साधारण तौर पर देखा जाता है कि जब भी कोई स्त्री गर्भवती होती है तो उसकी चाल-ढाल, खान-पान को देखकर परिवार के बड़े-बुजुर्ग गर्भस्थ शिशु के लिंग का अंदाजा लगा लेते हैं। अगर आप इस अंदाजे पर यकीन कर लेते हैं तो ये खुद को छलने जैसी ही बात है।
ऐसे ही कुछ भ्रामक मान्यताएं हैं जो बच्चे के जन्म के बाद अकसर देखी और सुनी जाती हैं। आज हम आपको उन्हीं से परिचित करवाने जा रहे हैं।
बहुत से लोग आज भी इस भ्रांति को अपनाते हैं कि नवजात बच्चे की तस्वीर नहीं खींचनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से उसकी आंखों की रोशनी जा सकती है। निश्चित तौर पर ये एक मनगढ़ंत तथ्य ही है।
आपने देखा होगा आजकल तो सभी माता-पिता बच्चे के जन्म लेते ही उसकी फोटो सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर डाल देते हैं, तो क्या आप ये कहेंगे कि वो अपने बच्चे की सेहत को लेकर गंभीर नहीं हैं।
बहुत से परिवारों में आज भी यह परंपरा निभाई जाती है जिसके अंतर्गत नवजात शिशु को मखमल के कपड़े में बांधा जाता है। इसके पीछे यह माना जाता है कि मखमल का कपड़ा बहुत मुलायम होता है और बच्चा इसमें खुश रहता है।
लेकिन आप एक बात बताइए, बच्चा तो अपनी परेशानी नहीं बता सकता लेकिन हम तो ये बात समझते हैं कि वे उस कपड़े में बंधकर, हिलडुल नहीं पाएगा ऐसे में जाहिर है कि वह पूरी तरह असहज हो जाएगा।
हिन्दू धर्म में बच्चे के जन्म के तीसरे साल मुंडन प्रथा निभाई जाती है। मुंडन से पहले पहले बच्चे के सिर पर कंघी करना सही नहीं माना गया है।
इसके पीछे यह माना जाता है कि शिशु की खोपड़ी बहुत कोमल होती है, उस पर कंघी करने से वह अपना आकार बदल सकती है।
अगर वाकई ऐसा है तो आपको किसने कहा कि जिस कंघी को आप प्रयोग में लाती हैं उसी कंघी को अपने बच्चे के सिर पर फेरें। भई मार्केट बच्चों के सामानों से भरा हुआ है, आपको उनके लिए स्पेशल कंघी भी मिल जाएगी।
अकसर माताएं या परिवार के बड़े-बुजुर्ग बच्चे के माथे पर काला टीका लगा देते हैं। ऐसा इसलिए ताकि उसे किसी की बुरी नजर ना लगे।
यह किसी भी रूप में लॉजिकल तो नहीं है लेकिन एक काला टीका आपके बच्चे की खूबसूरती नहीं छीन सकता, इसलिए इसमें हर्ज भी क्या है।
आमतौर पर माना जाता है कि बच्चे के सिरहाने के नीचे लोहे की वस्तु रखने से वह नींद में डरता नहीं है।
लेकिन एक बात बताइए क्या वाकई आपको पता है कि आपका बच्चा सपने में क्या देख रहा है?
ऐसा माना जाता है कि बच्चे के सिरहाने के भीतर सरसो के दाने भरने से उसके सिर को सही शेप मिल जाती है?
क्या वाकई!!
सामान्यतौर पर माना जाता है कि जो बच्चे जल्द ही बोलना शुरू नहीं करते उन्हें कौए का झूठा खिलाना चाहिए।
ऐसा करने से वे जल्दी बोलने लगते हैं। देखिए, हर बच्चा दूसरे बच्चे से अलग होता है, उन्हें उनका टाइम दीजिए, सब अपने आप ही हो जाता है।
बच्चे को शीशा नहीं दिखाना चाहिए, ऐसा करने से उसे बुरे सपने आने लगते हैं।
क्या अजीब बात है, बच्चा खुद इतना प्यारा है, शीशे में अपनी शक्ल देखकर उसे कैसे बुरे सपने आ सकते हैं।
माना जाता है कि बच्चे की कलाई पर नजरिया बांधाना उन्हें बुरी नजर और नकारात्मक ऊर्जाओं से बचाता है।
अब वाकई ऐसा होता है या नहीं, ये तो नहीं पता लेकिन एक बात तो है ये नजरिये बच्चे की कलाई पर लगते बहुत प्यारे हैं।
समय के साथ-साथ मान्यताओं का आकार भी बदलता जा रहा है, लेकिन फिर भी कहीं ना कहीं इन्हें स्वीकारा गया है। जब तक ये बच्चे की सेहत या उसके भविष्य पर प्रभाव ना डालें तब तक इन्हें अपनाने में कोई समस्या भी नहीं है।