Maa Parvati ka vahan Bagh
माता पार्वती का वाहन बाघ है तो मां दुर्गा का वहन शेर। मांता दुर्गा को शेरावाली कहा जाता है। बाघ तो माता पार्वती का वाहन है। बाघ अदम्य साहस, क्रूरता, आक्रामकता और शौर्यता का प्रतीक है। यह तीनों विशेषताएं मां पार्वती के आचरण में भी देखने को मिलती है। बाघ की दहाड़ के आगे संसार की बाकी सभी आवाजें कमजोर लगती हैं।
मां पार्वती का हृदय बहुत ही कोमल है। मां की पूजा यदि सच्चे मन और श्रृद्धा के साथ की जाएं तो हर बिगड़े कार्य बन जाते हैं, लेकिन यदि माता का किसी भी रूप में अपमान हो या उनसे वाद खिलाफी की गई हो तो फिर उनका क्रोध देखने लायक होगा। कई लोग मन्नत को कर लेते हैं लेकिन काम होने के बाद उसे पूरी नहीं करते हैं तब मां उनको याद दिलाने के लिए भक्त को घनचक्कर बना देती है।
एक दिन मां पार्वती और भगवान शिव साथ बैठे थे। मजाक में ही शिवजी ने माता को काली कह दिया। मां को बहुत लगा और वह कैलाश छोड़कर एक वन में चली गई और कठोर तपस्या में लीन हो गई। इस बीच एक भूखा शेर मां पार्वती को खाने की इच्छा से वहां पहुंचा, लेकिन वह वहीं चुपचाप बैठ गया।
माता के प्रभाव के चलते वह बाघ भी तपस्या कर रही मां के साथ वहीं सालों चुपचाप बैठा रहा। मां ने हठ कर ली थी कि जब तक वह गौरी नहीं हो जाएगी तब तक वह यहीं तपस्या करेगी। तब शिवजी वहां प्रकट हुए और देवी को गौरा होने का वरदान देकर चले गए। फिर माता ने पास की ही नदी में स्नान किया और बाद में देखा की एक बाघ वहां चुपचाप बैठा माता को ध्यान से देख रहा है। माता पार्वती को जब यह पता चला कि यह शेर उनके साथ ही तपस्या में यहां सालों से बैठा रहा है तो माता ने प्रसंन्न होकर उसे वरदान स्वरूप अपना वाहन बना लिया। तब से मां पार्वती का वाहन बाघ हो गया।
दूसरी कथा अनुसार संस्कृत भाषा में लिखे गए ‘स्कंद पुराण’ के तमिल संस्करण ‘कांडा पुराणम’ में उल्लेख है कि देवासुर संग्राम में भगवान शिव के पुत्र मुरुगन (कार्तिकेय) ने दानव तारक और उसके दो भाइयों सिंहामुखम एवं सुरापदम्न को पराजित किया था।
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अपनी पराजय पर सिंहामुखम माफी मांगी तो मुरुगन ने उसे एक शेर में बदल दिया और अपना माता दुर्गा के वाहन के रूप में सेवा करने का आदेश दिया।
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