रहीम के दोहे Rahim ke dohe arth sahit
करम हीन रहिमन लखो, धंसे बड़े घर चोर।
चिंतत ही बड़ लाभ के, जागत हैगो भोर।।
Karam heen rahiman lakho, dhanse bade ghar chor
Chintat hee bad labh ke, jaagat haigo bhor
अर्थात (Meaning in Hindi): अभिलाषाओं की दौड़ कभी समाप्त नहीं होती। एक पूरी होती है तो मनुष्य दूसरी के पीछे भागता है। यह दौड़ आजीवन चलती है। हजार से दौड़ शुरू करके अरबपति बनने पर भी वह थकता नहीं। इसी मृग मरीचिका में फंस कर अंत समय में आ पहुंचता है। वह एक पल भी नहीं सोचता कि उसने क्या खोया और क्या पाया। उसे धन लाभ तो हुआ, किंतु इस प्राप्ति के बदले उसने जो खोया है, वह इस धन लाभ से कहीं अधिक मूल्यवान था। इहलोक की संपन्नता के चक्कर में वह अपने परलोक को विपन्न बना देता है।
रहीम कहते हैं, संपन्नताओं से परिपूर्ण घर में रहने वाला चोर से कम नहीं होता। वह चोर की भांति ठग, मक्कारी और छल प्रपंच से अपना वैभव बढ़ाने की धुन में लगा रहता है। अपने कर्म से दूसरों को हानि पहुंचाकर धनार्जन करने वाला कर्महीन होता है। वह वास्तविक कर्म से परिचित नहीं होता, जिससे वह अपना परलोक संवार सके।
रहीम का विचार है, यदि मनुष्य वास्तविक कर्म से परिचित हो जाए तो चैर्य कर्म से किनारा कर लेगा। इसके लिए चिंतन की जरूरत है। चिंतन मनन से बहुत लाभ होता है। इसी से वह सच्चाई से परिचित होकर जाग उठता है। जागने का कोई समय नहीं, वह जब जागेगा, तभी उसके जीवन का सवेरा होगा।
दुख नर सुनि हांसी करै, धरत रहीम न धीर।
कही सुनै, सुनि सुनि करै, ऐसे वे रघुबीर।।
Dukh nar suni haansi karai, dharat Rahim na dheer
Kahi sunai suni suni karai, aise ve raghubir
अर्थात (Meaning in Hindi): आखिर मनुष्य अपना दुख किसे सुनाए? तय है, वह अपनी कारूणिक स्थिति का वर्णन अपनो से ही करेगा। संकट के समय में अपनों से ही आशा होती है कि वह सांत्वना व सहयोग देंगे और अपनों का यही कर्तव्य भी है। किंतु वे दुख दर्द की बात सुनकर क्या करते हैं?
रहीम कहते हैं, लोग कितने पाषाण हदय हो गए हैं। उसने दुख दर्द कहो तो कोई धीरज के दो बोल नहीं बोलता, बल्कि लोग पीठ पीछे हंसते और मजाक उड़ाते हैं। ऐसे लोगों के सामने मन की पीड़ा दर्शाने से क्या लाभ? इससे तो यह अच्छा है कि रघुवीर की शरण में जाओ, उन्हें अपना दुख दर्द सुनाओ। रघुवीर ऐसे सुहदय और कृपालु हैं कि वे सबकी विपदा सुनते हैं और शीघ्र उसका निदान करते हैं।
बड़े दीन को दुख सुनैं, लेत दया उर आनि।
हरि हाथी सो कब हुतो, कहु रहीम पहिचानि।।
Bade deen ko dukh sunai, let dayaa ur aani
Hari hathi so kab huto, kahu rahim pahichani
अर्थात (Meaning in Hindi): बड़े लोगों का बड़प्पन यह कहलाता है कि वे कितने संपन्न व धनी हैं। वास्तविक बड़ा तो वह होता है, जो असहाय को शरण देता है और उसकी मदद करता है। भले ही उसके पास धन न हो, किंतु उसका यह बड़प्पन उसे धनियों से भी अधिक यशस्वी बनाता है।
रहीम कहते हैं, बड़ों की उदारता अनुपम होती है। वे दीन दुखियों का दर्द पूरी तन्मयता से सुनते हैं। उनके हदय में इतनी दया उमड़ आती है कि वे उनके दर्द निवारणार्थ कुछ भी करने को तत्पर हो जाते हैं। हरि का उदाहरण सामने है। हरि से हाथी कभी नहीं मिला था, हरि की उससे कोई पूर्व पहचान भी नहीं थी। इसके बावजूद वह कष्ट में पड़ा और उसने हरि को पुकारा तो उन्होंने शीघ्र आकर उसे ग्राह के चंगुल से छुड़ाया।
देन हार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पर धरें, याते नीचे नैन।।
Den har kou aur hai, bhejat so din rain
Log bharam ham par dharain, yaate neeche nain
अर्थात (Meaning in Hindi): दानी को दान करते समय यह घमंड नहीं करना चाहिए कि वह याचकों की झोलियां भरने में सक्षम है। इससे दान का माहात्म्य घट जाता है और दानी को पुण्य भी नहीं मिलता। दानी को यह नहीं भूलना चाहिए कि उसे दान करने से सक्षम बनाने वाला भगवान ही है। उसकी कृपा से उसे धन मिला है।
रहीम कहते हैं, इस जग में किसी का कुछ नहीं। भव्य अट्टालिकाएं व धन संपदा जोड़कर मनुष्य को यह अभिमान नहीं करना चाहिए कि यह सब उसके प्रताप से संभव हुआ। उसे दान देते समय भी नहीं इतराना चाहिए। वस्तुतः देने वाला कोई और है, वही दिन रात देता है। सच्चा दानी कभी नहीं इतराता। वह जानता है कि यह धन दौलत भगवान की अनुकंपा से उसके पास आई है। किंतु लोगों का भ्रम यह है कि यह धन उन्होंने अपने उद्योग से अर्जित किया है। लेकिन सच्चे दानी को इस भ्रम से अत्यंत दुख होता है। अतः दान करते समय उसकी आंखें झुक जाती हैं। सच्चे दानी की यही पहचान है कि वह निरभिमानी और विनीत होता है।
मोहन छवि नैनन बसी, पर छवि कहां समाय।
भरी सराय रहीम लखि, पथिक आप फिरि जाय।।
Mohan chhavi nainan basi, par chhavi kahan samaay
Bhari saraay rahim lakhi, pathik aap fir jay
अर्थात (Meaning in Hindi): रहीम मुसलमान होते हुए भी कृष्ण के अनन्य भक्त थे। इस दोहे में वह बताते हैं कि वह मोहन के रूप से इस प्रकार प्रभावित हैं कि उन्हें किसी अन्य का रूप सुहाता ही नहीं।
रहीम के शब्दों में, मोहन को जबसे देखा है, उनकी छवि आंखों में बस गई है। इस छवि में आंखें यों रच बस गई हैं कि अब कोई अन्य छवि उनमें समाती ही नहीं। जिस प्रकार भरी सराय देखकर पथिक स्वयं वापस लौट जाता है, उसी प्रकार मोहन की छवि से दोनों आंखें पूरी तरह भर गई हैं, अब किसी अन्य छवि को वहां स्थान दे पाना संभव नहीं।
25 Important परीक्षा में पूछे जाने वाले रहीम के दोहे :
अक्सर प्रतियोगी परीक्षाओं और विद्यालयी परीक्षाओं में रहीम के दोहे संबन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं जिनमें मार्क्स लाना आसान होता है किन्तु सही जानकारी और अभ्यास के अभाव में अक्सर विद्यार्थी रहीम के दोहों के प्रश्न में अंक लाने में कठिनाई अनुभव करते हैं। हमने प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाने वाले रहीम के दोहों को अर्थ एवं व्याख्या सहित संग्रहीत किया है जिनका अभ्यास करके आप पूर्ण अंक प्राप्त कर सकते हैं।
- Rahim ke dohe रहिमन तब तक ठाहरय, मानः मान सम्मान
- Rahim ke dohe संसि की सीतल चादनी, सुंदर सबहिं सहाय
- Rahim ke dohe रहिमन कबहुं बड़ेन के, नाहि गर्व को लेस
- Rahim ke dohe बढ़त रहीम धनाढ्य घन, घनी घनी को जाइ।
- Rahim ke dohe रहिमन एक दिन वे रहे, बाच न सोहत हार।
- Rahim ke dohe रहिमन तीन प्रकार ते, हित अनहित पहिचानि।
- Rahim ke dohe राम नाम जान्यो नहीं, भइ पूजा में हानि।
- Rahim ke dohe समय दसा कुल देखि कै, सबै करत सनमान।
- Rahim ke dohe रहिमन अपने गोत को, सबै चहत उत्साह।
- Rahim ke dohe रहिमन खोजै ऊख में, जहां रसन की खानि।
- Rahim ke dohe समय पाय फल होत है, समय पाय झरि जाय।
- Rahim ke dohe बड़ माया को दोष यह, जो कबहूं घटि जाय।
- Rahim ke dohe बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
- Rahim ke dohe कदली, सीप, भुजंग-मुख, स्वाति एक गुन तीन।
- Rahim ke dohe रहिमन रीति सराहिए, जो घट गुन सम होय।
- Rahim ke dohe रहिमन यों सुख होत है, बढ़त देखि निज गोत।
- Rahim ke dohe रहिमन अब वे बिरछ कहं, जिनकी छांह गंभीर।
- Rahim ke dohe जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
- Rahim ke dohe रहिमन थोरे दिनन को, कौन करे मुंह स्याह।
- Rahim ke dohe रहिमन गली है सांकरी, दूजो ना ठहराहिं।
- Rahim ke dohe रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
- Rahim ke dohe रहिमन बहु भेषज करत, ब्याधि न छांड़त साथ।
- Rahim ke dohe रहिमन बहु भेषज करत, ब्याधि न छांड़त साथ।
- Rahim ke dohe बसि कुसंग चाहै कुसल, यह रहीम जिय सोस।
- Rahim ke dohe मान सहित विष खाय के, संभु भये जगदीस।