नई दिल्ली। टेलिकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी (TRAI) ने आज फेसबुक के लेटेस्ट “फ्री बेसिक्स कैंपेन” (Free basics Campaign) पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि फेसबुक ने इस ओपिनियन पोल के लिए जो प्रक्रिया अपनाई, वह उचित नहीं है .
ज्ञातव्य हो कि अपनी डेटा सेवा प्रदान करने के लिए मोबाइल कंपनियों की तरह अलग अलग पैक पर अलग-अलग प्राइसिंग के अपने प्रपोजल को ट्राई में अप्रूव करवाने के लिए फेसबुक ने एक ओपिनियन पोल करवाया था . इस कैंपेन में फेसबुक ने अपने मेंबर्स से ट्राई को ईमेल भेजकर फ्री बेसिक्स (Free basics Campaign) पर सपोर्ट देने की मांग की थी, लेकिन इसका फॉर्मेट कुछ इस तरह का रखा गया था जिसमें अधिकाँश यूसर्स फेसबुक की कैंपेन के मैसेज को पूरा पढ़े ही उसपर अपना सपोर्ट जाहिर कर रहे थे . साथ ही इस टेम्पलेट में इसे रिजेक्ट करने का कोई ऑप्शन नहीं था .
इस कैंपेन में फेसबुक को फ्री बेसिक्स (Free basics Campaign) के फेवर में मिलने वाला अधिकाँश समर्थन एक टिपिकल फेसबुक यूसर्स की तरह था जो हर पोस्ट पर लाइक कर ही देता है .
ट्राई ने फेसबुक के ओपिनियन पोल को दिखावटी और पारदर्शी प्रक्रिया से बहुत दूर करार देते हुए कहा कि आपने जिस प्रकार से मत जुटाने का प्रयास किया उससे इसका सारा महत्त्व ही समाप्त हो गया और यह सिर्फ एक नकली समर्थन जुटाओ अभियान बन कर रह गया .
इस अभियान में फेसबुक को मिले कुल 24 लाख समर्थन पत्रों में से 18 लाख तो सिर्फ फेसबुक से ही मिले हैं .
ट्राई ने फेसबुक को कहा है कि उसने अपने यूसर्स को गुमराह किया है और ट्राई द्वारा भेजे गए कंसल्टेशन पेपर के सवालों को यूसर्स तक ठीक तरह से नहीं पहुँचाया है . ऐसे में फ्री बेसिक्स कैंपेन के नाम पर की सारी प्रक्रिया का कोई अर्थ ही नहीं है .
ट्राई चेयरमैन आर एस शर्मा 14 जनवरी को फेसबुक के प्रतिनिधियों से मिले थे और सवालों के जवाब में मिली प्रतिक्रियाओं पर ध्यान देने की बात कही थी। ट्राई के पेपर पर कमेंट देने की अंतिम तारीख 30 दिसंबर थी, जिसे बात में 7 जनवरी तक के लिए बढ़ा दिया गया था।
अब फेसबुक के सामने शायद एक ही उपाय बचा है कि वह कोई और तरीका निकाले क्यूंकि फ्री बेसिक्स कैंपेन (Free basics Campaign) द्वारा इकट्ठे किये गए समर्थन को तो ट्राई ने सिरे से नकार दिया है . ऐसे में इस कैंपेन पर फेसबुक द्वारा खर्च किये 300 करोड़ रुपये भी पानी में बह गए प्रतीत होते हैं .