हमारे देश भारत में भीख मांगना और भीख देना पौराणिक कर्म है। यहाँ भिक्षा लेना अथवा मांगना बुरा नहीं माना जाता, बल्कि इसे दान की श्रेणी में रखा जाता है। यही कारण है कि हमारे यहाँ भिक्षुकों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
भिक्षुक उस दीन हीन व्यक्ति को कहते हैं जो चलने फिरने, काम करने में अयोग्य होने के कारण अपनी जीविका कमा पाने में असमर्थ होता है और भिक्षा मांगकर अपना पेट पालता है।
अंधे, लूले लंगड़े, कमजोर, लाचार व्यक्ति को देख कर दया आना स्वाभाविक है। उसके द्वारा भिक्षा मांगने पर इंसान पसीज जाता है। कुछ भिक्षुक दूसरे प्रकार के होते हैं जो आलसी और कामचोर होते हैं। वह हुष्ट पुष्ट और स्वस्थ शरीर के होते हुये भी ढोंग करते हैं और भीख मांग कर जीवनयापन करते हैं।
हमारे यहाँ प्रत्येक स्थान पर भिक्षुक देखे जा सकते हैं। तीर्थ स्थानों, धार्मिक स्थलों, मंदिरों में तो यह बहुत अधिक संख्या में पाये जाते हैं। सड़कों, चौराहों, पर्यटन स्थलों और बाजारों में भी भिक्षावृत्ति का साम्राज्य है।
आज भिक्षावृत्ति ने एक व्यवसाय का रूप ले लिया है। दया, सहानुभूति जैसी मानवीय भावनाओं का लाभ उठा कर भिक्षावृत्ति का व्यवसाय फल फूल रहा है। गली गली घूम कर, मुहल्लों में जाकर प्रतिदिन भिखारी कुछ पाने की अपेक्षा रखते हैं। जरूरी नहीं कि जो इन्हें दिया जाये उससे वह प्रसन्न हो जायें। आजकल तो भिखारी भिक्षा भी ले लेते हैं और ताना भी मार देते हैं।
वस्तुस्थिति यह है कि भिक्षावृत्ति में अब कई प्रकार के भिखारियों ने कदम जमा लिये हैं। किन्नर भी इसमें हाथ आजमा रहे हैं और याचना से काम ने चलने पर धौंस जमाकर और धमकी देकर पैसे ऐंठते भी देखे गये हैं।
भिक्षा मांगना भी एक कला है। कुछ भिखारी अपने अंधे लंगड़े या अपाहिज होने का कारण बताते हुए भीख मांगते हैं। कुछ वेषभूषा को अजीब बना कर, लम्बे बाल करके, राख पोत कर स्वांग करके मांगते हुये दिख जाते हैं। कुछ बसों एवं रेलगाड़ियों में गा बजा कर पैसे मांगते हैं। कुछ केसरी वस्त्र पहन कर भीख मांगते हैं तो कुछ साधु संतों के रूप में।
पर कई भिखारी खतरनाक होते हैं। वह महिलाओं एवं बच्चों को ठगते हैं। मौका पाकर वह उनके गहने लूटने से भी बाज नहीं आते। इनसे सावधान रहना चाहिए। भीख मांगना अब कानूनन भी अपराध माना जाता है।