यूनान में तब गुलाम प्रथा चरम पर थी। एक रईसजादा जो स्वभाव से कृपण भी था एक गुलाम को खरीद लाया, जो अपनी बदसूरती के कारण उसे सस्ते दाम में मिल गया था।
जब वह उस गुलाम को लेकर घर पहुंचा तो उसे देख उसकी बीवी आग बबूला हो गई। वह गुलाम एक आंख से काना था, दांत भी दो चार ही थे। पीठ पर कूबड़ निकला हुआ था। चेहरा इतना स्याह था कि बच्चे देखते ही चिल्ली मार बैठें।
गुलाम ने धीरे धीरे घर का सारा कामकाज संभाल लिया। वह बरतन मांजता, बच्चों को कहानियां सुनाता, बाजार के भी काम करता। उस रईस व उसकी बीवी की वह बहुत सेवा किया करता था।
अब तो आलम यह था कि गुलाम के कारण उस रईस के घर लोग इकट्ठा होने लगे। सबकी लालसा रहती कि गुलाम उन्हें मधुर कहानियां सुनाए। लोग उससे डरना तो दूर, उसकी प्रतीक्षा किया करते थे।
गुलाम के किस्सों के चर्चे जब यूनान के बादशाह तक पहुंचे तो एक दिन बादशाह भी उस रईस की हवेली में गया और गुलाम के किस्सों को सुनकर अतिप्रसन्न होकर उसे उपहार देने लगा। तब गुलाम बोला, ‘बादशाह सलामत, मेरा सबसे बढि़या उपहार यही होगा कि आप मेरे किस्से कहानियों को किताब का रूप दे दें, ताकि मैं मरकर भी इन बच्चों से जुड़ा रहूं।’
बादशाह ने उसकी बात मानकर उसके किस्से कहानियों की किताब छपवा दी। इस तरह उस गुलाम युसूफ के किस्सेे घर घर में पढ़े जाने लगे।