कटघरे में खड़े युवक को फांसी की सजा सुनाकर न्यायाधीश कार्नडेप्ट ने युवक पर दृष्टि डाली तो आश्चर्यचकित रह गए। जिस युवक को फांसी की सजा सुनाई थी, वह खिलखिलाकर हंस रहा था।
न्यायाधीश ने सोचा कि शायद इसने सुना नहीं है, इसलिए वह फिर बोले, ‘सुना तुमने! पुलिस इंस्पेक्टर सांडर्स पर बम फैंकने के अपराध में तुम्हें फांसी की सजा दी गई है।’
वह युवक मुस्कराते हुए बोला, ‘बस, इतनी सी सजा! जनाब! हम भारतीय मौत से नहीं डरते। यह तो मेरे लिए गर्व की बात है कि मातृभूमि की सेवा करने का मुझे मौका मिला है। इसके लिए आप धन्यवाद के पात्र हैं।’
उसकी बात सुनकर न्यायाधीश असमंजस में पड़ गया। उसने नम्र लहजे में कहा, ‘यदि तुम चाहो तो हाईकोर्ट में अपील कर सकते हो। तुम्हें सात दिन का समय दिया जाता है।’
वह युवक तिलमिलाकर बोला, ‘मैंने जीवन में भीख मांगना नहीं सीखा है। यदि आपकी मेहरबानी है तो आप मुझे मात्र पांच मिनट का समय दें ताकि मैं अपने दोस्तों को यह बता सकूं कि बम कैसे बनाया जाता है।’
उसका इतना कहना था कि न्यायाधीश झल्लाकर अपनी कुर्सी छोड़कर चला गया। अंततः 11 अगस्त 1908 को वह युवक हंसते हंसते फांसी की फंदे पर लटक गया। वह युवक अन्य कोई नहीं महान क्रांतिकारी व देशभक्त खुदीराम बोस था।