सूचना एवं प्रसारण मंत्री अरुण जेटली ने लगता है कि सेंसर बोर्ड से जुड़े विवादों को खत्म करने का मन बना लिया है। दरअसल अगर उनकी माने तो सेंसर बोर्ड की भूमिका में ही बदलाव आने वाला है और इसे कांट-छांट करने वाले बोर्ड से हट कर मात्र सर्टिफिकेशन बोर्ड (प्रमाणीकरण मंडल) बना दिया जाएगा। इस साल सेंसर बोर्ड लगातार विवादों में घिरा रहा है और ये विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहे हैं।
भारतीय सेंसर बोर्ड का पूरा नाम एक्चुअली सेन्ट्रल बोर्ड ऑफ़ फिल्म सर्टिफिकेशन है जिसे आम बोलचाल में सभी सेंसर बोर्ड ही कहते हैं। सेंसर बोर्ड से जुड़े विवाद तब से अधिक बढ़ गए हैं जब से पहलाज निहलानी इसके चेयरपर्सन बने थे। ” बैड वर्ड्स” की लिस्ट जारी की थी जिनका इस्तेमाल फिल्मों में नहीं किया जाना चाहिए। उनके इस कदम का भारी विरोध हुआ और इस आदेश को वापिस लेना पड़ा। आग में घी का काम किया “काका मोदी” नाम से निहलानी द्वारा बनवाए गए वीडियो ने जिसे लेकर खुद मंत्रालय की त्योरियां चढ़ गई थी।
आखिर अरुण जेटली को कहना ही पड़ा “अब मैं चाहता हूँ कि सर्टिफिकेशन बोर्ड की भूमिका को लेकर नए सिरे से विचार विमर्श हो। मैंने इस हेतु विशेषज्ञों से भी राय-मशविरा किया है ताकि भविष्य में सेंसर बोर्ड इस तमाम तरह के विवादों से परे अपना काम करता रहे।”
ख़ास कर २०१५ में सेंसर बोर्ड विवादों का केंद्र बना रहा। पहले तो बोर्ड की अध्यक्ष सुश्री लीला सैमसन एवं बोर्ड के अन्य सदस्यों ने सरकारी दखलंदाजी के विरोध में बोर्ड से अपना त्यागपत्र दे दिया। उनके बाद निहलानी चेयरमैन बने तो विवाद घटने के बजाय और बढ़ गए।
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फिल्म मेकर एसोसिएशन ने भी सेंसर बोर्ड द्वारा फिल्मों के दृश्यों पर कैंची चलाने का विरोध किया है और कहा है कि सेंसर बोर्ड की भूमिका केवल फिल्म के प्रमाणन (सर्टिफिकेशन ) तक सीमित होनी चाहिए।
आगे आगे देखिये होता है?