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लडू गोपाल की पूजा क्यों?

Lddu-Gopal ki puja kyon ki jati hai?

एक दिन मैंने अपनी पुत्री से जो कि अंग्रेजी स्कूल से ग्रेजुएट है, पूछा कि तुम लडू गोपाल की इतनी सेवा करती हो – जैसे सुबह उठाना, नहलाना, कपड़े पहनाना, माखन मिश्री का भोग लगाना, दोपहर में भोजन कराना, फिर फल का भोग लगाना, रात्रि में फिर भोजन, फिर शयन आरती के समय दिन की पोशाक उतार कर शयन पोशाक पहनाकर सुलाना, शीतकाल में उनको ऊनी वस्त्र पहनाना आदि, यह सब क्यों करती हो? इसके पीछे क्या रहस्य है? वह बोली मुझे पता नहीं? मम्मी जैसे समझाई हैं, वैसे ही करती हूं, वह मुझसे बतलाने का आग्रह करने लगी। मैंने उसे समझाया तुम्हारी शादी नहीं हुई है (शादी के पहले की बात है)। अभी तुम इस निर्जीव मूर्ति को अपना कत्र्तव्य जानकर इतनी सेवा करती हो। इससे तुम्हें लगाव हो गया है। जब शादी के बाद तुम्हारे बच्चा होगा, वह तो तुम्हारा अपना खून होगा। अतः स्वभाविक है कि मूर्ति से भी ज्यादा लगाव तुम्हें अपने बच्चों से होगा। स्वभावतः तुम अपने बच्चों की देखभाल मूर्ति से भी ज्यादा बेहतर करोगी। इस तरह बाल्यकाल से ही बच्चों में संस्कार पनपते हैं। बच्चा तो बालपन में भगवान का स्वरूप होता है। उसको हम जिस साँचे में ढालेंगे वैसा ही वह बन जायेगा।

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