मर्यादित जीवन व्यतीत करने का नाम अनुशासन है। नियमों का पालन करना एवं नियमानुसार जीवन बसर करना ही अनुशासन कहलाता है। अनुशासन प्रगति का मूल मंत्र है। विद्यार्थी जीवन का तो श्रृंगार ही अनुशासन है।
जो विद्यार्थी समय पर काम प्रारम्भ करता है और समयानुसार उन्हें समाप्त कर देता है उसे उन्नति करने से कोई नहीं रोक सकता। अनुशासन की जरूरत जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में है।
स्वास्थ्य ठीक रखने के लिये जहां नियमपूर्वक व्यायाम करना, पौष्टिक खान पान रखना जरूरी है वहीं आचार व्यवहार को अनुशासित करने के लिए बड़ों का कहना मानना, उनका सम्मान करना और समाज के द्वारा बनाये गये नियमों का पालन करना जरूरी है। अनुशासित विद्यार्थी न केवल पढ़ाई में बल्कि खेलकूद और जीवन की हर दौड़ में अव्वल रहता है।
किन्तु आज जहां तक नजर दौड़ायें अनुशासनहीनता का साम्राज्य विराजमान है। विद्यार्थी राजनीति और समाज में फैली अराजकता के षिकार हैं। अनुशासन संयम से आता है, परन्तु आज का युवा उच्छृंखल और उद्दण्ड है।
महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि इन हालात के लिये दोषी कौन है? इसकी शुरूआत तो माता पिता द्वारा घर में जरूरत से अधिक लाड प्यार द्वारा होती है। किन्तु इसकी परिणति समाज एवं देश के विद्यार्थियों में व्याप्त असंतोष के रूप में होती है।
आज का युवा बहुत सी समस्याओं से जूझता है। आदर्श और अनुशासन का सहारा उसके हाथ से फिसलता है तो वह भटक जाता है। हमारी शिक्षा प्रणाली का रीढ़ हीन होना इसका एक बड़ा कारण है। हमारी शिक्षा बच्चों को किताबों ज्ञान देती है, उन्हें व्यावहारिक ज्ञान देकर रोजगार उपलब्ध नहीं कराती। अतः विद्यार्थियों में बढ़ता असंतोष उन्हें अनुशासनहीन बनाकर उनकी प्रगति में बाधक बनता है।