‘परिश्रम सफलता की कुंजी है’ अतः शेखचिल्ली की तरह दिवास्वप्न देखने से कोई अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता। कुछ पाने का केवल एक ही रास्ता है- मेहनत! इतिहास साक्षी है कि कोई भी व्यक्ति हो, जाति हो या देश, उसकी उन्नति का राज एक ही है- ‘निरन्तर कठारे परिश्रम’।
परिश्रम वह मूल मंत्र है जो खजानों को खोल देता है, पर्वतों को चीर देता है, सारी दुनिया को मुट्ठी में कर लेता है और असफलता को फूँक मार कर उड़ा देता है। जरूरत है लगन, आस्था और अथक प्रयास की। जिस प्रकार कुएँ के पत्थर पर रस्सी के बार बार आने जाने से निशान पड़ जाते हैं उसी तरह परिश्रम द्वारा कठिन से कठिन कार्यों को भी सरल बनाया जा सकता है।
तुलसीदास जी ने कहा था कि दुनिया में किसी पदार्थ की कमी नहीं है, पर वह उसी को प्राप्त होते हैं जो परिश्रम करता है। कर्महीन व्यक्ति उन्हें कैसे प्राप्त कर सकता है। संसार में जितने भी महान लोगों की आत्मकथायें पढ़ी गयीं वह यही भेद खोलती हैं कि कोई बच्चा माँ के गर्भ से भाग्य लेकर नहीं आया। इंसान ने अपनी किस्मत खुद बनायी। हर पल संघर्ष किया, ठोकरें खायीं, मुसीबतें उठायीं मगर उसने हार नहीं मानी उसने कर्म को ही पूजा समझा और भगवान उस पर कृपालु हुये।
कहा भी गया है- भगवान उसकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करता है। आप एक कदम बढायें भगवान आपको प्रेरणा, बल, मार्गदर्शन सब कुछ देगा। आज मानव चाँद पर जा पहुँचा है। उसने बाँध बनाये, पर्वतों की छाती चीर सड़कें बनायीं, पुल बनायें, यह सब आसान नहीं था, इसके पीछे वर्षों की मेहनत है। हजारों लोगों का कठिन परिश्रम ही हमारे सुख का कारण है। अतः अपनी, अपने समाज और देश की प्रगति के लिये हमें मन, वचन और कर्म से सदैव प्रयास करते रहना चाहिये।
करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान,
रसरी आवत जात ते, सिल पर पड़त निसान।