भारत में गुरू शिष्य परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है। गुरूजनों एवं शिक्षकों को समाज में एक ऊँचा दर्जा प्राप्त है। भारत में गुरू को भगवान से भी बड़ा माना गया है।
गुरू गोबिन्द दोऊ खड़े, काके लाँगू पाय।
बलिहारी गुरू अपने, जिन गोबिन्द दियो मिलाय।।
इस दोहे का भावार्थ है कि गुरू की कृपा से ही शिष्य अपने इष्ट को पा सकता है। गुरू के मार्गदर्शन के बिना शिष्य भटक जायेगा।
अध्यापक दिवस गुरूजनों के सम्मान की इस परम्परा का ही प्रतीक है। पूर्व राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस को अध्यापक दिवस के रूप में मनाया जाता है। डा. राधाकृष्णन एक महान शिक्षक और गुरू थे। उनका जन्मदिन 5 सितम्बर को है। भारतवर्ष में इस दिन को ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
डा. राधाकृष्णन का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ। अपनी लगन व मेहनत से उन्होंने शिक्षा ग्रहण की। वह पुस्तकों को अपना मित्र और साथी समझते थे। उन्होंने भारत के सर्वोच्च ‘राष्ट्रपति पद’ को सुशोभित किया। अपने जीवन के चालीस वर्ष उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में बिताये।
डा. राधाकृष्णन एक आदर्श शिक्षक थे। उनका जन्म दिवस यही प्रेरणा देता है कि शिक्षकों और शिष्यों का संबंध बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसे सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिये।
सभी विद्यालयों में इस दिन विद्यार्थी अपने अध्यापकों को उपहार व धन्यवाद देते हैं और कृतज्ञता प्रकट करते हैं। शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है। श्रेष्ठ शिक्षकों का चयन करके उन्हें पुरस्कार दिये जाते हैं।