सितंबर माह का द्वितीय शनिवार हमने पिकनिक मनाने के लिये चुना। उसके बाद सर्वसम्मति से हमने बुद्धा जयन्ती पार्क में जाने का निश्चय किया। प्रथम शनिवार से द्वितीय शनिवार तक हमारा पूरा एक सप्ताह योजनायें बनाने में बीता। कितनी बार रखने के सामान, पकवानों और नाश्ते के व्यंजनों की सूची बनी और काटी गयी। कैसे जायें, कब जायें, कौन कौन जायेगा इत्यादि बातों पर प्रतिदिन बातचीत होती।
प्रतीक्षा के क्षण कितने लम्बे होते हैं। एक एक दिन कठिनाई से बीता। आखिर हमारा पिकनिक जाने का दिन आ ही गया। हम उत्साह से फूले नहीं समा रहे थे। एक दोस्त की बड़ी गाड़ी में सारा सामान लाद कर हम सुबह दस बजे के लगभग बुद्धा जयन्ती पार्क पहुँच गये। हमारे दोस्तों की एक अन्य टोली मारूति वैन में पहुँची।
वहाँ पहुँचकर एक पेड़ की छाया में हमने अपना सामान रखा। चारों ओर हरियाली ही हरियाली थी। रंग बिरंगे फूल अपनी छटा बिखेर रहे थे। चमकीली घास पर अभी ओस की बूँदें रूकी हुई थी। हम सबने अपने सामान में से खेलने का सामान निकाला और क्रिकेट की टीम बनाई। हमने एक घंटा जमकर मैच खेला। इसके बाद हम सब फिर छाया में आ बैठे। घर से लाये खाने के सामान को खोलना प्रारम्भ किया। भूख लग रही थी। सलाद, फल, दही भल्ले, अचार, छोले, आलू पूड़ी, पराँठें सबका सामान खुलता गया और व्यंजनों की खुशबू फैलती गयी। हम पेपर प्लेट लाये थे। सभी ने अपनी रूचि के अनुसार खाना प्लेट में लिया और फिर गप्पों और हँसी मजाक के साथ शुरू किया। बाद में सब हैरान हुये कि अरे, हम सबने कितना अधिक खा लिया।
फिर चुटकुलों का दौर शुरू हुआ। एक से एक बढ़िया चुटकुले सुनाये गये। हँसते हँसते पेट में बल पड़ गये। हमारे एक मित्र कविता पाठ किया जिसे सुनकर बहुत आनंद आया।
इसके बाद हम सबने पार्क का एक लम्बा चक्कर लगाया। रास्ते में एक स्थान पर ठंडे पेय पीये। हँसते खेलते एक दूसरे को चिढ़ाते छेड़ते चार बज गये। अपना सामान समेट कर हम सबने घर की राह ली। पिकनिक का वह दिन मुझे सदैव स्मरण रहेगा।