Kya Jo Aankhon Ko Dikhta Hai, Wahi Sach Hai?
देखने के लिए आँख तो होनी ही चाहिए पर उसके साथ साथ प्रकाश का भी होना जरूरी है. क्युकी हमारीआँखे सिर्फ प्रकाश में ही देख सकती हैं. तो प्रकश क्या है ??? “प्रकाश इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम का हिस्सा है और जो प्रकाश हमें दीखता है उसे हम दृश्य प्रकाश भी कहते हैं. और पृथ्वी पे प्रकाश का एक मात्र स्रोत भगवान् सूरज हैं.”
फोटोन एक एलीमेंट्री पार्टिकल है जो हर प्रकार के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन का और सूर्य की रोशनी का भी जिससे हम देखते हैं. चुकी फोटोन का आपना कोई द्रव्यमान नहीं होता इसलिए ये बहुत दूर तक बहुत तेज़ी से बिना बदले यात्रा कर सकता है.
चुकी हम जानते है की रंग 3 प्रकार के होते है लाल पीला और नीला. जिससे मिल के दुनिया के सरे रंग बने हैं पर हकीकत में “प्रकाश की अलग अलग आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) को ही हम अलग अलग रंगो में देखते है.”
उदहारण के तौर पे सूर्य के सामने प्रिज़्म रखने पर हमें रंगो के प्रकार दिखाई देता है और प्रिज़्म को हटा देने पे कौन सा रंग दीखता है ??? क्या आप सूर्य की रौशनी को सफ़ेद कहेंगे या हल्का पीला या दोनों का मिश्रण या पृथ्वी की गतिमान होने की वजह से सूर्य की रौशनी को अलग अलग कोण से देखना.
आँखों के बीच का हिस्सा जिसे प्यूपिल कहते है रौशनी उसी से आँखों में जाती है, लेंस से टकराती है, फिर रेटिना पर पड़ती है, फिर दिमाग के पास एक चित्र जाता है, फिर दिमाग याद्दाश्त बनाए रखने वाली कोिशिकओ से उस चित्र की विवेचना करता है फिर आपको बताता है की ये लाल गुलाब है.
इतना तो हम सबने पढ़ा है. तो जहाँ प्यूपिल की दिशा (कोण) होगी वहां का प्रकाश आँखों में जायेगा. एक मजेदार बात अगर आपका दिमाग हटा दें और तब आँख कहा जाय अब देखो. तो भी आप देख नहीं सकते कारन – आप समझ नहीं सकते तो देख के भी देख नहीं सकते.
प्रकाश की उपस्थिति में, पदार्थ प्रकाश की कई आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) को सोख लेता है पर सरे नहीं सोख पता और जिसे वो नहीं सोख पता वो प्रकाश परावर्तित हो जाता है और वही प्रवर्तित प्रकाश हमारी आँखों में जाता है. जो हमें पदार्थ का भौतिक वजूद और उसका रंग दिखता है.
मतलब साफ है प्रवर्तित प्रकाश ही उस पदार्थ का रंग है जबकि वो पदार्थ उस रंग को ही नहीं सोख रहा है. जो रंग उसका नहीं है वो उस पदार्थ के गुण के कारन हमें दिखाई दे रहा है. मतलब दूध सफ़ेद नहीं और घी पीली नहीं इंद्रा धनुष 7 रंगो का नहीं.
असल में रंग होते ही नहीं ये प्रकाश, प्रकाश का परावर्तन, देखने का कोण, पदार्थ का गुण और हमारे आँख के देखने की प्रक्रिया जो दिमाग की वजह से पूरी होती है.