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अनामिका ऊँगली (रिंग फिंगर) में ही क्यों पहनते हैं सगाई की अंगूठी?

Anamika Ungli (Ring Finger) Mein Hi Kyun Pehente Hain Sagai Ki Anguthi

रिंग सेरेमनी हर किसी के जीवन में बहुत खास मानी जाती है। पहले के ज़माने में शायद रिंग सेरेमनी का उतना क्रेज़ नहीं हुआ करता था, लेकिन आजकल इसके बिना शादी अधूरी सी लगती है। आजकल तो शादी से पहले छोटे-छोटे इतने सारे प्रोग्राम हो जाते हैं जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेते।

शादी के मेन फंक्शन से पहले सगाई, मेहंदी, कॉकटेल पार्टी, वर और वधु दोनों के यहां रिश्तेदारों को अलग एवं दोस्तों को अलग से पार्टी देने का रिवाज़ भी आजकल काफी चर्चित हुआ है। इसके अलावा बैचलर्स पार्टी का क्रेज़ भी काफी हो गया है।

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लेकिन इन आज के ज़माने के फंक्शन के अलावा कुछ फंकशन ऐसे होते हैं जो चाहे बहुत पुराने ना हों, लेकिन फिर भी आज के दौर में जरूरी बन गए हैं। इन्हीं में से एक है रिंग सेरेमनी का फंक्शन।Anamika Ungli (Ring Finger) Mein Hi Kyun Pehente Hain Sagai Ki Anguthi

कुछ लोग रिंग सेरेमनी करने के कुछ महीने बाद शादी करते हैं तो कुछ लोग शादी से एक दिन ही पहले रिंग एक्सचेंज करते हैं। इस प्रोग्राम में रस्में भी काफी अलग-अलग होती हैं।

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यह रस्में क्षेत्र एवं धर्म के आधार पर बदलती चली जाती हैं, लेकिन एक बात जो सबमें कॉमन है वह है रिंग सेरेमनी में पहनाई जाने वाली रिंग (अंगूठी)। ये रिंग हाथ की तीसरी यानि कि अनामिका अंगुली में ही पहनाई जाती है। लेकिन ऐसा क्यों कभी आपने सोचा है?

एक आम धारणा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि जिस प्रकार से रिंग सेरेमनी की रिंग वर-वधु के दिल से जुड़ी होती है, उनके प्यार को बांधती है, उसी तरह से अनामिका अंगुली भी दिल से जुड़ी होती है।

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यह रोम देश की मान्यता है कि अनामिका से होकर एक नस सीधे दिल से जुड़ी होती है। इसलिए अंगूठी पहनने और पहनाने के लिए यही अंगुली सही मानी गई है। इससे लड़का-लड़की में प्यार बना रहता है और उनके दिल के तार आपस में जुड़े रहते हैं।

लेकिन इस पुरानी मान्यता के अलावा एक और मान्यता भी जुड़ी है रिंग सेरेमनी से। चीन में मान्यता है कि हमारे हाथ की हर अंगुली एक संबंध को दर्शाती है। कहते हैं कि हाथ की तीसरी अंगुली यानी अनामिका पार्टनर के लिए होती है।

शायद यही कारण है कि यहां पर ही रिंग पहनाई जाती है। अनामिका के अलावा हाथ का अंगूठा माता-पिता के लिए होता है, तर्जनी भाई-बहनों के लिए, मध्यमा खुद के लिए और कनिष्ठा बच्चों के लिए होती है।

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