यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः। न च विद्यागमोऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत् ॥
जिस देश में सम्मान न हो, जहाँ कोई आजीविका न मिले , जहाँ अपना कोई भाई-बन्धु न रहता हो और जहाँ विद्या-अध्ययन सम्भव न हो, ऐसे स्थान पर नहीं रहना चाहिए ।
आपदर्थे धनं रक्षेद् दारान् रक्षेद् धनैरपि। आत्मानं सततं रक्षेद् दारैरपि धनैरपि ॥
विपत्ति के समय के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए । धन से अधिक रक्षा पत्नी की करनी चाहिए । किन्तु आत्मसम्मान की रक्षा का प्रश्न सम्मुख आने पर धन और पत्नी का बलिदान भी करना पड़े तो नहीं चूकना चाहिए ।
यस्यार्थास्तस्य मित्राणि यस्यार्थास्तस्य बान्धवाः। यस्यार्थाः स पुमांल्लोके यस्यार्थाः स च पण्डितः॥
जिस व्यक्ति के पास पैसा है लोग स्वतः ही उसके मित्र बन जाते हैं । बन्धु- बान्धव भी उसे आ घेरते हैं । जो धनवान है उसी को आज के युग में विद्वान् और सम्मानित व्यक्ति माना जाता है