Advertisement

मातृभक्ति- Prerak Prasang

बात उन दिनों की है जब देश गुलाम था। संत गुरूदास वंद्योपाध्याय कलकत्ता हाईकोर्ट में न्यायाधीश नियुक्त थे। वह कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति भी हुआ करते थे।

मातृभक्ति- Prerak Prasang

Advertisement

एक दिन वह हाईकोर्ट में किसी मुकदमे की सुनवाई कर रहे थे। तभी एक बुढि़या वहां आई जो गुरूदास की धाय थी। उसने गुरूदास को बाल्यावस्था में दूध पिलाया था। कलकत्ता में गंगा स्नान के लिए वह मुद्दतों बाद आई थी। तभी उसे ख्याल आया कि चलो, गुरूदास से ही मिल लिया जाए, बहुत समय हो गया उसे देखे हुए।

वह जैसे तैसे पूछ ताछकर हाईकोर्ट पहुंची थी। चूंकि गंगा स्नान करके आ रही थी, इसलिए वस्त्र गीले ही थे। हाईकोर्ट के द्वार पर पहुंचकर वह चपरासी से विनती करने लगी कि उसे भीतर जाने दे। लेकिन चपरासी तैयार नहीं था।

Advertisement

इत्तफाक से गुरूदास की नजर द्वार पर पड़ी तो वह न्यायाधीश की कुर्सी से तुरंत उठ खडे हुए। वह द्वार की ओर बढ़े तो चपरासी किनारे हट गया। गुरूदास ने उसे वृद्धा को दंडवत किया तो कोर्ट में उपस्थित सभी लोग विस्मय से देखने लगे। वृद्धा ने गुरूदास को उठाकर छाती से लगा लिया और अश्रुधारा बहाती हुई आशीर्वाद देने लगी।

तब गुरूदास ने सबको प्रसन्नतापूर्वक बताया, ‘यह मेरी मां है। बाल्यावस्था में इन्होंने मुझे अपना दूध पिलाया है।’ बाद में गुरूदास उस वृद्धा को घर ले गए और उसका पूर्ण मान-सम्मान किया।

Advertisement
Advertisement