प्राचीनकाल की बात है। देवताओं के राजा इंद्र ने विवाह करने की ठानी। उन्होंने सोचा कि यह विवाह इतनी आन बान और शान से होना चाहिए कि युगों-युगों तक उसकी चर्चा होती रहे। ऐसा तभी हो सकता था, जब हर प्राणी उस शादी में शामिल होता और उसे अपनी आंखों से देखता।
यही सोचकर इन्द्रदेव ने सभी देवी देवताओं के साथ साथ धरती पर विचरण करने वाले प्राणियों को भी विवाहोत्सव में आमंत्रित किया।
विवाह में अद्भूत भोज का भी प्रबंध किया गया। उस भोज की खास बात यह थी कि वहां प्रत्येक प्राणी की इच्छा का भोजन था।
इस आमंत्रण में सभी प्राणी, चाहे वे चार पैर वाले हों या दो पैर वाले, धरती पर चलने वाले या रेंगने वाले हों या आकाश में उड़ने वाले, समय पर पहुंच गए।
परंतु कछुआ, जो अपनी धीमी गति के लिए प्रसिद्ध है, कई घण्टे देर से विवाहोत्सव में पहुंचा। उसकी अनुपस्थिति के कारण सारा भोज कार्यक्रम रूका हुआ था। जैसे-जैसे समय गुजर रहा था, वैसे-वैसे इन्द्रदेव का क्रोध भी बढ़ता जा रहा था। अब जैसे ही कछुआ वहां पहुंचा, वैसे ही इन्द्रदेव उस पर बरस पड़े।
”क्या कारण है कि तुम इतनी देर से आए?“ इन्द्र देवता ने भौंहेे चढ़ा लीं- ”हम सब तुम्हारी प्रतीक्षा में बैठे हुए थे। बताओ, तुम्हें यहां पहुंचने में देर क्यों हुई?“
बजाय इसके कि कछुआ देर से आने के लिए क्षमा मांगता, वह बहुत ढिठाई से बोला – ”मैं अपने घर में यानी अपने प्यारे खोल में आराम कर रहा था।“
”क्या?“ इन्द्र देवता ने आंखें तरेर लीं- ”क्या तुम अपने खोल में इन्द्र के महल से अधिक सुखी और सुरक्षित हो? सुनो, ऐ मूर्ख! तुम्हें यदि अपना घर इतना ही प्यारा है तो जाओ आज से तुम जहां-जहां भी जाओगे, तुम्हारा घर तुम्हारी पीठ पर लदा होगा।“
शिक्षा – अहंकारी को सदा नीचा देखना पड़ता है।