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फिल्म मदर इंडिया:अजीबो ग़रीब दर्द के रिश्तों की कहानी

साठ साल पहले २५ अक्टूबर १९५७ को डायरेक्टर मेहबूब खान  की फिल्म ‘मदर इंडिया’  रिलीज हुई थी’मदर इंडिया’ के रूप में महबूब खान ने अपनी ही फिल्म ‘औरत’ का रीमेक बनाया था.

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औरत 1940 में महबूब खान  के ही निर्देशन में आई ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म थी.प्रोड्यूसर- डायरेक्टर महबूब खान की ये फिल्म भारतीय विधवा राधा की एक तीन घंटे लंबी कहानी थी|

इसमें उसकी जिंदगी के संघर्षों और बलिदानों को दिखाया गया था.जिसका अंत उसके खुद के बेटे को ही मारने से होता  है.जो डाकू बन जाता है.

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जिस तरह फिल्म दिलचस्प थी उसी तरह फिल्म निर्माण  के क़िस्से भी कम दिलचस्प नहीं हैं.उस वक्त फिल्म बनाने में 40 लाख रुपये से ज्यादा का खर्च आया था, जिसके चलते महबूब खान जैसे स्थापित डायरेक्टर को भी पैसों की कमी हो गई थी |

पैसों की कमी के चलते फिल्म की शूटिंग कई बार रोकना पड़ा था .फिल्म में नरगिस को लेने से पहले मेहबूब ने मधुबाला और मीना कुमारी का चयन किया था.यही नहीं सुनील दत्त का रोल दिलीप कुमार करने वाले थे लेकिन नरगिस से नाराज़गी के चलते दिलीप कुमार ने मना कर दिया था.

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फिल्म का शीर्षक अमेरिकन लेखिका ‘कैथरीन मायो’ की 1927 में भारत पर आई किताब से लिया गया था.इस किताब में भारत के समाज, धर्म और संस्कृति पर प्रहार किया गया था. भारत की स्वशासन की मांग और अंग्रेजों से स्वतंत्रता की मांग का भी इस किताब में मजाक उड़ाया गया था.

फिल्म  मदर इंडिया की ऑस्कर्स के लिए एंट्री कराई गई. इस बात का भी ध्यान रखा गया था कि फिल्म के ओरिजनल प्रिंट पर जो हथौड़ा और हसिए का निशान था, उसे हटा दिया गया था,जिससे ऑस्कर अवॉर्ड की कमेटी शीत युद्ध के एंटी कम्युनिस्ट दौर में महबूब खान के कम्युनिस्ट झुकाव को जानकर नाराज न हो.

मदर इंडिया को लोगों ने बहुत पसंद किया था पर उस दौर में टक्कर बहुत कड़ी थी. क्योंकि ‘मदर इंडिया’ के साथ दौड़ में जर्मन-अमेरिकन डायरेक्टर ‘रॉबर्ट सियोडमैक’ की ‘द डेविल केम एट नाइट’, फ्रेंच डायरेक्टर ‘रेन क्लेयर’ की ‘द गेट्स ऑफ पेरिस’ और मजबूत दावेदार थी इटली के मशहूर डायरेक्टर ‘फेडरिको फैलिनी’ की ‘नाइट्स ऑफ कैबिरिया’ भी थीं.

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कांटे की टक्कर में मदर इंडिया शुरुआत से ही भारी पड़ती दिखाए दे रही थी, लेकिन आखिरी वक्त में सिर्फ एक वोट से हार गई . जैसे ही महबूब खान को ये बात पता चली, उन्हें हार्ट अटैक पड़ गया और अस्पताल में दाखिल होना पड़ा था.

इसके बाद महबूब खान ने 1958 में फिर से शपथ ली कि वो मदर इंडिया फिल्म का सीक्वल बनाएंगे. और इस तरह से अपने खोए हुए ऑस्कर को फिर से पा कर दिखाएंगे.

चार साल बाद उन्होंने ‘सन ऑफ इंडिया’ नाम की एक फिल्म बना भी ली. पर उस वक्त तक उनका वक्त बदल चुका था. दुर्भाग्य से फिल्म बिना कोई प्रभाव छोड़े फ्लॉप हो गई. और फिर महबूब खान ने दोबारा कोई फिल्म नहीं बनाई.

 

 

 

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