Dhoort Bhediya saras shikshaprad kahani
एक भेड़िया जब अपने शिकार को खा रहा था तो मांस की एक हड्डी उसके गले में फंस गई। भेड़िया दर्द से चिल्लाने लगा। गले का दर्द धीरे-धीरे बढ़ता गया और जब असहनीय हो गया तो भेड़िये को लगा कि वह मर जाएगा। उसे सांस लेने में कठिनाई हो रही थी। अचानक एक सारस को देखकर उसकी जान में जान आई। वह सारस के पास पहुंचा और अटक-अटक कर बोला-”अरे सारस भाई! मेरे दोस्त! मेरे गले में हड्डी फंस गई है। मैं दर्द से मरा जा रहा हूं। मैं तुम्हारा जीवन भर एहसान मानूंगा और पुरस्कार भी दूंगा, बस तुम मेरे गले की हड्डी निकाल दो।“
सारस को भेड़िये की दुर्दशा देखकर दया आ गई। उसने अपनी लम्बी चोंच भेड़िये के गले में डाली और गले में फंसी हड्डी बाहर निकाल दी। भेड़िये की जान में जान आई। सारस ने भेड़िये को उसके वादे की याद दिलाई। इस पर भेड़िये ने बहुत ही बेशर्मी से कहा- ”मूर्ख पक्षी! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई पुरस्कार मांगने की। क्या यह किसी पुरस्कार से कम है कि तुमने अपनी गरदन मेरे मुंह में डाली और सही सलामत हो? जरा सोचो, अगर मैं जबड़े बंद कर लेता तो तुम्हारी गरदन तो मेरे पेट में होती और तुम इस संसार से कूच कर गए होते।“ यह कहकर भेड़िया एक और चलता बना।
निष्कर्ष- नेकी उसके साथ करो, जो नेक हो।