ठौर ढूंढ़ता हूँ, ठाँव ढूंढ़ता हूँ ,
शहर में कहीं अपना गाँव ढूंढ़ता हूँ.
जाने सफर में कहाँ खो गया हूँ ,
ज़मीं से जुदा अपने पाँव ढूंढ़ता हूँ.
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उम्र ने सिखाये मसलिहत के माने ,
वो नौजवान तेवर, वो ताव ढूंढ़ता हूँ.
कोई चिन्गारी दबी रह गयी हो,
मुंज़मिद दिलों में अलाव ढूंढ़ता हूँ.
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लफ्ज़ बेमानी, कलम थक गयी है,
खूं से लिखी, वो किताब ढूंढ़ता हूँ.
~ आनंद मधुकर
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