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Hindi Essay – Chatrapati Shivaji छत्रपति शिवाजी

छत्रपति वीर शिवाजी पर लघु निबंध (Hindi Essay on Chatrapati Shivaji)

मुगलों की दासता से मुक्ति दिलाने में भारत सपूत शूरवीर महपुरूषों में शिवाजी का नाम सदैव रमणीय रहेगा। जिस मुगल शासक अत्याचारी औरगंजेब भारत भूमि को रौंद रहा था, उस समय सारा देश भय और त्रास से काँपता हुआ किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो रहा था। चारों ओर से अशान्ति और उत्पीड़ा का क्रन्दन सुनाई पड़ता था। सभी लोग एक दूसरे का मुँह देख रहे थे। अतएव हिन्दुत्व का विनाश हो रहा था और हिन्दू स्त्रियों का सतीत्व संकट में था। हिन्दू धर्म के पतन को लगातार होने से बचाने के लिए किसी ऐसे शूरमा की अवश्यकता थी, जो मुगल शासक के दाँत खट्टे कर सके। इस अवश्यकता की पूर्ति महावीर छत्रपति शिवाजी ने की थी।Hindi Essay on Chatarpati Veer Shivaji

महावीर शिवाजी का जन्म सन् 1627 ई. को पूना से लगभग 15 मील दूर शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। आपके पिताश्री शाहजी भोंसले बीजापुर के बादशाह के यहाँ उच्च पद पर कार्यरत थे। आपकी माता का नाम जीजाबाई था। धर्मपरायण जीजाबाई ने बालक शिवाजी के जीवन को उच्च और श्रेष्ठ बनाने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दी। इसके लिए जीजाबाई ने बालक शिवाजी को धार्मिक पुस्तकें रामायण-महाभारत की कथाओं सहित और महान से महान योद्धाओं वीर महापुरूषों की प्रेरणादायक गाथाओं को विविध प्रकार से सुनाना आरंभ कर दिया था। इससे बालक शिवाजी के अन्दर स्वाभिमान और शौर्य-उत्साह की भावना कूट-कूटकर भर गयी। बालक शिवाजी ने अपनी माताश्री जीजाबाई के प्रति अपार श्रद्धा और विश्वास की भावना पूर्णतः दिखाई, जिससे माताश्री का उत्साह बढ़ता ही गया। अत्यधिक उत्साहित और प्रेरित होने के कारण ही शिवाजी ने शैषवावस्था से ही मल्ल युद्ध, भाले बर्छें और बाण विद्या की विविध कलाओं को सीखना आरंभ कर दिया था और अपनी मेघावी शक्ति के कारण अल्प समय मे ही आप युद्ध विद्या की कला में निष्णात हो गए। शिवाजी के पौरूषपूर्ण और मानवीयता से भरे व्यक्तित्व को बनाने में आपके सदगुरू श्री रामदास जी का महान योगदान रहा।

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छत्रपति शिवाजी के समय देश का वातावरण मुगल शासकों के आधीन होकर सर्वप्रकार से निराशा के समुन्द्र ऊब में चुब हो रहा था। हिन्दुओं के सामने ही उनकी देव मूर्तियों का अपमान हो रहा था और वे कुछ भी कर पाने और कह पाने में असमर्थ थे। शिवाजी ने हिन्दुओं की इस पतनशील दुरावस्था को गंभीरता से देखा और इसे दूर करने के लिए दृढ़ निश्चय कर लिया।

शिवाजी ने युद्ध वीर में विजय की हौसला से ही बचपनावस्था में बालकों दल बना-बनाकर कृत्रिम युद्ध आरंभ कर दिया था। यद्यपि आपके पिताश्री शाह जी का यह प्रयास था कि आप बादशाहत में ही कोई उच्च पद पर कार्य करें, लेकिन शिवाजी के स्वतंत्र मन ने इसे स्वीकार नहीं किया। शिवाजी अपने प्रबल उत्साह से सैन्यदल बनाकर बीजापुर के दुर्गों पर ही धावा बोलने लगे। आपने इस प्रयास से लगभग 19 वर्ष की अल्पायु में ही अपार और अद्भुत शक्ति बढ़ा ली थी। इसी प्रयास में ही शिवाजी ने लगभग 2 वर्षों में ही तोरण, सिंहगढ़, पुरन्दर आदि दुर्गों पर भली प्रकार से अधिकार जमा लिया और मुगल सेना से सामना करने की हिम्मत बाँध ली। आप जब मुगलों से लड़ रहे थे, तब आपकी शक्ति घटने लगी थी। इसलिए आप कुछ समय तक पहाड़ों में ही छिपे रहे और इस घटना के आधार पर आपको ‘पहाड़ी चूहा’ के नाम से सम्बोधित किया गया था। बीजापुर के शाह ने शिवाजी के पिताश्री को बन्दी बना लिया था। जिसके कारण शिवाजी ने अपने युद्ध यात्रा में परिवर्तन करके पहले अपने पिताश्री को कैद से मुक्त कराया और इसके बाद फिर मुगल सेना से आ भिड़े थे।

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बीजापुर के शाह ने शिवाजी को परास्त करने के लिए अपने सबसे बड़े योद्धा अफजल खाँ के सेनापतित्व में एक भारी सेना को भेजा। अफजल शिवाजी के पराक्रम से भली भांति परिचित था। इसलिए वह शिवाजी का सीधा मुकाबला करने की अपेक्षा पीछे से आक्रमण करना चाहता था। वह काई ओैर उपाय ने देखकर शिवाजी को विश्वासघात या छलावा देकर समाप्त करना चाहता था। इसलिए उसने छद्मवार्ता के द्वारा शिवाजी को अकेले मिलने का निमंत्रण दिया। शिवाजी के मिलने पर उसने अपनी तलवार से शिवाजी पर वार किया। कुशल योद्धा होने के कारण शिवाजी ने अफजल खाँ के तलवार के वार को बचाकर अपने वघनखा को उसके पेट में घोंप दिया, जिससे अफजल खाँ वहीं धराशायी हो गया। इससे उत्साहित होकर ही शिवाजी ने मुगलों पर धमाके के साथ आक्रमण किया था। तत्कालीन मुगल बादशाह औरंगजेब ने शिवाजी के आक्रमण को रोकने के लिए अपने मामा शाइस्ता खाँ के नेतृत्व में बहुत बड़ी सेना को भेजा। शाइस्ता ने मराठा प्रदेशों को रौंद डाला। इसके बाद वह पूना पहुँच गया। शिवाजी ने अपने सैनिकों को रात के समय एक बारात में छिपकर पूना पर आक्रमण कर दिया। शाइस्ता इस आक्रमण से डरकर भाग गया और उसका पुत्र मारा गया। इसके बाद शिवाजी ने सूरत को लूटकर करोड़ों की सम्पत्ति से अपनी राजधानी रायगढ़ को मजबूत कर लिया।

एक बार शिवाजी को औरंगजेब ने गिरफतार करने की नीयत से राजा जयसिंह के द्वारा अपने पास बुलवाया। यद्योचित सम्मान में कमी होने के कारण शिवाजी के क्रोधित होने पर औरंगजेब ने आपको बन्दी बनाकर जेल में डाल दिया। शिवाजी अपनी अस्वस्थता का बहाना बनाकर फिर नीरोग होने की खुशी में मिठाई बाँटते हुए मिठाई की टोकरी में बैठकर जेल से बाहर निकल गए। मुण्डन कराकर काशी और जगन्नाथपुरी के तीर्थों का दर्शन करते हुए अपनी राजधानी रायगढ़ पहुँच गए। बाद में अपनी शक्ति का पूर्ण विस्तार करके उन्होंने कई बार मुगलों को परास्त किया। 53 वर्ष की अल्पायु में सन् 1680 में आपका निधन हो गया।

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वीर शिवाजी की विलक्षण राजनीति और राज्य-प्रशासन की योग्यता से आज भी हमें गर्व है। हमें स्वाभिमान है कि हम ऐसे वीर पुरूषों के राष्ट्र के सच्चे नागरिक हैं, जिन्होंने हमें स्वाभिमानपूर्ण जीवन जीने की शिक्षा और प्ररेणा दी है।

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