पौश के मासांत की सुबह थी। कोहरे से राजमहल ढका था। मानो प्रकृति ने शीत से बचाने के लिए महल के चारों ओर कोहरे के कंबल को ढक लिया हो। फिर धूप निकल आई। चांदी के पर्वत स्वर्णमय हो उठे। दिनपति को आता देखकर पक्षी वृंदगान करने लगे। ठंडी हवा ने चंवर डुलाया। हौले हौले हिलकर, झुककर वृक्षों ने दिन के अधिपति को प्रणाम किया। महारानी अपने नित्यकर्म से निवृत हुई। दासियों से श्रृंगार कराया। सोने के काम वाला लहंगा पहना। भोट के राजा से उपहार मिला भारी कीमती दुशाला ओढ़ा और पायल छनकाती रानी चल पड़ीं फूलों की बगिया की ओर। हाल ही में माली द्धारा रोपे गए दुर्लभ फूल के पौधों को निहारकर रानी फल के पेड़ों की ओर जाकर दाड़िम के नीचे रूक गईं। दाड़िम में लाल फूल निकल आए थे। आड़ू और सेब भी सफेद दूधिया फूलों की गंध हवा में बिखेर रहे थे। अचानक एक कौआ दाड़िम की ऊंची डाल पर बैठकर कांव कांव करने लगा। कौए की कांव कांव ने रानी का ध्यान भंग किया। कौआ कांव कांव के बाद ‘काकुट कुट, काकुटकुट’ की आवाज कर रहा था। रानी ने उसकी ‘काकुटकुट’ पर कान लगाए। बचपन में एक साधु ने उनकी सेवा से प्रसन्न होकर उन्हें पक्षियों की भाषा समझने का वरदान दिया था। वह वरदान आज सफलीभूत हो रहा था। रानी ने ध्यान से सुना, कौआ कह रहा था, ‘का क का कुट कुट रानी का सुहाग खतरे में है। का का कुट कुट मंत्री घुगती राजा का वध करेगा। का का कुट कुट घुगती आज राजा का वध करेगा। का का कुट कुट घुगती कल संक्रांति के दिन राजगद्दी पर बैठेगा।’ रानी ने सुना समझा। उसे काटो तो खून नहीं। उसने फिर सच्चाई जानने के लिए कौए से कहा, ”सांच छै सर्र। झूठ से मर“ और कौआ उड़कर पेड़ पर बैठ गया। रानी ने फिर दोहराया और कौआ फिर उड़कर इस बार दूर जाकर कांव कांव करने लगा।
कौवे की सूचना ने रानी को हिला दिया। वह भय से कंपायमान हो उठीं। ओढ़ा हुआ दुशाला गिर गया। रानी सरपट राजमहल की ओर भागीं। राजा गहन निद्रा में थे। जाड़ों की ठंडी सुबह में गरम लिहाफ छोड़ने का कष्ट वे न झेलना चाहते थे। रानी ने झकझोर कर राजा को जगाया और कौए द्धारा प्राप्त सूचना का खुलासा राजा को दिया। राजा रानी की इस क्षमता से परिचित थे। एक बार पहले भी कौए ने उनके राज्य को बचाया था। पड़ोसी राज्य द्धारा आक्रमण किए जाने की पूर्व सूचना कौए ने रानी को दी थी और राजा के तत्काल सेना इकट्टी कर संभावित आक्रमण को विफल कर दिया था। राजा ने तुरंत अपने विश्वस्त जासूसों को मंत्री घुगती सिंह के महल में समाचार लाने भेजा। जासूस ने वापस आकर मंत्री के महल में आपत्तिजनक चहल पहल तथा अपरिचित चेहरों के होने की सूचना दी। राजा दुविधा में पड़ गए।
घुगती सिंह राजा के दरबार में प्रधानमंत्री ही नहीं, प्रमुख परामर्शदाता भी था, राजा की युवावस्था से वह उस पद पर था और विश्वासपात्र था। सफेद मिरजई और चूड़ीदार सलवार में उसका छरहरा लंबा बदन खूब फबता था। सिर पर पगड़ी और लंब चेहरे पर बड़ी शरारती, सुरमा लगी आंखों से कपट स्पष्ट झलकता था। लंबी सुतवां नाक के नीचे वह मूंछें रखता था। गाल कुछ पिचके थे, लंबी ठुड्डी आगे को कुछ झुकी थी । दाढ़ी सफाचट रहती थी। कमर में लाल कमरबंद से लाल रेश्मी बटुआ लटकता रहता था। अभिवादन का उत्तर वह झुककर हाथ जोड़कर देता था। राजा के सामने झुककर, अभिवादन कर वह हाथ बांधे खड़ा आदेश की प्रतीक्षा करता था। राजा उसका अदब और बड़े भाई समान आदर करते थे। वही मंत्री आज उनके विरूद्ध षड्यंत्र कर रहा था। क्रोध, र्शम व अवसाद से राजा का सिर घूमने लगा। उधर रानी की कल्पना रूक नहीं रही थी। महल के मंदिर में अखंड चंडीपाठ चल पड़ा था। समय कम था। राजा को निर्णय लेना था और अभी।
राजा ने ताली बजाई। दो भालेधारी सेवक तुरंत उपस्थित हुए। राजा द्धारा राजाज्ञा हुई, ”तुरंत प्रधान सेनापति को दरबार में बुलाया जाए। पर गुप्त रूप से। किसी को कानों कान खबर न हो। सावधानी बरती जाए।“
सेनापति उपस्थित हुआ, तो राजा ने आदेश दिया, ”सेनापति! तुरंत प्रधानमंत्री घुगती सिंह के महल को घेरकर उस महल में उपस्थित पुरूषों को घुगती सिंह सहित पकड़कर दरबार में लाया जाए। कारवाई अविलंब हो।“
सेनापति किंकर्तव्यविमूढ़ होकर राजा का मुख ताकता रह गया। आज उसने पहली बार राजा की भृकुटी तनी हुई देखी थी। किंतु राजाज्ञा थी। उसका उल्लंघन करना असंभव था। सेनापति ने राजा का अभिवादन किया और सशस्त्र सेना की एक टुकड़ी लेकर प्रधानमंत्री के महल की ओर चल पड़ा।
घुगती सिंह पिछली रात देर तक मंत्रणा कर देर से सोया था। राजगद्दी पर बैठने की उत्तेजना ने नींद उसकी आंखों से भगा दी थी। अभी सुबह ही आंखें लगी थी कि बाहर हो रहे कोलाहल से उसकी नींद उचट गई। मंत्री उठ बैठा। शाल लपेटकर बाहर आया, तो महल को सेना से घिरा पाया। मंत्री ने कड़कर सेनापति से पूछा, ”सेनापति, यह सवेरे सवेरे कोलाहल कैसा? प्रधानमंत्री के महल में बिना आज्ञा प्रवेश का दुःसाहस कैसे किया? सेना को तुरंत हटा दिया जाए और इउ उदंडता के लिए जवाब तलबी के लिए तैयार रहो।“
सेनापति ने मुस्कारते हुए शांत स्वर में कहा, ”मंत्रीवर! हमें खेद है कि आपके आराम में व्यवधान आया, किंतु राजाज्ञा को टालना हमारे वश में नहीं है। आपको व उपस्थित अतिथियों को तुरंत राजदरबार में ले आने का ओदश है। यदि आप स्वेच्छा से न चले, तो आपको बांध कर, बंदी बनाकर लाने का आदेश है। अतः आप तुरंत चलें।“ मंत्री बहुत लाल पीला हुआ, पर अंत में उसे हथियार डालने पड़ें। मंत्री सहित समस्त अतिथियों को राजा के सामने उपस्थित किया गया। राजा ने सबको कारागार में डलावकर केवल एक व्यक्ति से पूछताछ की। पहले तो वह नकारता रहा, पर मार पड़ने पर टूट गया और कौए की सूचना की पुष्टि कर दी।
राजा के क्रोध की सीमा न रही, उन्होंने जल्लादों को आदेश दिया , ”घुगती सिंह के अतिथियों को तुरंत फांसी पर चढ़ा दो और विश्वासघाती घुगती सिंह को ऐसी मौत दो कि सदियों तक दुनिया उसे याद करती रहे। इसकी गरदन इतनी मरोड़ो , इतनी मरोड़ों कि वह धड़ से नुच जाए। इसके शरीर की बोटी बोटी काटकर, कड़ाह में तलकर कल संक्रांति की सुबह सुबह समस्त कौवों को बुलाकर खिला दो।“
ऐसा ही किया गया। घुगती सिंह का वीभत्स अंत हुआ। तब से उस घटना की याद में आज भी उत्तराखंड में मकर संक्रांति के दिन घुगती सिंह के आटे के पुतले बनाकर उन्हें तलकर कौओं को खिलाया जाता है और इस पर्व को त्योहार के रूप में मनाया जाता है। माघ मास की द्वितीय की सुबह मुंह अंधेरे आपको बच्चे गाते सुनाई देंगे।
ले कौवा घुगुत,
तू दे मेंकणी सोने की जुगुत।
ले कौआ तलवार,
तू दे सोने का परिवार।
काले कौवा, काले, काले, काले।