैं हम से रहा है फ़ुज़ूँ
हमें देख के हँस तो दिया तुम ने कभी देखे हैं अहल-ए-वफ़ा तुम ने
ग़म-ए-इश्क़ में कारी दवा न दुआ ये है रोग कठिन ये है दर्द बुरा
हम करते जो अपने से हो सकता कभी हम से भी कुछ न कहा तुम ने
अब रह-रव-ए-माँदा से कुछ न कहो हाँ शाद रहो आबाद रहो
बड़ी देर से याद किया तुम ने बड़ी दर्द से दी है सदा तुम ने
इक बात कहेंगे ‘इंशा’-जी तुम्हें रेख़्ता कहते उम्र हुई
तुम एक जहाँ का इल्म पढ़े कोई ‘मीर’ सा शेर कहा तुम ने