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कौन से देवता की कितनी बार करें परिक्रमा जिससे पूरी हो सारी इच्छाएं

Koun Se Devta Ki Kitni Bar Karein Parikrama Jisse Puri Ho Sari Icchayen

कुछ लोगों ने प्रभु की आराधना करने के विभिन्न तरीकों में कुछ छोटे-छोटे तरीके भी जोड़ दिए हैं, जिनका अपना ही एक खास अर्थ एवं महत्व है। धार्मिक स्थलों पर भक्तों द्वारा की जा रही परिक्रमा की ही बात कर लीजिए। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या किसी भी अन्य धार्मिक स्थल पर आपने लोगों को उस पवित्र स्थल की, वहं मौजूद भगवान की मूरत की या फिर किसी भी ऐसी चीज़ के आसपास चक्कर लगाते हुए देखा होगा जिसकी जनमानस में काफी मान्यता है।

लोग कहते हैं कि परिक्रमा करनी जरूरी है, लेकिन क्या कभी आपने जाना है क्यों? परिक्रमा, जिसे संस्कृत में प्रदक्षिणा कहा जाता है, इसे प्रभु की उपासना करने का माध्यम माना गया है। सनातन धर्म के महत्वपूर्ण वैदिक ग्रंथ ऋग्वेद से हमें प्रदक्षिणा के बारे में जानकारी मिलती है।

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ऋग्वेद के अनुसार परिक्रमा का अर्थ है दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हुए देवी-देवता की उपासना करना। इस परिक्रमा के दौरान प्रभु हमारे दाईं ओर गर्भ गृह में विराजमान होते हैं। लेकिन यहां महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि प्रदक्षिणा को दक्षिण दिशा में ही करने का नियम क्यों बनाया गया है?Koun Se Devta Ki Kitni Bar Karein Parikrama Jisse Puri Ho Sari Icchayen

मान्यता है कि परिक्रमा हमेशा घड़ी की सुई की दिशा में ही की जाती है तभी हम दक्षिण दिशा की ओर आगे बढ़ते हैं। यहां पर घड़ी की सूई की दिशा में परिक्रमा करने का भी महत्व मौजूद है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के आधार पर ईश्वर हमेशा मध्य में उपस्थित होते हैं। यह स्थान प्रभु के केंद्रित रहने का अनुभव प्रदान करता है।

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यह बीच का स्थान हमेशा एक ही रहता है और यदि हम इसी स्थान से गोलाकार दिशा में चलें तो हमारा और भगवान के बीच का अंतर एक ही रहता है। यह फ़ासला ना बढ़ता है और ना ही घटता है। इससे मनुष्य को ईश्वर से दूर होने का भी आभास नहीं होता और उसमें यह भावना बनी रहती है कि प्रभु उसके आसपास ही हैं।

यदि आप परिक्रमा करने के लाभ जानेंगे तो वाकई खुश हो जाएंगे। क्योंकि परिक्रमा तो भले ही आप करते होंगे, लेकिन शायद ही इससे मिलने वाले आध्यात्मिक एवं शारीरिक फायदों को जानते होंगे। जी हां… परिक्रमा करने से हमारी सेहत को भी लाभ मिलता है।

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यूं तो हम मानते ही हैं कि प्रत्येक धार्मिक स्थल का वातावरण काफी सुखद होता है, लेकिन इसे हम मात्र श्रद्धा का नाम देते हैं। किंतु वैज्ञानिकों ने इस बात को काफी विस्तार से समझा एवं समझाया भी है। उनके अनुसार एक धार्मिक स्थल अपने भीतर कुछ ऊर्जा से लैस होता है, यह ऊर्जा मंत्रों एवं धार्मिक उपदेशों के उच्चारण से पैदा होती है। यही कारण है कि किसी भी धार्मिक स्थल पर जाकर मानसिक शांति मिलती है।

परिक्रमा से मिलने वाला फायदा भी इसी तथ्य से जुड़ा है। जो भी व्यक्ति किसी धार्मिक स्थान की परिक्रमा करता है, उसे वहां मौजूद सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है। यह ऊर्जा हमें जीवन में आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करती है। इस तरह ना केवल आध्यात्मिक वरन् मनुष्य के शरीर को भी वैज्ञानिक रूप से लाभ देती है परिक्रमा।

यदि परिक्रमा का इतिहास जाना जाए तो सबसे पहली परिक्रमा शायद गणेश जी द्वारा अपने माता-पिता, माता पार्वती एवं भगवान शिव की गयी थी। पुराणों में उल्लिखित इस कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों कार्तिकेय तथा गणेश की परीक्षा लेने का सोचा। उनसे कहा कि जो पूरी दुनिया का चक्कर लगाकर सबसे पहले कैलाश पर्वत वापस लौटेगा, वही उनकी नजर में सर्वश्रेष्ठ कहलाएगा।

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मां पार्वती की बात सुनकर कार्तिकेय तो झट से अपने मोर पर सवार होकर निकल गए ब्रह्मांड की परिक्रमा करने, लेकिन गणेश जी वहीं खड़े थे। वे आगे बढ़े, अपने दोनों हाथ जोड़े और अपने माता-पिता की परिक्रमा करने लगे। जब कार्तिकेय पृथ्वी का चक्कर लगाकर वापस लौटे और गणेश को अपने सामने पाया तो वह हैरान हो गए। उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि कैसे गणेश उनसे पहले दौड़ का समापन कर सकते हैं।

बाद में प्रभु गणेश से जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि उनका संसार तो स्वयं उनकी माता हैं, इसलिए उन्हें ज्ञान प्राप्ति के लिए विश्व का चक्कर लगाने की आवश्यकता नहीं है। यह कथा हमें परिक्रमा करने का महत्व समझाती है, लेकिन महत्व के साथ किस देवी-देवता की कितनी बार परिक्रमा की जाए यह भी जानना अति आवश्यक है।

जिस प्रकार से हिन्दू धर्म में हर धार्मिक कार्य एक सम्पूर्ण विधि-विधान से युक्त होता है, ठीक इसी प्रकार से परिक्रमा करने के लिए भी नियम बनाए गए हैं। परिक्रमा किस तरह से की जानी चाहिए, कितनी बार की जाए यह सब जानना जरूरी है। तभी आपके द्वारा की गई परिक्रमा फलित सिद्ध होगी।

यहां हम आपको केवल देवी-देवता की परिक्रमा कितनी बार की जानी चाहिए, इसकी जानकारी देंगे। यदि आप श्रीकृष्ण की मूर्ति की परिक्रमा कर रहे हैं तो इसे तीन बार करें। तभी फल की प्राप्ति होती है।

आदि शक्ति के किसी भी स्वरूप की, मां दुर्गा, मां लक्ष्मी, मां सरस्वती, मां पार्वती, इत्यादि किसी भी रूप की परिक्रमा केवल एक ही बार की जानी चाहिए।

इसी तरह से भगवान विष्णु एवं उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए। श्रीगणेशजी और हनुमानजी की तीन परिक्रमा करने का विधान है। शिवजी की आधी परिक्रमा करनी चाहिए, क्योंकि शिवजी के अभिषेक की धारा को लांघना अशुभ माना जाता है। शायद यह बात आप पहले से जानते ना हों, इसलिए भविष्य में ध्यान रखिएगा।

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परिक्रमा कितनी बार करें यह तो आपने जान लिया, लेकिन परिक्रमा करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान भी रखें। क्योंकि इस दौरान की गई गलतियां आपकी परिक्रमा को बेकार कर सकती हैं। परिक्रमा करने के आपके उद्देश्य को निष्फल कर सकती हैं।

आप जिस भी देवी-देवता की परिक्रमा कर रहे हों, उनके मंत्रों का जप करना चाहिए। इससे आपको अधिक लाभ मिलेगा। भगवान की परिक्रमा करते समय मन में बुराई, क्रोध, तनाव जैसे भाव नहीं होना चाहिए। परिक्रमा स्वयं आपका मन शांत जरूर करती है, लेकिन उससे पहले भी आपको खुद को शांत करना होगा।

एक बात का विशेष ध्यान रखें, परिक्रमा हमेशा नंगे पैर ही करें। परिक्रमा शास्त्रों के अनुसार एक पवित्र कार्य है, इसलिए पैरों में चप्पल पहनकर उसे अशुद्ध नहीं किया जाना चाहिए।

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एक और बात… परिक्रमा करते समय बातें नहीं करना चाहिए। शांत मन से परिक्रमा करें। परिक्रमा करते समय तुलसी, रुद्राक्ष आदि की माला पहनेंगे तो बहुत शुभ रहता है।

शायद आपने कभी गौर किया हो कि परिक्रमा करने से पहले लोग स्नान करते हैं, वस्त्रों को पहने हुए ही जल में डुबकी लगाते हैं और गीले वस्त्रों से ही परिक्रमा करते हैं। दरअसल शरीर को गीला करके परिक्रमा करना शुभ माना गया है, और एक बार बदन गीला करने से जल्द ही सूख जाता है। इसलिए वस्त्र ही गीले कर लिए जाते हैं।

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