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नववधू के लिए कौन से श्रृंगार जरूरी माने गए हैं?

Nav-vadhu ke liye kaun se shrangar jaruri mane jate hain?

हिन्दू धर्म में नववधू के लिए कुछ श्रृंगार अनिवार्य माने गए हैं। हमारे धर्मशास्त्रों में भी इन सभी श्रृंगारों को सुहागन का प्रतीक माना गया है। इसीलिए सभी नववधू के लिए ये सोलह श्रृंगार बहुत जरूरी और एक तरह का शुभ शकुन माने गए हैं।
बिन्दी – सुहागन स्त्रियां कुंकुम या सिंदुर से अपने ललाट पर लाल बिन्दी जरूर लगाती है और इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
सिंदूर – सिन्दूर को स्त्रियों का सुहाग चिन्ह माना जाता है। विवाह के अवसर पर पति अपनी पत्नी की मांग में सिंदूर भर कर जीवन भर उसका साथ निभाने का वचन देता है।
काजल – काजल आंखों का श्रृंगार है। इससे आंखों की सुन्दरता तो बढ़ती ही है, काजल दुल्हन को लोगों को बुरी नजर से भी बचाती है।
मेहंदी – मेहंदी के बिना दुल्हन का श्रृंगार अधूरा माना जाता है। परिवार की सुहागिन स्त्रियां अपने हाथों और पैरों में मेहंदी रचाती है। नववधू के हाथों में मेंहदी जितनी गाढ़ी रचती है, ऐसा माना जाता है कि उसका पति उतना ही ज्यादा प्यार करता है।
शादी का जोड़ा – शादी के समय दुल्हन को जरी के काम से सुसज्जित शादी का लाल जोड़ा पहनाया जाता है।
गजरा – दुल्हन के जूड़े में जब तक सुगंधित फूलों का गजरा न लगा हो तब तक उसका श्रृंगार कुछ फीका सा लगता है।
मांग टीका – मांग के बीचों बीच पहना जाने वाला यह स्वर्ण आभूषण सिंदूर के साथ मिलकर वधू की सुन्दरता में चार चांद लगा देता है। राजस्थान में ‘बोरला’ नामक आभूषण मांग टीका का ही एक रूप है। ऐसी मान्यता है कि इसे सिर के ठीक बीच इसलिए पहना जाता है कि वधू शादी के बाद हमेशा अपने जीवन में सही और सीधे रास्ते पर चले और वह बिना किसी पक्षपात के सही निर्णय ले।
नथ – विवाह के अवसर पर पवित्र अग्नि के चारों ओर सात फेरे लेने के बाद में देवी पार्वती के सम्मान में नववधू को नथ पहनाई जाती है।
कर्ण फूल – कान में पहनने वाला या आभूषण कई तरह की सुन्दर आकृतियों में होता है, जिसे चेन के सहारे जुड़े में बांधा जाता है।
हार – गले में पहना जाने वाला सोने या मोतियों का हार पति के प्रति सुहागन स्त्री के वचनबद्धता का प्रतीक माना जाता है। वधू के गले में वर द्वारा मंगलसूत्र (काले रंग की बारीक मोतियों का हार जो सोने की चेन में गुंथा होता है) पहनाने की रस्म की बड़ी अहमियत होती है। इसी से उसके विवाहित होने का संकेत मिलता है।
बाजूबन्द – कड़े के समान आकृति वाला यह आभूषण सोने या चांदी का होता है। यह बांहों में पूरी तरह कसा रहता है, इसी कारण इसे बाजूबन्द कहा जाता है।
कंगन और चूड़ियां – हिन्दू परिवारों में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है कि सास अपनी बड़ी बहू को मुंह दिखाई रस्म में सुखी और सौभाग्यवती बने रहने का आर्शीवाद के साथ वही कंगन देती है, जो पहली बार ससुराल आने पर उसकी सास न दिए थे। पारम्परिक रूप से ऐसा माना जाता है कि सुहागिन स्त्रियों की कलाईयां चूड़ियों से भरी रहनी चाहिए।
अंगूठी – शादी के पहले सगाई की रस्म में वर वधू द्वारा एक दूसरे को अंगूठी पहनाने की परंपरा बहुत पुरानी है। अंगूठी को सदियों से पति पत्नी के आपसी प्या और विश्वास का प्रतीक माना जाता रहा है।
कमरबन्द – कमरबन्द कमर में पहना जानेवाला आभूषण है, जिसे स्त्रियां विवाह के बाद पहनती है। इससे उनकी छरहरी काया और भी आकर्शक दिखाई देती है। कमरबंद इस बात का प्रतीक है कि नववधू अब अपने नए घर की स्वामिनी है। कमरबंद में प्रायः औरतें चाबियों का गुच्छा लटका कर रखती है।
बिछुआ – पैर के अंगूठे में रिंग की तरह पहने जाने वाले इस आभूषण को अरसी या अंगूठा कहा जाता है। पारम्पारिक रूप से पहने जाने वाले इस आभूषण के अलावा स्त्रियां कनिष्ठा को छोड़कर तीनों अंगुलियों में बिछुआ पहनती हैं।
पायल – पैरों में पहने जाने वाले इस आभूषण के घुघरूओं की सुमधुर ध्वनि से घर के हर सदस्य को नव वधू की आहट का संकेत मिलता है।

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