पुरानी कहावत है कि घर का भेदी लंका ढाये। अब ये अलग बात है कि बीजेपी की बिहार की लंका तो बसने से पहले ही उजड़ गई। और इस लंका के बसने से पहले ही उजड़ जाने का श्रेय उस आदमी के सर जा रहा है जो कल तक न सिर्फ बीजेपी के भीतर खासमखास हुआ करता था बल्कि पिछले साल के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत का सारथी भी माना जा रहा था।
फिर क्या हुआ कि अचानक इस शख्श को अशोक रोड बीजेपी दफ्तर से निकल कर पटना का रास्ता लेना पड़ा और इन्होने जा थामा नीतीश कुमार का हाथ? इसके बाद जो हुआ, वह जग-जाहिर है। जी हाँ, हम प्रशांत किशोर की बात कर रहे हैं जिन्होंने अमित शाह द्वारा बीजेपी में बेइज्जती कर बाहर धकियाए जाने के बाद बिहार चुनाव में महागठबंधन की जीत की ऐसी पटकथा लिखी कि अमित शाह का सारा चुनावी रण -कौशल उनके सामने फीका पड़ गया। आइये जानते हैं कि आखिर कौन हैं ये प्रशांत किशोर?
अब जबकि बिहार चुनाव के नतीजे सबके सामने हैं और दो वर्ष पूरे होने से पहले ही भाजपा का चमकता सितारा अचानक डूबता दिखाई दे रहा है, तो चर्चा है बीजेपी के अंदर अमित शाह को लेकर और भविष्य में उनकी भूमिका को लेकर मंथन शुरू हो गया है। भाजपा के भीतर और बाहर उनके आलोचक तो खुलेआम हार का ठीकरा अमित शाह के सर फोड़ रहे हैं। ऐसे में तय है कि ब्रिटेन यात्रा से लौटने के बाद नरेंद्र मोदी पर अमित शाह के पर कतरने का दबाव बढ़ेगा। नरेंद्र मोदी की ही पसंद पर भाजपा के अध्यक्ष बनाये गए अमित शाह पर लगते प्रश्नचिन्ह खुद नरेंद्र मोदी के ऊपर भी उठते दिखाए दे रहे हैं। सरकार और भाजपा को बिहार चुनाव में हार के कलंक से बचाने के लिए अमित शाह की कुर्बानी दी जा सकती है या फिरउनकी भूमिका सीमित की जा सकती है।
खैर बात हम प्रशांत किशोर की रहे थे। बहुत कम लोगों को मालूम है कि प्रशांत किशोर की नरेंद्र मोदी की लोकसभा चुनाव में अभूतपूर्व जीत में बड़ी भूमिका रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ में अपनी नौकरी छोड़ कर प्रशांत किशोर ने 2011 में नरेंद्र मोदी की टीम को ज्योइन किया था। और 2012 में नरेंद्र मोदी की गुजरात विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी जीत ने साबित कर दिया था कि प्रशांत किशोर का चुनावी माडल अजेय है। सूत्रों का तो यहाँ तक कहना है कि प्रशांत किशोर नरेंद्र मोदी के गांधीनगर स्थित घर से चुनावी गतिविधियों का सञ्चालन किया करते थे। “चाय पे चर्चा” से लेकर “3D होलोग्राम” तक, ये सभी, प्रशांत किशोर के युवा दिमाग की उपज थे। ये सभी हिट भी हुए और नरेंद्र मोदी को आशातीत सफलता दिलाने में सहायक हुए।
अनेक अन्य बीजेपी नेताओं की तरह अमित शाह भी प्रशांत किशोर की बढ़ती लोकप्रियता और प्रभाव से असुरक्षित महसूस करने लगे और उन्होंने कई बार नरेंद्र मोदी के सामने प्रशांत का अपमान करने का प्रयास भी किया।
इलेक्शन के बाद प्रशांत को पीएमओ में पद का ऑफर मिला किन्तु वह कोई बड़ी भूमिका चाहते थे। इस सबके बीच और अमित शाह से बढ़ती दूरियों के कारण प्रशांत किशोर ने दिल्ली छोड़ कर नीतीश का हाथ थाम लिया। नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर का गर्मजोशी से स्वागत किया।
इसके बाद क्या हुआ? यह एक इतिहास बन गया है। बीजेपी की बिहार में बुरी हार हुई और इस हार में परदे के पीछे सूत्रधार की भूमिका प्रशांत किशोर की मानी जा रही है।
हो गया न “घर का भेदी लंका ढाये” का मुहावरा सच?
अब सुनने में आ रहा है कि प्रशांत किशोर ममता बैनर्जी को बंगाल चुनाव में मदद करने जा रहे हैं।