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Alif Laila Kahani Shaharyar aur Shahzama शहरयार और शाहजमाँ की कहानी

अलिफ लैला की कहानी शहरयार और शाहजमाँ की कहानी

फारस देश भी हिंदुस्तान और चीन के समान था और कई नरेश उसके अधीन थे। वहाँ का राजा महाप्रतापी और बड़ा तेजस्वी था और न्यायप्रिय होने के कारण प्रजा को प्रिय था। उस बादशाह के दो बेटे थे जिनमें बड़े लड़के का नाम शहरयार और छोटे लड़के का नाम शाहजमाँ था। दोनों राजकुमार गुणवान, वीर धीर और शीलवान थे।

जब बादशाह का देहांत हुआ तो शहजादा शहरयार गद्दी पर बैठा और उसने अपने छोटे भाई को जो उसे बहुत मानता था तातार देश का राज्य, सेना और खजाना दिया। शाहजमाँ अपने बड़े भाई की आज्ञा में तत्पर हुआ और देश के प्रबंध के लिए समरकंद को जो संसार के सभी शहरों से उत्तम और बड़ा था अपनी राजधानी बनाकर आराम से रहने लगा। जब उन दोनों को अलग हुए दस वर्ष हो गए तो बड़े ने चाहा कि किसी को भेजकर उसे अपने पास बुलाए। उसने अपने मंत्री को उसे बुलाने की आज्ञा दी और मंत्री यह आज्ञा पाकर बड़ी धूमधाम से विदा हुआ। जब वह समरकंद शहर के समीप पहुँचा तो शाहजमाँ यह समाचार सुनकर उसकी अगवानी को सेना लेकर अपनी राजधानी से रवाना हुआ और शहर के बाहर पहुँचकर मंत्री से मिला। वह उसे देखकर प्रसन्न हुआ। शाहजमाँ अपने भाई शहरयार का कुशलक्षेम पूछने लगा। मंत्री ने शाहजमाँ को दंडवत कर उसके भाई का हाल कहा।

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वह मंत्री बादशाह शहरयार का परम आज्ञा पालक था और उससे प्रेम करता था। शाहजमाँ ने उससे कहा कि भाई! मेरे अग्रज ने तुम्हें मुझे लेने को भेजा इस बात से मुझको अत्यंत हर्ष हुआ। उनकी आज्ञा मेरे शिरोधार्य है। अगर भगवान ने चाहा तो दस दिन में यात्रा की तैयारी कर के और शासन में अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर तुम्हारे साथ चलूँगा। तुम्हारे और तुम्हारी सेना के लिए खाने-पीने का प्रबंध सब यहीं हो जाएगा। अतएव तुम इसी स्थान पर ठहरो। अतएव उसी स्थान पर खाने-पीने आदि की व्यवस्था कर दी गई और वे वहाँ रहे।

इस अवसर पर बादशाह ने यात्रा की तैयारियाँ की और अपनी जगह अपने विश्वास पात्र मंत्री को नियुक्त किया। एक दिन सायं अपनी बेगम से जो उसे अति प्रिय थी विदा ली और अपने सेवकों और मुसाहिबों को लेकर समरकंद से चला और अपने खेमे में पहुँचकर मंत्री के साथ बातचीत करने लगा। आधी रात होने पर उसकी इच्छा हुई कि एक बार बेगम से फिर मिल आऊँ। वह सबसे छुपकर अकेला ही महल में पहुँचा। बेगम को उसके आने का संदेह तक न था; वह अपने एक तुच्छ और कुरूप सेवक के साथ सो रही थी।

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शाहजमाँ सोचकर आया था कि बेगम उसे देखकर अति प्रसन्न होगी। उसे दूसरे मर्द के साथ सोते देखकर एक क्षण के लिए उसे काठ मार गया। कुछ सँभलने पर सोचने लगा कि कहीं मुझे दृष्टि-भ्रम तो नहीं हो गया। लेकिन भलीभाँति देखने पर भी जब वही बात पाई तो सोचने लगा यह कैसा अनर्थ है कि मैं अभी समरकंद नगर की रक्षा भित्ति से बाहर भी नहीं निकला और ऐसा कर्म होने लगा। वह क्रोधाग्नि में जलने लगा और उसने तलवार निकालकर ऐसे हाथ मारे कि दोनो के सिर कट कर पलँग के नीचे आ गए। इसके बाद दोनों शवों को पिछवाड़े की खिड़की से नीचे गड्ढे में फेंककर वह अपने खेमे में वापस आ गया। उसने किसी से रात की बात न बताई।

दूसरे दिन प्रातः ही सेना चल पड़ी। उसके साथ के और सब लोग तो हँसी-खुशी रास्ता काट रहे थे किंतु शाहजमाँ अपनी बेगम के पाप कर्म को याद कर के दुखी रहता था और दिनों दिन उसका मुँह पीला पड़ता जाता था। उसकी सारी यात्रा इसी कष्ट में बीती।

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जब वह हिंदुस्तान की राजधानी के समीप पहुँचा और शहरयार ने यह सुना तो वह अपने सारे दरबारियों को लेकर शाहजमाँ की अभ्यर्थना के लिए आया। जब दोनों एक-दूसरे के पास पहुँचे तो अपने-अपने घोड़े से उतर कर गले मिले और कुछ देर तक एक-दूसरे की कुशलक्षेम पूछ कर बड़े समारोहपूर्वक रवाना हुए। शहरयार ने शाहजमाँ को उस महल में ठहराया जो उसके लिए पहले से सजाया गया था और जहाँ से उद्यान दिखाई देता था। वह महल बड़ा और राजाओं के स्वागतयोग्य था। फिर शहरयार ने अपने भाई से स्नान करने को कहा। शाहजमाँ ने स्नान कर के नए कपड़े पहने और दोनों भाई महल के मंच पर बैठकर देर तक वार्तालाप करते रहे। सारे दरबारी दोनों बादशाहों के सामने अपने-अपने उपयुक्त स्थान पर खड़े रहे। भोजनोपरांत भी दोनों बादशाह देर तक बातें करते रहे।

जब रात बहुत बीत गई तो शहरयार अपने भाई को आतिथ्य गृह में छोड़कर अपने महल को चला गया। शाहजमाँ फिर शोकाकुल होकर अपने पलँग पर आँसू बहाता हुआ लोटता रहा। भाई के सामने वह अपना दुख छुपाए रहा लेकिन अकेला होते ही उस पर वही दुख सवार हो गया और उसकी पीड़ा ऐसी बढ़ गई जैसे उसकी जान लेकर ही छोड़ेगी। वह एक क्षण के लिए भी अपनी बेगम का दुष्कर्म भुला नहीं पाता था। वह अक्सर हाय हाय कर उठता और हमेशा ठंडी साँसें भरा करता। उसे रातों को नींद नहीं आती थी। इसी दुख और चिंता में उसका शरीर धीरे-धीरे घुलने लगा।

शहरयार ने उसकी यह दशा देखी तो विचार किया कि मैं शाहजमाँ से इतना प्रेम करता हूँ और उसकी सुख-सुविधा का इतना खयाल रखता हूँ फिर भी सदैव ही इसे शोक सागर में निमग्न देखता हूँ। मालूम नहीं इसे अपने राज्य की चिंता खाए जाती है या अपनी बेगम का विछोह सताता है। मैंने इसे यहाँ बुलाकर बेकार ही इसे शोक संताप में डाल दिया। अब उचित होगा कि इसे समझा-बुझा कर और उत्तमोत्तम भेंट वस्तुएँ देकर समरकंद वापस भेज दूँ ताकि इसका दुख दूर हो सके। यह सोचकर उसने हिंदुस्तान देश की बहुमूल्य वस्तुएँ थालों में लगाकर शाहजमाँ के पास भेजीं और उसका जी बहलाने के लिए तरह-तरह के खेल-तमाशे करवाए लेकिन शाहजमाँ की उदासी कम नहीं हुई बल्कि बढ़ती ही गई। फिर शहरयार ने अपने दरबारियों से कहा कि सुना है यहाँ से दो दिनों की राह के बाद एक घना जंगल है और वहाँ अच्छा शिकार मिलता है इसलिए मैं वहाँ शिकार खेलने जाना चाहता हूँ; तुम लोग भी तैयार होकर मेरे साथ चलो और शाहजमाँ से भी चलने को कहो क्योंकि शिकार में उसका जी लगेगा और उसका चित्त प्रसन्न होगा। शाहजमाँ ने निवेदन किया कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, इस कारण मुझे शिकार पर जाने से माफ करें। शहरयार ने कहा – अच्छी बात है, अगर तुम्हारा यहीं रहने को जी चाहता है तो रहो लेकिन मैं तैयारी कर चुका हूँ, मेरे अपने भृत्यों के साथ शिकार के लिए जाता हूँ।

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शहरयार के जाने के बाद शाहजमाँ ने अपने निवास स्थान के द्वार अंदर से बंद कर लिए और एक खिड़की पर जा बैठा। वहाँ से शाही महल का उद्यान दिखाई देता था। शाहजमाँ सुवासित पुष्पों और पक्षियों के कलरव से अपना जी बहलाने लगा। लेकिन मकान और बाग की शोभा से जी बहलाने पर भी उसे अपनी पत्नी के दुराचार की कचोट बनी रहती।

जब संध्या हुई तो शाहजमाँ ने देखा कि राजमहल का एक चोर दरवाजा खुला और उसमें से शहरयार की बेगम बीस अन्य स्त्रियों के साथ निकली। वे सब उत्तम वस्त्रों और अलंकारों से शोभित थीं और इस विश्वास के साथ कि सब लोग शिकार पर चले गए हैं, बाग में आ गईं। शाहजमाँ खिड़की में छुप कर बैठ गया और देखने लगा कि वे क्या करती हैं।

दासियों ने उन लबादों को उतार डाला जो पहन कर वे महल से निकली थीं। अब उनकी सूरत स्पष्ट दिखाई देने लगी। शाहजमाँ को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि जिन बीसों को उसने स्त्री समझा था उनमें से दस हब्शी मर्द थे। उन दसों ने अपनी-अपनी पसंद की दासी का हाथ पकड़ लिया। सिर्फ बेगम बगैर मर्द की रह गई। फिर बेगम ने आवाज दी, ‘मसऊद, मसऊद’। इस पर एक हृष्ट-पुष्ट हब्शी युवक जो उसकी आज्ञा की प्रतीक्षा में था एक वृक्ष से उतर कर बेगम की ओर दौड़ा और उसका हाथ पकड़ लिया। उन ग्यारह हब्शियों ने दस दासियों और बेगम के साथ क्या किया उसका वर्णन मैं लज्जावश नहीं कर सकूँगा। इसी भाँति वे आधी रात तक बाग में विहार करते रहे। फिर बाग के हौज में नहा कर बेगम और उसके साथ आए बीस मर्द औरतों ने अपने कपड़े पहने और जिस चोर दरवाजे से आए थे उसी से महल में चले गए और मसऊद भी बाग की दीवार फाँद कर बाहर चला गया।

यह कांड देखकर शाहजमाँ को घोर आश्चर्य हुआ। उसने सोचा कि मैं तो दुखी हूँ ही, मेरा बड़ा भाई मुझ से भी अधिक दुखी है। यद्यपि वह अत्यंत शक्तिशाली और वैभवशाली है तथापि इस दुष्कर्म को रोकने में असमर्थ है, फिर मैं इतना शोक क्यों करूँ। जब मुझे मालूम हो गया कि यह नीच कर्म संसार में अक्सर ही होता है तो मैं बेकार ही स्वयं को शोक सागर में डुबोए दे रहा हूँ। यह सोचकर उसने सारी चिंता छोड़ दी और साधारण रूप से रहने लगा। पहले उसकी भूख मिट गई थी, अब वह जाग गई और वह नाना प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन मँगाकर खाने लगा और संगीत-नृत्य आदि का आनंद लेने लगा।

जब शहरयार शिकार से लौटा तो शाहजमाँ ने बड़ी प्रसन्नतापूर्वक उसका स्वागत किया। शहरयार ने उसे शिकार किए हुए बहुत से जानवर दिखाए और कहा कि बड़े खेद की बात है कि तुम शिकार पर नहीं गए, वहाँ बड़े आनंद की जगह है। शाहजमाँ बादशाह की हर बात का हँसी-खुशी उत्तर देता था। शहरयार ने सोचा था कि वापसी पर भी शाहजमाँ को दुख और शोक में डूबा पाएगा लेकिन इसके विपरीत उसे प्रसन्न और संतुष्ट देखकर बोला ‘ऐ भाई, भगवान को बड़ा धन्यवाद है कि मैंने थोड़ी ही अवधि में तुम्हें प्रसन्न और व्याधिमुक्त देखा। अब मैं तुम्हें सौगंध देकर एक बात पूछता हूँ, तुम वह बात जरूर बताना। शाहजमाँ ने कहा, ‘जो बात भी आप पूछेंगे मैं अवश्य बताऊँगा।’

शहरयार ने कहा, ‘जब तुम अपनी राजधानी से यहाँ आए थे तो मैंने तुम्हें शोक सागर में डूबा देखा था। मैंने तुम्हारा चित्त प्रसन्न करने के लिए अनेक उपाय किए, भाँति-भाँति के खेल-तमाशे करवाए किंतु तुम्हारी दशा जैसी की तैसी रही। मैंने बहुत सोचा कि इस दुख का कारण क्या हो सकता है किंतु इसके सिवा कोई कारण समझ में नहीं आया कि तुम्हें अपनी बेगम के विछोह का दुख है और राज्य प्रबंध की चिंता है। किंतु अब क्या बात हुई जिससे तुम्हारा दुख और चिंता दूर हो गई?

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शाहजमाँ यह सुनकर मौन रहा किंतु जब शहरयार ने बार-बार यही प्रश्न पूछा तो वह बोला, ‘आप मेरे मालिक हैं मुझ से बड़े हैं; मैं इस प्रश्न का उत्तर न दूँगा क्योंकि इसमें बड़ी निर्लज्जता की बात है।’ शहरयार ने कहा कि जब तक तुम मुझे यह न बताओगे तब तक मुझे चैन न आएगा। शाहजमाँ ने विवश होकर अपनी बेगम के कुकर्म का सविस्तार वर्णन किया और कहा कि मैं इसी कारण दुखी रहता था।

शहरयार ने कहा, ‘भैय्या, यह तो तुमने बड़े आश्चर्य की, असंभव-सी बात बताई। यह तो तुमने बड़ा अच्छा किया कि ऐसी व्यभिचारिणी को उसके प्रेमी सहित मार डाला। इस मामले में कोई तुम्हें अन्यायी नहीं कह सकता। मैं तुम्हारी जगह होता तो मुझे एक स्त्री को मारने से संतोष न होता, हजार स्त्रियों को मार डालता। बताओ कि मेरे बाहर जाने पर यह शोक किस प्रकार दूर हुआ?’

शाहजमाँ ने कहा, ‘मुझे यह बात कहते डर लगता है कि ऐसा न हो कि यह सुनकर आपको मुझसे भी अधिक दुख हो।’ शहरयार ने कहा कि भाई, तुमने यह कह कर मेरी उत्कंठा और बढ़ा दी है; मुझे अब इसे सुने बगैर चैन न आएगा इसलिए यह बात जरूर बताओ। विवश होकर शाहजमाँ ने मसऊद, दसों दासियों और बेगम का सारा हाल बताया और बोला, यह घटना मैंने अपनी आँखों से देखी है और समझ लिया है कि सारी स्त्रियों के स्वभाव में दुष्टता और पाप होता है। और आदमी को चाहिए कि उनका भरोसा न करे। मुझे यह सारा कांड देखकर अपना दुख भूल गया है और इसीलिए मैं नीरोग और प्रसन्नचित्त दिखाई देता हूँ।’

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यह हाल सुनकर भी शहरयार को अपने भाई के कथन पर विश्वास न हुआ। वह क्रुद्ध स्वर में बोला, ‘क्या हमारे देश की सारी बेगमें व्यभिचारिणी हैं? मुझे तुम्हारे कहने का विश्वास नहीं होगा जब तक मैं खुद अपनी आँखों से यह न देख लूँ। संभव है तुम्हें भ्रम हुआ हो।’ शाहजमाँ ने कहा, ‘भाई साहब, आप खुद देखना चाहते हैं तो ऐसा कीजिए कि दुबारा शिकार के लिए आज्ञा दीजिए। हम आप दोनों फौज के साथ शहर से कूच कर के बाहर चलें। दिन भर अपने खेमों में रहें और रात को चुपचाप इसी मकान में आ बैठें। फिर निश्चय ही आप वह सारा व्यापार अपनी आँखों देख लेंगे जो मैंने आपको बताया है।’

शहरयार ने यह बात स्वीकार कर के दरबारियों को आज्ञा दी कि कल मैं फिर शिकार को जाऊँगा। अतः दूसरे दिन प्रातःकाल ही दोनों भाई शिकार को चले और शहर के बाहर जाकर अपने खेमों में ठहरे। जब रात हुई तो शहरयार ने मंत्री को बुलाकर आज्ञा दी कि मैं एक जरूरी काम से जा रहा हूँ, तुम फौज के किसी आदमी को यहाँ से जाने न देना। तत्पश्चात दोनों भाई घोड़ों पर सवार होकर गुप्त रूप से शहर में आए और सवेरा होने के पहले ही शाहजमाँ के महल की उसी खिड़की में आ बैठे जिससे शाहजमाँ ने सारा कांड देखा था। सूर्योदय के पूर्व ही महल का चोर दरवाजा खुला और कुछ देर में बेगम अपने उन्हीं स्त्री वेशधारी हब्शियों के साथ वहाँ से निकल कर बाग में आई और मसऊद को पुकारा।

यह सारा हाल – जो न कहने के योग्य है न सुनने के – देखकर शहरयार अपने मन में कहने लगा कि हे! भगवान, यह कैसा अनर्थ है कि मुझ जैसे महान नृपति की पत्नी ऐसी व्यभिचारणी हो। फिर वह शाहजमाँ से बोला कि यह अच्छा रहेगा कि हम इस क्षणभंगुर संसार को जिसमें एक क्षण आनंद का होता है दूसरा दुख का, छोड़ दें और अपने देशों और सेनाओं का परित्याग कर के अन्य देशों में शेष जीवन काटें और इस घृणित व्यापार के बारे में किसी से कुछ न कहें।

शाहजमाँ को यह बात पसंद नहीं आई किंतु अपने भाई की अत्यंत दुखी दशा देखकर उसने इनकार करना ठीक न समझा और बोला, ‘भाई साहब, मैं आपका अनुचर हूँ और आपकी आज्ञा को पूर्ण रूप से मानूँगा। लेकिन मेरी एक शर्त है। जब आप किसी व्यक्ति को अपने से अधिक इस दुर्भाग्य से पीड़ित देखें तो अपने देश को लौट आएँ।’

शहरयार ने कहा, ‘मुझे तुम्हारी यह शर्त स्वीकार है लेकिन मेरा विचार है कि संसार में किसी मनुष्य को हमारे जैसा दुख नहीं होगा।’ शाहजमाँ ने कहा, ‘थोड़ी-सी ही यात्रा करने पर आपको इस बात का पता अच्छी तरह से चल जाएगा।’

अतएव वे दोनों छुप कर एक सुनसान रास्ते से नगर के बाहर एक ओर को चले। दिन भर चलने के बाद रात को एक पेड़ के नीचे लेट कर सो रहे। दूसरे दिन प्रातःकाल वे वहाँ से भी आगे चले और चलते-चलते एक मनोरम वाटिका में पहुँचे जो एक नदी के तट पर बनी हुई थी। इस वाटिका में दूर-दूर तक घने और बड़े-बड़े वृक्ष लगे थे। वहाँ एक वृक्ष के नीचे बैठकर वे सुस्ताने लगे और बातचीत करने लगे।

थोड़ी ही देर हुई थी कि एक भयानक शब्द सुनकर दोनों अत्यंत भयभीत हुए और काँपने लगे। कुछ देर में देखा कि नदी के जल में दरार हुई और उसमें से एक काला खंभा निकलने लगा। वह इतना ऊँचा हो गया कि उसका ऊपरी भाग आकाश के बादलों में लुप्त हो गया। यह कांड देखकर दोनों भाई और भी भयभीत हुए और एक ऊँचे वृक्ष पर चढ़ कर उसकी डालियों और पत्तों में छुपकर बैठ गए। उन्होंने देखा कि काला खंभा नदी के तट की ओर बढ़ने लगा और तट पर आकर एक महा भयानक दैत्य के रूप में परिवर्तित हो गया। अब वे दोनों और भी घबराए और एक और ऊँची डाल पर जा बैठे। दैत्य नदी तट पर आया तो उन्होंने देखा कि उसके सिर पर एक सीसे का बड़ा और मजबूत संदूक है जिसमें पीतल के चार ताले लगे हैं।

दैत्य ने नदी तट पर आकर सिर से संदूक उतारा और उसी वृक्ष के नीचे रख दिया जहाँ दोनों भाई छुपे थे। फिर उसने कमर से लटकती हुई चार चाभियों से संदूक के चारों ताले एक-एक कर के खोले। संदूक खोला तो उसमें से एक अति सुंदर स्त्री निकली जो उत्तमोत्तम वस्त्राभूषणों से अलंकृत थी। दैत्य ने स्त्री को प्रेम दृष्टि से देखा और कहा, ‘प्रिये, तू सुंदरता में अनुपम है। बहुत दिन हो गए जब मैं तुझे तेरे विवाह की रात को उड़ा लाया था। इस सारे काल में तू बड़ी निष्कलंक और मेरे प्रति वफादार रही है। मुझे इस समय बड़ी नींद आ रही है इसलिए तेरे निकट सोना चाहता हूँ।’ यह कहकर वह महा भयानक आकृति वाला दैत्य उस स्त्री की जंघा पर सिर रख कर सो रहा। उसका शरीर इतना विशाल था कि उसके पाँव नदी के जल को छू रहे थे। सोते समय उसकी साँस का स्वर ऐसा हो रहा था जैसे बादल गरज रहे हों। सारा वातावरण उस ध्वनि से कंपायमान हो रहा था।

एक बार संयोग से जब स्त्री ने ऊपर की ओर देखा तो उसे पत्तियों में छुपे हुए दोनों भाई दिखाई दिए। उसने दोनों को नीचे उतरने का संकेत किया। उसके उद्देश्य को समझकर दोनों का भय और बढ़ा। दोनों ने इशारे ही से उससे विनती की कि हमें पेड़ ही पर छुपा रहने दो। स्त्री ने धीरे से दैत्य का सिर अपनी गोद से उतारकर पृथ्वी पर रख दिया और उठकर उनको धैर्य देते हुए बोली कि कोई भय की बात नहीं है, तुम नीचे उतर आओ और मेरे समीप बैठो। उसने यह भी धमकी दी कि अगर न आओगे तो मैं दैत्य को जगा दूँगी और वह तुम दोनों को समाप्त कर देगा। यह सुनकर वे बहुत डरे और चुपचाप नीचे उतर आए। वह स्त्री मुस्कारती हुई दोनों का हाथ पकड़ कर एक वृक्ष के नीचे ले गई और उनसे अपने साथ संभोग करने को कहा। पहले तो उन दोनों ने इनकार किया किंतु फिर उसकी धमकी से डर कर वह जैसा चाहती थी उसके साथ कर दिया। इसके बाद स्त्री ने उनसे उनकी एक-एक अँगूठी माँग ली। फिर उसने एक छोटी-सी संदूकची निकाली और उनसे पूछा कि जानते हो इसमें क्या है और किसलिए है? उन्होंने कहा, हमें नहीं मालूम, तुम बताओ इसमें क्या है। उस सुंदरी ने कहा, इसमें उन लोगों की निशानियाँ हैं जो तुम्हारी तरह मुझसे संबंध कर चुके हैं। ये अट्ठानबे अँगूठियाँ थीं और तुम्हारी दो मिलने से सौ हो गईं। इस दैत्य की इतनी कड़ी निगरानी के बाद भी मैंने सौ बार ऐसी मनमानी की है। यह दुराचारी दैत्य मुझ पर इतना आसक्त है कि क्षण भर के लिए भी मुझे अपने से अलग नही करता और बड़ी देखभाल के साथ मुझे इस सीसे के संदूक में छुपाकर समुद्र की तलहटी में रखता है। लेकिन उसकी सारी चालाकी और रक्षा प्रबंध पर भी मैं जो चाहती हूँ वह करती हूँ और इस बेचारे का सारा प्रबंध बेकार हो जाता है। अब मेरे हाल से तुम समझ लो कि स्त्री जब कामासक्त होती है तो कोई भी उसे दुष्कर्म से रोक नहीं सकता।

इसके पश्चात वह उनकी अँगूठियाँ लेकर अपनी जगह आई। उसने दैत्य का सिर फिर अपनी गोद में रख लिया और इन दोनों को संकेत किया कि चले जाओ। दोनों वहाँ से चल दिए और जब बहुत दूर निकल गए तो शाहजमाँ ने अपने बड़े भाई शहरयार से कहा, ‘देखिए, इतनी सुरक्षा और कड़े प्रबंध पर भी यह स्त्री अपने मन की अभिलाषा पूरी कर रही है। यह भी देखिए कि दैत्य को उस पर कितना विश्वास है और वह उसकी निष्कलंकता की कैसी प्रशंसा कर रहा था। अब आप ही न्यायपूर्वक बताएँ कि इस बेचारे पर हम लोगों से अधिक दुर्भाग्य है या नहीं। हम जो बात ढूँढ़ने निकले थे वह हमें मिल गई। अब हमें चाहिए कि अपने-अपने देशों को चलें और किसी स्त्री से विवाह न करें क्योंकि शायद ही कोई स्त्री निष्पाप हो।

चुनांचे शहरयार ने अपने छोटे भाई के कहने के अनुसार ही काम किया और वहाँ से दोनों शहरयार की राजधानी को चले। तीन रातों बाद वे अपनी सेनाओं में पहुँचे। शहरयार ने आगे शिकार पर न जाना चाहा और राजधानी को वापस आ गया। महल में जाकर उसने मंत्री को आज्ञा दी कि वह बेगम को ले जाकर मृत्युदंड दे। मंत्री ने बादशाह की आज्ञानुसार ऐसा ही किया। फिर शहरयार ने दसों व्याभिचारिणी दासियों को अपने हाथ से मार डाला। इसके बाद शहरयार ने सोचा कि कोई ऐसा उपाय करूँ कि विवाह के बाद मेरी बेगम कुकर्म का अवसर ही ना पा सके। अतएव उसने निश्चय किया कि रात को विवाह करूँ और सबेरे ही बेगम को मरवा दूँ। तत्पश्चात उसने अपने भाई शाहजमाँ को विदा किया। वह शहरयार की दी हुई अमूल्य भेंटों को लेकर अपनी सेना के साथ समरकंद चला गया। शाहजमाँ के जाने के बाद अपने प्रधान मंत्री को आज्ञा दी कि वह विवाह हेतु किसी सामंत की बेटी को लाए। प्रधान मंत्री ने एक अमीर की बेटी ला खड़ी की। शहरयार ने उससे विवाह किया और रात भर उसके साथ बिता कर सुबह मंत्री को आज्ञा दी कि इसे ले जाकर मार डालो और रात के लिए फिर किसी सरदार की सुंदरी बेटी मेरे विवाहार्थ ले आना। मंत्री ने उस बेगम को मार डाला और शाम को एक और अमीर की बेटी ले आया और दूसरे दिन उसे भी ले जाकर मार डाला। इसी प्रकार शहरयार ने सैकड़ों अमीरों सरदारों की बेटियों से विवाह किया और दूसरी सुबह उन्हें मरवा डाला। अब सामान्य नागरिकों की बारी आई। साथ ही इस जघन्य अन्याय की बात सब जगह फैल गई। सारे नगर में शोक, संताप और रोदन की आवाजें उठने लगीं। कहीं पिता अपनी पुत्री को मृत्यु पर आठ-आठ आँसू रोता था, कहीं लड़की की माता पछाड़ें खाती थी। जो कन्याएँ अभी तक बच रही थीं उनके माता-पिता और सगे-संबंधी अत्यंत दुखी रहते थे। कई लोग अपनी बेटियों को लेकर देश छोड़ गए और अन्य देशों में जा बसे।

वहाँ के मंत्री की दो कुँआरी बेटियाँ थीं। बड़ी का नाम शहरजाद और छोटी का नाम दुनियाजाद था। शहरजाद अपनी बहन और सहेलियों से अधिक तीक्ष्ण बुद्धि थी। वह जो बात भी सुनती या किसी पुस्तक में देखती उसे कभी नहीं भूलती थी। वार्तालाप के गुण में भी प्रवीण थी। उसे बहुत प्राचीन मनीषियों की आख्यायिकाएँ और कविताएँ जुबानी याद थीं और स्वयं गद्य-पद्य रचना में निपुण थी। इन सारे गुणों के अतिरिक्त उसमें अद्वितीय सौंदर्य भी था। एक दिन उसने पिता से कहा कि मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूँ लेकिन आप को मेरी बात माननी होगी। मंत्री ने कहा, यदि तेरी बात मानने योग्य होगी तो मैं अवश्य मानूँगा। शहरजाद ने कहा कि मेरा निश्चय है कि मैं बादशाह को इस अन्याय से रोकूँ जो वह कर रहा है और जो कन्याएँ अभी बची हैं उनके माता-पिता को चिंतामुक्त कर दूँ।

मंत्री ने कहा, ‘बेटी, तुम यह हत्याकांड किस प्रकार रोक सकती हो। तुम्हारे पास कौन-सा उपाय ऐसा हो सकता है जिससे यह अन्याय बंद हो?’ शहरजाद बोली, ‘यह आपके हाथ में है। मैं आप को अपनी सौगंध देकर कहती हूँ कि मेरा विवाह बादशाह के साथ कर दीजिए।’ मंत्री यह सुनकर काँपने लगा और बोला, ‘बेटी, तू पागल हो गई है क्या जो ऐसी वाहियात बातें कर रही है। क्या तुझे बादशाह के प्रण का पता नहीं है? तू सोच- समझ कर बात किया कर। तू किस तरह बादशाह को इस अन्याय से रोक सकेगी? बेकार ही अपनी जान गँवाएगी।

शहरजाद ने कहा, ‘मैं बादशाह के प्रण को भली भाँति जानती हूँ, परंतु अपने इस विचार को किसी प्रकार न छोड़ूँगी। यदि मैं अन्य कन्याओं की भाँति मारी गई तो इस असार संसार से मुक्ति पा जाऊँगी और अगर मैंने बादशाह को इस अत्याचार से विमुख कर दिया तो अपने नगर निवासियों का बड़ा हित कर सकूँगी।’

मंत्री ने कहा, ‘मैं किसी प्रकार तेरी यह इच्छा स्वीकार नहीं कर सकता। मैं तुझे जानते-बूझते ऐसी विकट परिस्थिति में कैसे डाल सकता हूँ? अजीब-सी बात है कि तू मुझ से कहती है कि मेरी मौत का सामान कर दो। कौन-सा पिता ऐसा होगा जो अपनी प्यारी संतान के लिए ऐसा करने का सोच भी सकेगा। तुझे चाहे अपने प्राण प्यारे न हों लेकिन मुझ से यह नहीं हो सकता कि तेरे खून से हाथ रँगूँ।’ शहरजाद फिर भी अपनी जिद पर अड़ी रही और विवाह की प्रार्थी रही।

मंत्री ने कहा, तू बेकार ही मुझे गुस्सा दिला रही है। आखिर क्यों तू मरना चाहती है? क्यों अपने प्राणों से इतनी रुष्ट है? सुन ले, जो भी व्यक्ति किसी काम को बगैर सोच-विचार के करता है उसे बाद में पछताना पड़ता है। मुझे भय है कि तेरी दशा उस गधे की तरह न हो जाए जो सुख से रहता था किंतु मूर्खता के कारण दुख में पड़ा। शहरजाद ने कहा, यह कहानी मुझे बताइए। मंत्री ने कहानी सुनाई।

अलिफ लैला की 64 कहानियों का संकलन

Alif Laila ki kahani – shaharayar aur Shahjamanm ki Kahani

faras desh bhi hindustan aur chin ke saman tha aur kai naresh usake adhin the. vaham ka raja mahapratapi aur bara tejasvi tha aur nyayapriy hone ke karan praja ko priy tha. us badshah ke do bete the jinamein bare larake ka nam shaharayar aur chhote larake ka nam Shahjamanm tha. donon rajakumar gunavan, vir dhir aur shilavan the.

jab badshah ka dehant hua to shahajada shaharayar gaddi par baitha aur usane apane chhote bhai ko jo use bahut manata tha tatar desh ka rajy, sena aur khajana diya. Shahjamanm apane bare bhai ki ajnya mein tatpar hua aur desh ke prabandh ke lie samarakand ko jo sansar ke sabhi shaharon se uttam aur bara tha apani rajadhani banakar aram se rahane laga. jab un donon ko alag hue das varsh ho gae to bare ne chaha ki kisi ko bhejakar use apane pas bulae. usane apane mantri ko use bulane ki ajnya di aur mantri yah ajnya pakar bari dhoomadham se vida hua. jab vah samarakand shahar ke samip pahumcha to Shahjamanm yah samachar sunakar usaki agavani ko sena lekar apani rajadhani se ravana hua aur shahar ke bahar pahumchakar mantri se mila. vah use dekhakar prasann hua. Shahjamanm apane bhai shaharayar ka kushalakshem poochhane laga. mantri ne Shahjamanm ko dandavat kar usake bhai ka hal kaha.

vah mantri badshah shaharayar ka param ajnya palak tha aur usase prem karata tha. Shahjamanm ne usase kaha ki bhai! mere agraj ne tumhem mujhe lene ko bheja is bat se mujhako atyant harsh hua. unaki ajnya mere shirodhary hai. agar bhagavan ne chaha to das din mein yatra ki taiyari kar ke aur shasan mein apana pratinidhi niyukt kar tumhare sath chaloomga. tumhare aur tumhari sena ke lie khane-pine ka prabandh sab yahim ho jaega. ataev tum isi sthan par thaharo. ataev usi sthan par khane-pine adi ki vyavastha kar di gai aur ve vaham rahe.

is avasar par badshah ne yatra ki taiyariyam ki aur apani jagah apane vishvas patr mantri ko niyukt kiya. ek din sayam apani begam se jo use ati priy thi vida li aur apane sevakon aur musahibon ko lekar samarakand se chala aur apane kheme mein pahumchakar mantri ke sath batachit karane laga. adhi rat hone par usaki ichchha hui ki ek bar begam se fir mil aoom. vah sabase chhupakar akela hi mahal mein pahumcha. begam ko usake ane ka sandeh tak n tha; vah apane ek tuchchh aur kuroop sevak ke sath so rahi thi.

Alif laila ki any Kahaniyam bhi parhem:
Shahjamanm sochakar aya tha ki begam use dekhakar ati prasann hogi. use doosare mard ke sath sote dekhakar ek kshan ke lie use kath mar gaya. kuchh sambhalane par sochane laga ki kahim mujhe drishti-bhram to nahin ho gaya. lekin bhalibhanti dekhane par bhi jab vahi bat pai to sochane laga yah kaisa anarth hai ki maim abhi samarakand nagar ki raksha bhitti se bahar bhi nahin nikala aur aisa karm hone laga. vah krodhagni mein jalane laga aur usane talavar nikalakar aise hath mare ki dono ke sir kat kar palamg ke niche a gae. isake bad donon shavon ko pichhavare ki khiraki se niche gaddhe mein fenkakar vah apane kheme mein vapas a gaya. usane kisi se rat ki bat n batai.

doosare din pratah hi sena chal pari. usake sath ke aur sab log to hamsi-khushi rasta kat rahe the kintu Shahjamanm apani begam ke pap karm ko yad kar ke dukhi rahata tha aur dinon din usaka mumh pila parata jata tha. usaki sari yatra isi kasht mein biti.

jab vah hindustan ki rajadhani ke samip pahumcha aur shaharayar ne yah suna to vah apane sare darabariyon ko lekar Shahjamanm ki abhyarthana ke lie aya. jab donon eka-doosare ke pas pahumche to apane-apane ghore se utar kar gale mile aur kuchh der tak eka-doosare ki kushalakshem poochh kar bare samarohapoorvak ravana hue. shaharayar ne Shahjamanm ko us mahal mein thaharaya jo usake lie pahale se sajaya gaya tha aur jahan se udyan dikhai deta tha. vah mahal bara aur rajaon ke svagatayogy tha. fir shaharayar ne apane bhai se snan karane ko kaha. Shahjamanm ne snan kar ke nae kapare pahane aur donon bhai mahal ke manch par baithakar der tak vartalap karate rahe. sare darabari donon badshahon ke samane apane-apane upayukt sthan par khare rahe. bhojanoparant bhi donon badshah der tak batem karate rahe.

jab rat bahut bit gai to shaharayar apane bhai ko atithy grih mein chhorakar apane mahal ko chala gaya. Shahjamanm fir shokakul hokar apane palamg par amsoo bahata hua lotata raha. bhai ke samane vah apana dukh chhupae raha lekin akela hote hi us par vahi dukh savar ho gaya aur usaki pira aisi barh gai jaise usaki jan lekar hi chhoregi. vah ek kshan ke lie bhi apani begam ka dushkarm bhula nahin pata tha. vah aksar hay hay kar uthata aur hamesha thandi samsem bhara karata. use raton ko nind nahin ati thi. isi dukh aur chinta mein usaka sharir dhire-dhire ghulane laga.

shaharayar ne usaki yah dasha dekhi to vichar kiya ki maim Shahjamanm se itana prem karata hoon aur usaki sukha-suvidha ka itana khayal rakhata hoon fir bhi sadaiv hi ise shok sagar mein nimagn dekhata hoom. maloon nahin ise apane rajy ki chinta khae jati hai ya apani begam ka vichhoh satata hai. maimne ise yahan bulakar bekar hi ise shok santap mein dal diya. ab uchit hoga ki ise samajha-bujha kar aur uttamottam bhent vastuem dekar samarakand vapas bhej doon taki isaka dukh door ho sake. yah sochakar usane hindustan desh ki bahumooly vastuem thalon mein lagakar Shahjamanm ke pas bhejim aur usaka ji bahalane ke lie taraha-tarah ke khela-tamashe karavae lekin Shahjamanm ki udasi kam nahin hui balki barhati hi gai. fir shaharayar ne apane darabariyon se kaha ki suna hai yahan se do dinon ki rah ke bad ek ghana jangal hai aur vaham achchha shikar milata hai isalie maim vaham shikar khelane jana chahata hoom; tum log bhi taiyar hokar mere sath chalo aur Shahjamanm se bhi chalane ko kaho kyonki shikar mein usaka ji lagega aur usaka chitt prasann hoga. Shahjamanm ne nivedan kiya ki meri tabiyat thik nahin hai, is karan mujhe shikar par jane se maf karem. shaharayar ne kaha – achchhi bat hai, agar tumhara yahim rahane ko ji chahata hai to raho lekin maim taiyari kar chuka hoom, mere apane bhrityon ke sath shikar ke lie jata hoom.

shaharayar ke jane ke bad Shahjamanm ne apane nivas sthan ke dvar andar se band kar lie aur ek khiraki par ja baitha. vaham se shahi mahal ka udyan dikhai deta tha. Shahjamanm suvasit pushpon aur pakshiyon ke kalarav se apana ji bahalane laga. lekin makan aur bag ki shobha se ji bahalane par bhi use apani patni ke durachar ki kachot bani rahati.

jab sandhya hui to Shahjamanm ne dekha ki rajamahal ka ek chor daravaja khula aur usmein se shaharayar ki begam bis any striyon ke sath nikali. ve sab uttam vastron aur alankaron se shobhit thim aur is vishvas ke sath ki sab log shikar par chale gae hain, bag mein a gaim. Shahjamanm khiraki mein chhup kar baith gaya aur dekhane laga ki ve kya karati hain.

dasiyon ne un labadon ko utar dala jo pahan kar ve mahal se nikali thim. ab unaki soorat spasht dikhai dene lagi. Shahjamanm ko yah dekhakar ashchary hua ki jin bison ko usane stri samajha tha unamein se das habshi mard the. un dason ne apani-apani pasand ki dasi ka hath pakar liya. sirf begam bagair mard ki rah gai. fir begam ne avaj di, masaood, masaooda. is par ek hrishta-pusht habshi yuvak jo usaki ajnya ki pratiksha mein tha ek vriksh se utar kar begam ki or daura aur usaka hath pakar liya. un gyarah habshiyon ne das dasiyon aur begam ke sath kya kiya usaka varnan maim lajjavash nahin kar sakoomga. isi bhanti ve adhi rat tak bag mein vihar karate rahe. fir bag ke hauj mein naha kar begam aur usake sath ae bis mard auraton ne apane kapare pahane aur jis chor daravaje se ae the usi se mahal mein chale gae aur masaood bhi bag ki divar famd kar bahar chala gaya.

yah kand dekhakar Shahjamanm ko ghor ashchary hua. usane socha ki maim to dukhi hoon hi, mera bara bhai mujh se bhi adhik dukhi hai. yadyapi vah atyant shaktishali aur vaibhavashali hai tathapi is dushkarm ko rokane mein asamarth hai, fir maim itana shok kyon karoom. jab mujhe maloon ho gaya ki yah nich karm sansar mein aksar hi hota hai to maim bekar hi svayam ko shok sagar mein duboe de raha hoom. yah sochakar usane sari chinta chhor di aur sadharan roop se rahane laga. pahale usaki bhookh mit gai thi, ab vah jag gai aur vah nana prakar ke svadisht vyanjan mamgakar khane laga aur sangita-nrity adi ka anand lene laga.

jab shaharayar shikar se lauta to Shahjamanm ne bari prasannatapoorvak usaka svagat kiya. shaharayar ne use shikar kie hue bahut se janavar dikhae aur kaha ki bare khed ki bat hai ki tum shikar par nahin gae, vaham bare anand ki jagah hai. Shahjamanm badshah ki har bat ka hamsi-khushi uttar deta tha. shaharayar ne socha tha ki vapasi par bhi Shahjamanm ko dukh aur shok mein dooba paega lekin isake viparit use prasann aur santusht dekhakar bola ai bhai, bhagavan ko bara dhanyavad hai ki maimne thori hi avadhi mein tumhem prasann aur vyadhimukt dekha. ab maim tumhem saugandh dekar ek bat poochhata hoom, tum vah bat jaroor batana. Shahjamanm ne kaha, jo bat bhi ap poochhenge maim avashy bataoomga.

shaharayar ne kaha, jab tum apani rajadhani se yahan ae the to maimne tumhem shok sagar mein dooba dekha tha. maimne tumhara chitt prasann karane ke lie anek upay kie, bhanti-bhanti ke khela-tamashe karavae kintu tumhari dasha jaisi ki taisi rahi. maimne bahut socha ki is dukh ka karan kya ho sakata hai kintu isake siva koi karan samajh mein nahin aya ki tumhem apani begam ke vichhoh ka dukh hai aur rajy prabandh ki chinta hai. kintu ab kya bat hui jisase tumhara dukh aur chinta door ho gai?

Shahjamanm yah sunakar maun raha kintu jab shaharayar ne bara-bar yahi prashn poochha to vah bola, ap mere malik hain mujh se bare hain; maim is prashn ka uttar n doomga kyonki isamein bari nirlajjata ki bat hai. shaharayar ne kaha ki jab tak tum mujhe yah n bataoge tab tak mujhe chain n aega. Shahjamanm ne vivash hokar apani begam ke kukarm ka savistar varnan kiya aur kaha ki maim isi karan dukhi rahata tha.

shaharayar ne kaha, bhaiyya, yah to tumane bare ashchary ki, asambhava-si bat batai. yah to tumane bara achchha kiya ki aisi vyabhicharini ko usake premi sahit mar dala. is mamale mein koi tumhem anyayi nahin kah sakata. maim tumhari jagah hota to mujhe ek stri ko marane se santosh n hota, hajar striyon ko mar dalata. batao ki mere bahar jane par yah shok kis prakar door hua?

Shahjamanm ne kaha, mujhe yah bat kahate dar lagata hai ki aisa n ho ki yah sunakar apako mujhase bhi adhik dukh ho. shaharayar ne kaha ki bhai, tumane yah kah kar meri utkantha aur barha di hai; mujhe ab ise sune bagair chain n aega isalie yah bat jaroor batao. vivash hokar Shahjamanm ne masaood, dason dasiyon aur begam ka sara hal bataya aur bola, yah ghatana maimne apani amkhon se dekhi hai aur samajh liya hai ki sari striyon ke svabhav mein dushtata aur pap hota hai. aur adami ko chahie ki unaka bharosa n kare. mujhe yah sara kand dekhakar apana dukh bhool gaya hai aur isilie maim nirog aur prasannachitt dikhai deta hoom.

yah hal sunakar bhi shaharayar ko apane bhai ke kathan par vishvas n hua. vah kruddh svar mein bola, kya hamare desh ki sari begamein vyabhicharini hain? mujhe tumhare kahane ka vishvas nahin hoga jab tak maim khud apani amkhon se yah n dekh loom. sambhav hai tumhem bhram hua ho. Shahjamanm ne kaha, bhai sahab, ap khud dekhana chahate hain to aisa kijie ki dubara shikar ke lie ajnya dijie. ham ap donon fauj ke sath shahar se kooch kar ke bahar chalem. din bhar apane khemon mein rahem aur rat ko chupachap isi makan mein a baithem. fir nishchay hi ap vah sara vyapar apani amkhon dekh lenge jo maimne apako bataya hai.

shaharayar ne yah bat svikar kar ke darabariyon ko ajnya di ki kal maim fir shikar ko jaoomga. atah doosare din pratahkal hi donon bhai shikar ko chale aur shahar ke bahar jakar apane khemon mein thahare. jab rat hui to shaharayar ne mantri ko bulakar ajnya di ki maim ek jaroori kam se ja raha hoom, tum fauj ke kisi adami ko yahan se jane n dena. tatpashchat donon bhai ghoron par savar hokar gupt roop se shahar mein ae aur savera hone ke pahale hi Shahjamanm ke mahal ki usi khiraki mein a baithe jisase Shahjamanm ne sara kand dekha tha. sooryoday ke poorv hi mahal ka chor daravaja khula aur kuchh der mein begam apane unhim stri veshadhari habshiyon ke sath vaham se nikal kar bag mein ai aur masaood ko pukara.

yah sara hal – jo n kahane ke yogy hai n sunane ke – dekhakar shaharayar apane man mein kahane laga ki he! bhagavan, yah kaisa anarth hai ki mujh jaise mahan nripati ki patni aisi vyabhicharani ho. fir vah Shahjamanm se bola ki yah achchha rahega ki ham is kshanabhangur sansar ko jisamein ek kshan anand ka hota hai doosara dukh ka, chhor dem aur apane deshon aur senaon ka parityag kar ke any deshon mein shesh jivan katem aur is ghrinit vyapar ke bare mein kisi se kuchh n kahem.

Shahjamanm ko yah bat pasand nahin ai kintu apane bhai ki atyant dukhi dasha dekhakar usane inakar karana thik n samajha aur bola, bhai sahab, maim apaka anuchar hoon aur apaki ajnya ko poorn roop se manoomga. lekin meri ek shart hai. jab ap kisi vyakti ko apane se adhik is durbhagy se pirit dekhem to apane desh ko laut aem.

shaharayar ne kaha, mujhe tumhari yah shart svikar hai lekin mera vichar hai ki sansar mein kisi manushy ko hamare jaisa dukh nahin hoga. Shahjamanm ne kaha, thori-si hi yatra karane par apako is bat ka pata achchhi tarah se chal jaega.

ataev ve donon chhup kar ek sunasan raste se nagar ke bahar ek or ko chale. din bhar chalane ke bad rat ko ek per ke niche let kar so rahe. doosare din pratahkal ve vaham se bhi age chale aur chalate-chalate ek manoram vatika mein pahumche jo ek nadi ke tat par bani hui thi. is vatika mein doora-door tak ghane aur bare-bare vriksh lage the. vaham ek vriksh ke niche baithakar ve sustane lage aur batachit karane lage.

thori hi der hui thi ki ek bhayanak shabd sunakar donon atyant bhayabhit hue aur kampane lage. kuchh der mein dekha ki nadi ke jal mein darar hui aur usmein se ek kala khambha nikalane laga. vah itana oomcha ho gaya ki usaka oopari bhag akash ke badalon mein lupt ho gaya. yah kand dekhakar donon bhai aur bhi bhayabhit hue aur ek oomche vriksh par charh kar usaki daliyon aur patton mein chhupakar baith gae. unhomne dekha ki kala khambha nadi ke tat ki or barhane laga aur tat par akar ek maha bhayanak daity ke roop mein parivartit ho gaya. ab ve donon aur bhi ghabarae aur ek aur oomchi dal par ja baithe. daity nadi tat par aya to unhomne dekha ki usake sir par ek sise ka bara aur majaboot sandook hai jisamein pital ke char tale lage hain.

daity ne nadi tat par akar sir se sandook utara aur usi vriksh ke niche rakh diya jahan donon bhai chhupe the. fir usane kamar se latakati hui char chabhiyon se sandook ke charon tale eka-ek kar ke khole. sandook khola to usmein se ek ati sundar stri nikali jo uttamottam vastrabhooshanon se alankrit thi. daity ne stri ko prem drishti se dekha aur kaha, priye, too sundarata mein anupam hai. bahut din ho gae jab maim tujhe tere vivah ki rat ko ura laya tha. is sare kal mein too bari nishkalank aur mere prati vafadar rahi hai. mujhe is samay bari nind a rahi hai isalie tere nikat sona chahata hoom. yah kahakar vah maha bhayanak akriti vala daity us stri ki jangha par sir rakh kar so raha. usaka sharir itana vishal tha ki usake pamv nadi ke jal ko chhoo rahe the. sote samay usaki sams ka svar aisa ho raha tha jaise badal garaj rahe hom. sara vatavaran us dhvani se kampayaman ho raha tha.

ek bar samyog se jab stri ne oopar ki or dekha to use pattiyon mein chhupe hue donon bhai dikhai die. usane donon ko niche utarane ka sanket kiya. usake uddeshy ko samajhakar donon ka bhay aur barha. donon ne ishare hi se usase vinati ki ki hamein per hi par chhupa rahane do. stri ne dhire se daity ka sir apani god se utarakar prithvi par rakh diya aur uthakar unako dhairy dete hue boli ki koi bhay ki bat nahin hai, tum niche utar ao aur mere samip baitho. usane yah bhi dhamaki di ki agar n aoge to maim daity ko jaga doomgi aur vah tum donon ko samapt kar dega. yah sunakar ve bahut dare aur chupachap niche utar ae. vah stri muskarati hui donon ka hath pakar kar ek vriksh ke niche le gai aur unase apane sath sambhog karane ko kaha. pahale to un donon ne inakar kiya kintu fir usaki dhamaki se dar kar vah jaisa chahati thi usake sath kar diya. isake bad stri ne unase unaki eka-ek amgoothi mamg li. fir usane ek chhoti-si sandookachi nikali aur unase poochha ki janate ho isamein kya hai aur kisalie hai? unhomne kaha, hamein nahin maloom, tum batao isamein kya hai. us sundari ne kaha, isamein un logon ki nishaniyam hain jo tumhari tarah mujhase sambandh kar chuke hain. ye atthanabe amgoothiyam thim aur tumhari do milane se sau ho gaim. is daity ki itani kari nigarani ke bad bhi maimne sau bar aisi manamani ki hai. yah durachari daity mujh par itana asakt hai ki kshan bhar ke lie bhi mujhe apane se alag nahi karata aur bari dekhabhal ke sath mujhe is sise ke sandook mein chhupakar samudr ki talahati mein rakhata hai. lekin usaki sari chalaki aur raksha prabandh par bhi maim jo chahati hoon vah karati hoon aur is bechare ka sara prabandh bekar ho jata hai. ab mere hal se tum samajh lo ki stri jab kamasakt hoti hai to koi bhi use dushkarm se rok nahin sakata.

isake pashchat vah unaki amgoothiyam lekar apani jagah ai. usane daity ka sir fir apani god mein rakh liya aur in donon ko sanket kiya ki chale jao. donon vaham se chal die aur jab bahut door nikal gae to Shahjamanm ne apane bare bhai shaharayar se kaha, dekhie, itani suraksha aur kare prabandh par bhi yah stri apane man ki abhilasha poori kar rahi hai. yah bhi dekhie ki daity ko us par kitana vishvas hai aur vah usaki nishkalankata ki kaisi prashamsa kar raha tha. ab ap hi nyayapoorvak bataem ki is bechare par ham logon se adhik durbhagy hai ya nahin. ham jo bat dhoomrhane nikale the vah hamein mil gai. ab hamein chahie ki apane-apane deshon ko chalem aur kisi stri se vivah n karem kyonki shayad hi koi stri nishpap ho.

chunanche shaharayar ne apane chhote bhai ke kahane ke anusar hi kam kiya aur vaham se donon shaharayar ki rajadhani ko chale. tin raton bad ve apani senaon mein pahumche. shaharayar ne age shikar par n jana chaha aur rajadhani ko vapas a gaya. mahal mein jakar usane mantri ko ajnya di ki vah begam ko le jakar mrityudand de. mantri ne badshah ki ajnyanusar aisa hi kiya. fir shaharayar ne dason vyabhicharini dasiyon ko apane hath se mar dala. isake bad shaharayar ne socha ki koi aisa upay karoon ki vivah ke bad meri begam kukarm ka avasar hi na pa sake. ataev usane nishchay kiya ki rat ko vivah karoon aur sabere hi begam ko marava doom. tatpashchat usane apane bhai Shahjamanm ko vida kiya. vah shaharayar ki di hui amooly bhenton ko lekar apani sena ke sath samarakand chala gaya. Shahjamanm ke jane ke bad apane pradhan mantri ko ajnya di ki vah vivah hetu kisi samant ki beti ko lae. pradhan mantri ne ek amir ki beti la khari ki. shaharayar ne usase vivah kiya aur rat bhar usake sath bita kar subah mantri ko ajnya di ki ise le jakar mar dalo aur rat ke lie fir kisi saradar ki sundari beti mere vivaharth le ana. mantri ne us begam ko mar dala aur sham ko ek aur amir ki beti le aya aur doosare din use bhi le jakar mar dala. isi prakar shaharayar ne saikaron amiron saradaron ki betiyon se vivah kiya aur doosari subah unhem marava dala. ab samany nagarikon ki bari ai. sath hi is jaghany anyay ki bat sab jagah fail gai. sare nagar mein shok, santap aur rodan ki avajem uthane lagim. kahim pita apani putri ko mrityu par atha-ath amsoo rota tha, kahim laraki ki mata pachharem khati thi. jo kanyaem abhi tak bach rahi thim unake mata-pita aur sage-sambandhi atyant dukhi rahate the. kai log apani betiyon ko lekar desh chhor gae aur any deshon mein ja base.

vaham ke mantri ki do kumari betiyam thim. bari ka nam shaharajad aur chhoti ka nam duniyajad tha. shaharajad apani bahan aur saheliyon se adhik tikshn buddhi thi. vah jo bat bhi sunati ya kisi pustak mein dekhati use kabhi nahin bhoolati thi. vartalap ke gun mein bhi pravin thi. use bahut prachin manishiyon ki akhyayikaem aur kavitaem jubani yad thim aur svayam gadya-pady rachana mein nipun thi. in sare gunon ke atirikt usmein advitiy saundary bhi tha. ek din usane pita se kaha ki maim apase kuchh kahana chahati hoon lekin ap ko meri bat manani hogi. mantri ne kaha, yadi teri bat manane yogy hogi to maim avashy manoomga. shaharajad ne kaha ki mera nishchay hai ki maim badshah ko is anyay se rokoon jo vah kar raha hai aur jo kanyaem abhi bachi hain unake mata-pita ko chintamukt kar doom.

mantri ne kaha, beti, tum yah hatyakand kis prakar rok sakati ho. tumhare pas kauna-sa upay aisa ho sakata hai jisase yah anyay band ho? shaharajad boli, yah apake hath mein hai. maim ap ko apani saugandh dekar kahati hoon ki mera vivah badshah ke sath kar dijie. mantri yah sunakar kampane laga aur bola, beti, too pagal ho gai hai kya jo aisi vahiyat batem kar rahi hai. kya tujhe badshah ke pran ka pata nahin hai? too socha- samajh kar bat kiya kara. too kis tarah badshah ko is anyay se rok sakegi? bekar hi apani jan gamvaegi.

shaharajad ne kaha, maim badshah ke pran ko bhali bhanti janati hoom, parantu apane is vichar ko kisi prakar n chhoroomgi. yadi maim any kanyaon ki bhanti mari gai to is asar sansar se mukti pa jaoomgi aur agar maimne badshah ko is atyachar se vimukh kar diya to apane nagar nivasiyon ka bara hit kar sakoomgi.

mantri ne kaha, maim kisi prakar teri yah ichchha svikar nahin kar sakata. maim tujhe janate-boojhate aisi vikat paristhiti mein kaise dal sakata hoom? ajiba-si bat hai ki too mujh se kahati hai ki meri maut ka saman kar do. kauna-sa pita aisa hoga jo apani pyari santan ke lie aisa karane ka soch bhi sakega. tujhe chahe apane pran pyare n hon lekin mujh se yah nahin ho sakata ki tere khoon se hath ramgoom. shaharajad fir bhi apani jid par ari rahi aur vivah ki prarthi rahi.

mantri ne kaha, too bekar hi mujhe gussa dila rahi hai. akhir kyon too marana chahati hai? kyon apane pranon se itani rusht hai? sun le, jo bhi vyakti kisi kam ko bagair socha-vichar ke karata hai use bad mein pachhatana parata hai. mujhe bhay hai ki teri dasha us gadhe ki tarah n ho jae jo sukh se rahata tha kintu moorkhata ke karan dukh mein para. shaharajad ne kaha, yah Kahani mujhe bataie. mantri ne Kahani sunai.

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