Chanakya Neeti – Kul (Khandan) par Chanakya ke Anmol vichar
आचारः कुलमाख्याति देशमाख्याति भाषणम्। सम्भ्रमः स्नेहमाख्याति वपुराख्याति भोजनम् ॥
आचरण से व्यक्ति के कुल का परिचय मिलता है । बोली से देश का पता लगता है । आदर-सत्कार से प्रेम का तथा शरीर को देखकर व्यक्ति के भोजन का पता चलता है ।
वरयेत्कुलजां प्राज्ञो निरूपामपि कन्यकाम्। रूपवतीं न नीचस्य विवाहः सदृशे कुले ॥
बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि वह रूपवती न होने पर भी कुलीन कन्या से विवाह कर ले, किन्तु नीच कुल की कन्या यदि रूपवती तथा सुशील भी हो, तो उससे विवाह न करे । क्योँकि विवाह समान कुल में ही करनी चाहिए ।
कस्य दोषः कुले नास्ति व्याधिना को न पीडितः। व्यसनं केन न प्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम् ॥
किसके कुल में दोष नहीं होता ? रोग किसे दुःखी नहीं करते ? दुःख किसे नहीं मिलता और निरंतर सुखी कौन रहता है अर्थात कुछ न कुछ कमी तो सब जगह है और यह एक कड़वी सच्चाई है ।
रूपयौवनसम्पन्ना विशालकुलसम्भवाः। विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः ॥
रूप और यौवन से सम्पन्न, उच्च कुल में उत्पन्न होकर भी विद्याहीन मनुष्य सुगन्धहीन फूल के समान होते हैं और शोभा नहीं देते |
त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्। ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्॥
व्यक्ति को चाहिए कि कुल के लिए एक व्यक्ति को त्याग दे । ग्राम के लिए कुल को त्याग देना चाहिए । राज्य की रक्षा के लिए ग्राम को तथा आत्मरक्षा के लिए संसार को भी त्याग देना चाहिए ।
एकेनापि सुवर्ण पुष्पितेन सुगन्धिता। वसितं तद्वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा॥
जिस प्रकार वन में सुन्दर खिले हुए फूलोंवाला एक ही वृक्ष अपनी सुगन्ध से सारे वन को सुगन्धित कर देते है उसी प्रकार एक ही सुपुत्र सारे कुल का नाम ऊंचा कर देता है |
एकेन शुष्कवृक्षेण दह्यमानेन वह्निना। दह्यते तद्वनं सर्वं कुपुत्रेण कुलं यथा॥
जिस प्रकार एक ही सूखे वृक्ष में आग लगने पर सारा वन जल जाता है इसी प्रकार एक ही कुपुत्र सारे कुल को बदनाम कर देता है |
एकेनापि सुपुत्रेण विद्यायुक्ते च साधुना। आह्लादितं कुलं सर्वं यथा चन्द्रेण शर्वरी॥
जिस प्रकार अकेला चन्द्रमा रात की शोभा बढ़ा देता है, ठीक उसी प्रकार एक ही विद्वान -सज्जन पुत्र कुल को आह्लादित करता है ।
किं जातैर्बहुभिः पुत्रैः शोकसन्तापकारकैः। वरमेकः कुलावल्भबो यत्र विश्राम्यते कुलम्॥
शौक और सन्ताप उत्पन करने वाले अनेक पुत्रों के पैदा होने से क्या लाभ कुल को सहारा देनेवाले एक ही पुत्र श्रेष्ठ है, जिसके सहारे सारा कुल विश्राम करता है ।
साधुम्यस्ते निवर्तन्ते पुत्रः मित्राणि बान्धवाः। ये च तैः सह गन्तारस्तद्धर्मात्सुकृतं कुलम्॥
संसार के अधिकतर पुत्र,मित्र और भाई साधु-महात्माओं, विद्वानों आदि की संगति से दूर रहते हैं । जो लोग सत्संगति करते हैं, वे अपने कुल को पवित्र कर देते हैं ।
एकोऽपि गुणवान् पुत्रो निर्गुणैश्च शतैर्वरः। एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति न च ताराः सहस्रशः॥
जिस प्रकार एक चाँद ही रात्रि के अन्धकार को दूर करता है, असंख्य तारे मिलकर भी रात्रि के गहन अन्धकार को दूर नहीं कर सकते, उसी प्रकार एक गुणी पुत्र ही अपने कुल का नाम रोशन करता है, उसे ऊंचा उठाता है । सैकड़ों निकम्मे पुत्र मिलकर भी कुल की प्रतिष्ठा को ऊंचा नहीं उठा सकते ।
कुग्रामवासः कुलहीन सेवा कुभोजन क्रोधमुखी च भार्या। पुत्रश्च मूर्खो विधवा च कन्या विनाग्निमेते प्रदहन्ति कायम्॥
दुष्टों के गाँव में रहना, कुलहीन की सेवा, कुभोजन, कर्कशा पत्नी, मुर्ख पुत्र तथा विधवा पुत्री ये सब व्यक्ति को बिना आग के जला डालते हैं ।
अभ्यासाद्धार्यते विद्या कुलं शीलेन धार्यते। गुणेन ज्ञायते त्वार्य कोपो नेत्रेण गम्यते॥
अभ्यास से विद्या का, शील-स्वभाव से कुल का, गुणों से श्रेष्टता का तथा आँखों से क्रोध का पता लग जाता है ।
गुणो भूषयते रूपं शीलं भूषयते कुलम्। सिद्धिर्भूषयते विद्यां भोगो भूषयते धनम्॥
गुण रूप की शोभा बढ़ाते हैं, शील – स्वभाव कुल की शोभा बढ़ाता है, सिद्धि विद्या की शोभा बढ़ाती है और भोग करना धन की शोभा बढ़ाता है ।
निर्गुणस्य हतं रूपं दुःशीलस्य हतं कुलम्। असिद्धस्य हता विद्या अभोगस्य हतं धनम्॥
गुणहीन का रूप, दुराचारी का कुल तथा अयोग्य व्यक्ति की विद्या नष्ट हो जाती है । धन का भोग न करने से धन भी नष्ट हो जाता है ।
किं कुलेन विशालेन विद्याहीने च देहिनाम्। दुष्कुलं चापि विदुषी देवैरपि हि पूज्यते॥
विद्याहीन होने पर उच्च कुल का क्या करना? विद्वान नीच कुल का भी हो, तो देवताओं द्वारा भी पूजा जाता है ।