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चालाक लोग अपनी सुविधानुसार अपना दल बदल लेते हैं – शिक्षाप्रद कहानी

एक बार एक शिकारी ने एक चमगादड को पकड़ लिया। वह उसे मारकर खाने ही वाला था कि चमगादड चिंचिया कर बोला – ”कृप्या मेरी जान बख्श दो। मेरे छोटे-छोटे बच्चे घर पर मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। मुझ पर दया करो।“

चालाक लोग अपनी सुविधानुसार अपना दल बदल लेते हैं - शिक्षाप्रद कहानी

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”बिल्कुल नहीं।“ शिकारी बोला- ”मैं पक्षियों पर दया नहीं करता।“

”परंतु मैं पक्षी नहीं हूं।“ चमगादड ने कहा- ”मेरा शरीर देखो। मैं देखने में चूहा लगता हूं।“

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”हूं!“ शिकारी ने चमगादड को ध्यान से देखा और उसे छोड़ दिया।

दुर्भाग्यवश कुछ दिनों बाद उसी चमगादड को किसी दूसरे शिकारी ने पकड़ लिया।

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”कृप्या मुझे जान से मत मारिए।“ चमगादड घिघिया कर बोला – मुझ पर दया करो।

”बिल्कुल नहीं।“ शिकारी ने जवाब दिया- ”मैं चूहों पर दया नहीं करता।“

”पर श्रीमान मैं चूहा नहीं हूं।“ चमगादड बोला- ”अरे मेरे पंख देखिए। क्या चूहों के पंख होते हैं।“

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शिकारी ने उसकी बात सुनकर उसे छोड़ दिया। इस प्रकार उस चमगादड को दूसरी बार जीवनदान मिला।

शिक्षा – चालाक लोग अपनी सुविधानुसार अपना दल बदल लेते हैं।

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