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अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले – इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले – इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले
दश्त पड़ता है मियाँ इश्क़ में घर से पहले

चल दिए उठ के सू-ए-शहर-ए-वफ़ा कू-ए-हबीब
पूछ लेना था किसी ख़ाक-बसर से पहले

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इश्क़ पहले भी किया हिज्र का ग़म भी देखा
इतने तड़पे हैं न घबराए न तरसे पहले

जी बहलता ही नहीं अब कोई साअ’त कोई पल
रात ढलती ही नहीं चार पहर से पहले

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हम किसी दर पे न ठिटके न कहीं दस्तक दी
सैकड़ों दर थे मिरी जाँ तिरे दर से पहले

चाँद से आँख मिली जी का उजाला जागा
हम को सौ बार हुई सुब्ह सहर से पहले

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देख हमारी दीद के कारन – इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें की ग़ज़लें

देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ
एक सितारा बैठे बैठे ताबिश में ख़ुर्शीद हुआ

आज तो जानी रस्ता तकते शाम का चाँद पदीद हुआ
तू ने तो इंकार किया था दिल कब ना-उम्मीद हुआ

आन के इस बीमार को देखे तुझ को भी तौफ़ीक़ हुई
लब पर उस के नाम था तेरा जब भी दर्द शदीद हुआ

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हाँ उस ने झलकी दिखलाई एक ही पल को दरीचे में
जानो इक बिजली लहराई आलम एक शहीद हुआ

तू ने हम से कलाम भी छोड़ा अर्ज़-ए-वफ़ा के सुनते ही
पहले कौन क़रीब था हम से अब तो और बईद हुआ

दुनिया के सब कारज छोड़े नाम पे तेरे ‘इंशा’ ने
और उसे क्या थोड़े ग़म थे तेरा इश्क़ मज़ीद हुआ

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