एक बार दो पालतू मुर्गे आपस में लड़ने लगे। दोनों ही अपने-अपने क्षेत्रों पर राजा के समान अपना अधिकार जमाना चाहते थे। झगड़ा इतना बढ़ा कि दोनों बहुत बुरी तरह आपस में गुंथ गए। दोनों ही अपने नुकीले पंजों से एक दूसरे का पेट फाड़ देना चाहते थे। लड़ाई के दौरान दोनों मुर्गे ऊपर हवा में उठते, एक दूसरे के सामने आते और अपने पंजों से एक दूसरे के पेट पर वार करते।
यह लड़ाई बहुत देर तक जारी रही। एक मुर्गा तो इतना अधिक घायल हो गया कि उसने मैदान छोड़ दिया। दूसरा मुर्गा इतना खुश हुआ कि वह इमारत की छत पर चढ़ गया और लगा चिल्लाने- ”मैं जीत गया! वह देखो वह डरपोक भागा जा रहा है।“
उसी समय एक उकाब ऊंचे आकाश में अपने शिकार की खोज में उड़ रहा था। उसने नीचे मकान की छत पर मुर्गा खड़ा देखा। वह तेजी से मुर्गे पर झपटा और उसे अपने खूनी पंजों में दबाकर उड़ गया। घायल मुर्गे ने उकाब को दूसरे मुर्गे को अपने चंगुल में ले जाते हुए देखा तो मुस्करा कर कहा- ‘अहंकार सारी बुराइयों की जड़ है।’
निष्कर्ष- घमंडी का सिर नीचा।