Advertisement

खूं से लिखी, वो किताब ढूंढ़ता हूँ – आनंद मधुकर

anand madhukarठौर  ढूंढ़ता  हूँ, ठाँव  ढूंढ़ता  हूँ ,
शहर में कहीं अपना गाँव ढूंढ़ता हूँ.

जाने सफर में कहाँ खो गया हूँ ,
ज़मीं से जुदा अपने पाँव ढूंढ़ता हूँ.

Advertisement

उम्र ने सिखाये मसलिहत के माने ,
वो नौजवान तेवर, वो ताव ढूंढ़ता हूँ.

कोई चिन्गारी दबी रह गयी हो,
मुंज़मिद दिलों में अलाव ढूंढ़ता हूँ.

Advertisement

लफ्ज़ बेमानी, कलम थक गयी है,
खूं  से लिखी, वो किताब ढूंढ़ता हूँ.

~ आनंद मधुकर

Advertisement

https://www.facebook.com/anand.madhukar.39

Advertisement