परिश्रम का महत्व पर लघु निबंध (Hindi essay on Importance of Hardworking)
तुलसी ने बड़े ही सरल और स्पष्ट रूप से कहा है कि-
सकल पदारथ है जग माहीं।
कर्महीन नर पावत नाहीं।।
अर्थात् इस संसार में तो सभी प्रकार की वस्तुएँ हैं, लेकिन कर्महीन अर्थात् उद्योग कार्य धन्धा करने वाला ही व्यक्ति इन सभी प्रकार के पदार्थों को प्राप्त करता है। इसके विपरीत आलसी और कर्महीन व्यक्ति बार बार दुख झेलता हुआ संसार की उलझनों में पड़ा रहता है। कर्म के महत्व को प्रकाशित करते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश देते हुए अर्जुन को भी कर्म करने की ओर प्रेरित किया है और कहा है कि तुम्हें केवल कर्म करने में ही अधिकार होना चाहिए, फल में नहीं होना चाहिए-
‘कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन।’
इसी तरह से प्रसिद्ध अंग्रेजी विद्धान कार्लिचल ने कहा है कि – काम ही पूजा है।
हम देखते हैं कि इस संसार में कुछ लोग बहुत सम्पन्न और सुखी है तो कुछ लोग बहुत ही दुखी दिखाई देते हैं। इस प्रकार दोनों ही प्रकार के दिखाई देने वाले व्यक्तियों में पहली श्रेणी का व्यक्ति उद्योगी अर्थात् परिश्रमी है और दूसरे प्रकार का व्यक्ति आलसी अर्थात् कर्महीन है। इस आधार पर हम कहेंगे कि परिश्रमी व्यक्ति अवश्य महान होता है।
जीवन महत्व की दृष्टि से परिश्रम करना अत्यन्त अधिक है। परिश्रम से हमें जीवन की वह इच्छापूर्ण होती है, जिसे हम चुपचाप बैठकर नहीं प्राप्त कर सकते अपितु परिश्रम के द्वारा ही प्राप्त कर सकते हैं। आलसी व्यक्ति तो केवल भाग्य की ही माला जपा करता हैं और अपने कष्टों और अभावों को केवल अभाग्य के माथे पर ही ठोकता फिरता है। यह जो कुछ भी प्राप्त करता है, वह केवल भाग्य अभाग्य के ही प्रसाद या प्रभाव को ही मानता है। अभाग्य या दुर्भाग्यशाली व्यक्ति तो सदैव कर्मक्षेत्र से भागता फिरता है और सुख की प्राप्ति की मन ही मन कल्पनाएँ किया करता है। उसे जहां सुख दिखाई पड़ता है, वहां ही दौड़ता है, लेकिन सुख तो मृगतृष्णा के समान उसकी पकड़ से बाहर हो जाता है।
परिश्रम का महत्व निश्चय ही जीवन विकास के अर्थ में सत्य और यथार्थ है। आज परिश्रम के द्वारा ही मनुष्य ने विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ विज्ञान के द्वारा अपने अधिकार में कर ली है। इस विज्ञान की विभिन्न सुविधाओं के द्वारा मनुष्य आज चाँद पर पहुँचने में सफल हो चुका है। परिश्रम के द्वारा ही मनुष्य आज चन्द्रलोक तक ही नहीं, अपितु वह मंगल लोक तक पहुँचने का उद्योग कर रहा है। यह आशा की जा रही है कि वह दिन दूर नहीं होगा, जब मनुष्य की यह बढ़ी हुई इच्छा अवश्य पूरी होकर रहेगी।
परिश्रमी व्यक्ति अपने सहित अपने समाज और राष्ट्र को उन्नतिशील और विकसित बनाते हुए अपनी यश कीर्ति की पताका को ऊँचा करते हुए प्रशंसनीय होता है। इस प्रकार से जो व्यक्ति परिश्रमी और कर्म में लगे होते हैं वे अवश्यमेव महान और उच्चकोटि के व्यक्ति होते हैं। हम यह देखते हैं कि आज विश्व के जो भी राष्ट्र विकासशील या विकसित हैं, उनके नागरिक परिश्रमी और कर्मठ हैं। उनकी अपार कर्म साधना और अधिक परिश्रम का ही फल है कि वे राष्ट्र विश्व के महान राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठा के पात्र बने हुए हैं। इस सभी महान राष्ट्रो के नागरिक कोई कलाकार हैं तो कोई उद्योगपति, कोई इंजीनियर है, तो कोई महान वैज्ञानिक है। इसी तरह से कोई दार्शनिक है तो कोई बड़ा नेता है। इस प्रकर के विभिन्न प्रतिभाओं और योग्यताओं के फलस्वरूप विश्व के राष्ट्र अपनी अपनी महानता और श्रेष्ठता को बनाए रखने में आगे बढ़े हुए हैं। अतएव हम कह सकते हैं कि परिश्रम का महत्व निसन्देह रूप से स्वीकार करने योग्य है। रूस, अमेरिका, चीन, जापान, फ्रांस, जर्मन आदि राष्ट्रों की महानता अपने अपने नागरिकों के घोर परिश्रम के कारण ही बनी हुई है। उदाहरणार्थ हम कह सकते हैं कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान एटम बम के विस्फोट के कारण जापान बिल्कुल ही ध्वस्त होकर नेस्तानाबूद हो गया था। लेकिन इसने अपने अपार परिश्रम शक्ति के द्वारा ही विश्व में आज अपना अत्यधिक विशिष्ट स्थान बना लिया है। इसी प्रकार ग्रेट-ब्रिटेन, इजराइल आदि देशों के उदाहरण दिए जा सकते हैं।
परिश्रमी साधारण और असाधारण दोनों ही प्रकार के व्यक्ति होते हैं- साधारण व्यक्ति परिश्रमी होकर उन्नति और विकास के पथ की ओर बढ़ते हैं। जबकि असाधारण और विशिष्ट श्रेणी के व्यक्ति घोर परिश्रम के द्वारा न केवल अपना अपितु पूरे लोक समाज या हित चिन्तन करते हुए कर्मशील बने रहते हैं। राम, श्रीकृष्ण, ईसा, गौतम बुद्ध, परशुराम, महावीर, महात्मा गाँधी, ईसामसीह, गुरू नानक आदि महान व्यक्तियों के नाम इसी सन्दर्भ में लिए जा सकते हैं। आज की भी युग में ऐसे महान व्यक्ति परिश्रम करते हुए देश समाज और स्वयं के जीवन को कृतार्थ और महान बनाने में प्रयत्नशील हैं।
परिश्रमी मनुष्य की प्रशंसा और सम्मान सभी ओर से किया जाता है। सभी बुद्धिजीवियों और विचारकों ने परिश्रमी व्यक्ति की प्रशंसा करते हुए आलसी और कर्महीन व्यक्तियों की बहुत बड़ी निदा की है।
कादर मन कह एक अधारा।
दैव दैव आलसी पुकारा।।
संक्षेप में कह सकते हैं कि परिश्रम का महत्व निसन्देह है। परिश्रमी की किसी भी दशा में विजय होती है। परिश्रमी ही भाग्य विधाता है और दुर्भाग्य का परम विरोधी है। दूसरी ओर आलसी और कर्महीन व्यक्तियों का जीवन आलस्य से भरा हुआ होता है जो उसे जीवित ही मृत्यु के समान सदैव कष्टदायक होता है।