एक बार बड़ी ही भयानक गरमी पड़ रही थी।
एक कौआ कई घंटे से आकाश में उड़ रहा था। तेज गरमी और लगातार उड़ते रहने से उसे बहुत तेज प्यास लगने लगी।
प्यास बुझाने के लिए वह कुछ नीचे उतरा और इधर-उधर पानी की तलाश करने लगा। परंतु आस-पास कहीं भी उसे पानी दिखाई नहीं दिया।
‘ओह! अगर मुझे जल्दी ही पानी नहीं मिला तो मेरी जान ही निकल जाएगी।’कौए ने सोचा।
तभी अचानक कौए को दूर एक पानी का घड़ा नजर आया। वह तुरंत उड़ता हुआ वहां पहुंचा और घड़े में झांकने लगा।
घड़े में पानी तो था, मगर वह घड़े में इतना नीचे था कि कौआ वहां तक अपनी चोंच डालकर पानी नहीं पी सकता था।
कौआ परेशान होकर सोचने लगा- ‘अब क्या करूं? कैसे अपनी चोंच पानी तक पहुचाऊं?’
तभी उसकी बुद्धि में एक तरकीब आई।
घड़े के पास ही कुछ कंकड़ पत्थर पड़े थे। कौआ अपनी चोंच में कंकड़ लेकर घड़े के पास पहुंचा और कंकड़ घड़े में डाल दिया। उसने कई कंकड़ घड़े में डाले।
वह यह देखकर प्रसन्न हो गया कि घड़ें में पानी का स्तर धीरे-धीरे ऊंचा उठने लगा। कौए कर आशा बंधी कि अब वह पानी पी सकेगा। अपनी इस तरकीब की सफलता से खुश होकर वह दुगने उत्साह से घड़े में कंकड़ डालने में जुट गया।
अंत में उसकी कड़ी मेहनत रंग लाई। पानी का स्तर ऊपर उठकर घड़े के मुंह तक पहुंच गया।
अब कौआ बहुत आसानी से पानी पी सकता था। कौए ने छक कर पानी पिया और संतुष्ट होकर दोबारा आकाश में उड़ गया।
शिक्षा – यदि व्यक्ति ठान ले तो क्या नहीं कर सकता।