जब कभी किसी दुसाध्य कार्य का उदाहरण देना हो तो कहा जाता है कि यह पहाड़ पर चढ़ने जैसा है। इसी से अनुमान लगा सकते हैं कि पर्वत आरोहण यानी पर्वत पर चढ़ना कितना कठिन कार्य है।
जोखिमों से खेलना इंसान का स्वभाव है। वह खतरे मोल लेना चाहता है, चांद और सूरज को छूना चाहता है, आकाश में घर बनाना चाहता है, मंगल ग्रह पर मंगल करना चाहता है। पहाड़ों पर चढ़ कर वह गौरवान्वित महसूस करता है। पहाड़ों की ऊँचाइयों उसे आकर्षित करती हैं।
पर्वतारोहण का शौक रखने वाले व्यक्ति बहुत साहसी प्रवृति के होते हैं। उन्हें अपनी जान जोखिम में डालना भयभीत नहीं करता और वे पहाड़ पर चढ़ने के लिये सीधी खड़ी चट्टानों को पार कर कठिन रास्तों से गुजरते हैं
हिमालय की सबसे ऊँची चोटी एवरेस्ट की विजय के बाद हिमालय की चोटियों को छूने का उत्साह बढ़ता ही गया। साहसी टोलियों ने कंचनजंगा शिखर पर भी अपनी विजय पताका फहरायी।
जार्ज एवरेस्ट, हावर्ड वैरी, कैप्टन हिलौरी, कर्नल हंट, मैलोरी इत्यादि पर्वतारोहियों ने विश्व स्तर पर ख्याति अर्जित की है। भारत के शेरपा तेनसिहं और बछेन्द्रीपाल की कहानियां भी पर्वतारोहण के क्षेत्र में प्रसिद्ध हैं।
पर्वतारोहण का शौक पूरा करने के लिये युवक युवतियाँ दलों में पूर्ण साजो सामान के साथ जान हथेली पर लेकर निकलते हैं। इसके लिये पूरी तैयारी और बहुत सी जरूरी वस्तुओं की जरूरत होती है। बर्फीले पहाड़ों की चोटियों पर चढ़ना सरल काम नहीं है। पहाड़ पर आक्सीजन की बहुत कमी होती है। पीठ पर सभी जरूरी सामान का बोझ उठाये पर्वतारोही अपनी धुन के पक्के होने के कारण दुर्गम चोटियों पर अपने पद चिन्ह छोड़ने में सफल हुये हैं।
पर्वतारोहण सीखा भी जाता है। मनोरंजन के साथ साथ यह एक अच्छा शौक है। निडर और साहसी युवक युवतियाँ इसमें हाथ आजमा सकते हैं। यह एक खर्चीला और रोमांचक शौक है। अतः हम पर्वतारोहण करके अपना शौक पूरा करने के साथ साथ हिमालय की चोटी पर चढ़कर यश भी कमा सकते हैं।