Bhagvan Shiv se kya seekh milti kai?
श्रेष्ठ परिवार प्रमुख में सबसे पहला गुण यह होना चाहिये कि वह अपने सुख से अधिक अपने आश्रितों के सुख की चिन्ता करे और इसके निमित्त त्याग करे। मनुष्य के जीवन में तीन वस्तुएँ सर्वाधिक आवश्यक है – रोटी, कपड़ा और मकान। भगवान शिव ने इन तीनों ही चीजों की समस्त सुविधाएं अपने परिवार को देकर, स्वयं सात्विक जीवन अपनाया है। उन्होंने परिवार के लोगों के लिये नाना प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों, बहुमूल्य वस्त्रों और भव्य भवनों की व्यवस्था की है। उनका अपना आहार बना आक, धतूरा, बिल्वपत्र, वस्त्र बना बाघम्बर और निवास स्थान बनी ष्मषान भूमि।
जिस परिवार में दिन रात कलह मची हो, ईर्ष्या, द्वेश, वैर, स्पर्धा का बोल बाला हो, वह परिवार नर्क बन जाता है। स्वर्ग वहाँ है जहाँ एकता, प्रेम और शांति हो। अब देखो न, शिव का वाहन बैल, उमा का वाहन सिंह, शिव का कण्ठहार सर्प, श्री गणेश का वाहन मूशक और कार्तिक का वाहन मयूर। सब आपस में एक दूसरे के पुश्तैनी जानी दुष्मन है। मगर वाह रे शिव का प्रताप! सबको प्रेम और एकता के ऐसे धागे में बाँध रखा है कि वे आपस में हिलमिल कर रहते हैं।
सर्वमान्य और सर्वोचित निर्णय ठण्डे दिमाग से ही लिये जा सकते हैं। महाशिव के मस्तक पर चन्द्रमा और गंगा का होना इस बात का संकते है कि मस्तिष्क को सदा शीतल रखो। चन्द्रमा और गंगाजल दोनों में असीम शीतलता है।
शिव ने कुरीतियों का बहिस्कार करने, दीन हीनों, सेवक दासों को प्रेम और आदर प्रदान करने का भी एक अनूठा उदाहरण स्थापित किया। अपने विवाह में उन्होनें दहेज न लेकर पर्व्रतराज की कन्या का वरण किया। देवों और ऋषियों की भांति अपने गणों, भूत प्रेतों को भी सम्मान बारात में साथ चलने का अवसर दिया।
चित्त की एकाग्रता के लिये ध्यान विशुद्ध भारतीय वैज्ञानिक पद्धति है। भगवान शिव का ध्यानमग्न होना यह प्रकट करता है कि उनका अधिकाँश समय परिवार एवं जगत के कल्याण के चिन्तन करने में बीतता है।
परिवार संतुलन की पारिवारिक सुखों का मूल आधार है। ‘हम दो हमारे दो एवं छोटा परिवार सुखी परिवार’ का शाश्वत प्रतीक है – शिव परिवार। उनके केवल दो पुत्र हैं – गणेश एवं कार्तिकेय।
हम शिव की उपासना करते हैं, हमें उनके गुणों से प्रेरणा लेनी चाहिये और यही कामना करनी चाहिये कि हम सूर्य भले न बन सकें, कम से कम दीपक तो अवश्य बनें।