बन्धन्य विषयासङ्गः मुक्त्यै निर्विषयं मनः। मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः॥
बुराइयों में मन को लगाना ही बन्धन है और इनसे मन को हटा लेना ही मोक्ष का मार्ग दिखाता है । इस प्रकार यह मन ही बन्धन या मोक्ष देनेवाला है।
धर्मार्थकाममोश्रेषु यस्यैकोऽपि न विद्यते। जन्म जन्मानि मर्त्येषु मरणं तस्य केवलम्॥
जिस मनुष्य को धर्म, काम-भोग, मोक्ष में से एक भी वस्तु नहीं मिल पाती, उसका जन्म केवल मरने के लिए ही होता है
अधना धनमिच्छन्ति वाचं चैव चतुष्पदाः। मानवाः स्वर्गमिच्छन्ति मोक्षमिच्छन्ति देवताः॥
निर्धन व्यक्ति धन की कामना करते हैं और चौपाये अर्थात पशु बोलने की शक्ति चाहते हैं । मनुष्य स्वर्ग की इच्छा करता है और स्वर्ग में रहने वाले देवता मोक्ष-प्राप्ति की इच्छा करते हैं और इस प्रकार जो प्राप्त है सभी उससे आगे की कामना करते हैं ।
श्रुत्वा धर्म विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम्। श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात्॥
सुनकर ही मनुष्य को अपने धर्म का ज्ञान होता है, सुनकर ही वह दुर्बुद्धि का त्याग करता है । सुनकर ही उसे ज्ञान प्राप्त होता है और सुनकर ही मोक्ष मिलता है ।
धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोऽपि न विद्वते। अजागलस्तनस्येव तस्य जन्म निरर्थकम्॥
धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष में से जिस व्यक्ति को एक भी नहीं मिल पाता, उसका जीवन बकरी के गले के स्थान के समान व्यर्थ है।
यस्य चित्तं द्रवीभूतं कृपया सर्वजन्तुषु । तस्य ज्ञानेन मोक्षेण किं जटा भसमलेपनैः॥
जिस मनुष्य का हृदय सभी प्राणियों के लिए दया से द्रवीभूत हो जाता है, उसे ज्ञान, मोक्ष, जटा, भष्म – लेपन आदि से क्या लेना ।