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लोमड़ी और बकरी – किसी पर आंख मूंदकर विश्वास न करो – पंचतंत्र की कहानियाँ

एक समय की बात है, एक लोमड़ी घूमते-घूमते एक कुएं के पास पहुंच गई। कुएं की जगत नहीं थी। उधर, लोमड़ी ने भी इस और ध्यान नहीं दिया। परिणाम यह हुआ कि बेचारी लोमड़ी कुएं में गिर गई।

लोमड़ी और बकरी - किसी पर आंख मूंदकर विश्वास न करो - पंचतंत्र की कहानियाँ

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कुआं अधिक गहरा तो नहीं था, परंतु फिर भी लोमड़ी के लिए उससे बाहर निकलना सम्भव नहीं था। लोमड़ी अपनी पूरी शक्ति लगाकर कुएं से बाहर आने के लिए उछल रही थी, परंतु उसे सफलता नहीं मिल रही थी। अंत में लोमड़ी थक गई और निराश होकर एकटक ऊपर देखने लगी कि शायद उसे कोई सहायता मिल जाए।

लोमड़ी का भाग्य देखिए, तभी कुएं के पास से एक बकरी गुजरी। उसके कुएं के भीतर झांका तो लोमड़ी को वहां देखकर हैरान रह गई।

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”नमस्ते, लोमड़ी जी!“ बकरी बोली- ”यह कुएं में क्या कर रही हो?“

”नमस्ते, बकरी जी!“ लोमड़ी ने उत्तर दिया- ”यहां कुएं में बहुत मजा आ रहा है।“

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”अच्छा! बहुत प्रसन्नता हुई यह जानकर।“ बकरी बोली- ”आखिर बात क्या है?“

”यहां की घास अत्यन्त स्वादिष्ट है।“ लोमड़ी बड़ी चतुरता से बोली।

”मगर तुम कब से घास खाने लगी हो?“ बकरी आश्चर्य से बोली।

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”तुम्हारा कहना ठीक है। मैं घास नहीं खाती, मगर यहां की घास इतनी स्वादिष्ट है कि एक बार खा लेने के बाद बार बार घास ही खाने को जी करता है। तुम भी क्यों नहीं आ जाती हो?“

”धन्यवाद!“ बकरी के मुंह में पानी भर आया- ”मैं भी थोड़ी घास खाऊंगी।“

अगले ही क्षण बकरी कुएं में कूद गई। मगर जैसे ही बकरी कुएं के भीतर पहुंची लोमड़ी बकरी की पीठ पर चढ़कर ऊपर उछली और कुएं से बाहर निकल गई।

”वाह! बकरी जी। अब आप जी भर कर घास खाइए, मैं तो चली।“

इस प्रकार वह चतुर लोमड़ी बकरी का सहारा लेकर खुद तो कुएं से बाहर आ गई लेकिन बकरी को कुएं में छोड़ दिया।

शिक्षा –  हर किसी पर आंख मूंदकर विश्वास न करो।

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