दिल इश्क़ में बे-पायाँ सौदा हो तो ऐसा हो – इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें
दिल इश्क़ में बे-पायाँ सौदा हो तो ऐसा हो
दरिया हो तो ऐसा हो सहरा हो तो ऐसा हो
इक ख़ाल-ए-सुवैदा में पहनाई-ए-दो-आलम
फैला हो तो ऐसा हो सिमटा हो तो ऐसा हो
ऐ क़ैस-ए-जुनूँ-पेशा ‘इंशा’ को कभी देखा
वहशी हो तो ऐसा हो रुस्वा हो तो ऐसा हो
दरिया ब-हुबाब-अंदर तूफ़ाँ ब-सहाब-अंदर
महशर ब-हिजाब-अंदर होना हो तो ऐसा हो
हम से नहीं रिश्ता भी हम से नहीं मिलता भी
है पास वो बैठा भी धोका हो तो ऐसा हो
वो भी रहा बेगाना हम ने भी न पहचाना
हाँ ऐ दिल-ए-दीवाना अपना हो तो ऐसा हो
इस दर्द में क्या क्या है रुस्वाई भी लज़्ज़त भी
काँटा हो तो ऐसा हो चुभता हो तो ऐसा हो
हम ने यही माँगा था उस ने यही बख़्शा है
बंदा हो तो ऐसा हो दाता हो तो ऐसा हो
जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में – इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें की ग़ज़लें
जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में
लैला तो ऐ क़ैस मिलेगी दिल के दौलत-ख़ाने में
जनम जनम के सातों दुख हैं उस के माथे पर तहरीर
अपना आप मिटाना होगा ये तहरीर मिटाने में
महफ़िल में उस शख़्स के होते कैफ़ कहाँ से आता है
पैमाने से आँखों में या आँखों से पैमाने में
किस का किस का हाल सुनाया तू ने ऐ अफ़्साना-गो
हम ने एक तुझी को ढूँडा इस सारे अफ़्साने में
इस बस्ती में इतने घर थे इतने चेहरे इतने लोग
और किसी के दर पे न पहुँचा ऐसा होश दिवाने में